-महादेवी वर्मा 

सारांश

नीलकंठ पाठ लेखिका महादेवी द्वारा लिखा गया रेखाचित्र है। इस रेखाचित्र में उनके द्वारा पाले गए मोर जिसे उन्होंने नीलकंठ नाम दिया था उसका वर्णन किया गया है। इस रेखाचित्र में उन्होंने नीलकंठ के स्वभाव, व्यवहार और चेष्टाओं का विस्तार से वर्णन किया है।

कहानी का सार कुछ इस प्रकार है-

एक बार लेखिका अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौटते समय बड़े मियाँ चिड़ियावाले वाले के यहाँ से मोर-मोरनी के दो बच्चे उठा लाई। घर पहुँचकर घर वालों ने उन बच्चों को देखा तो सभी ने एक स्वर में कहा कि लेखिका को ठग लिया गया है क्योंकि ये मोर नहीं तीतर के बच्चे हैं। इस पर लेखिका चिढ़कर उन बच्चों को अपने पढ़ाई वाले कमरे में ले आईं। बच्चे लेखिका के कमरे में इधर-उधर घूमते रहे। जब वे लेखिका से कुछ ही दिनों में घुल-मिल गए तो वे लेखिका की ओर अपना ध्यान आकर्षित करने के लिए हरकतें करने लगे। अब वे जैसे ही थोड़े बड़े हुए लेखिका ने अन्य पशु-पक्षियों के साथ उन्हें भी जालीघर में रख दिया। धीरे-धीरे दोनों बड़े होकर सुंदर मोर-मोरनी में बदल गए।

मोर के सिर की कलगी बड़ी, चमकीली और चोंच तीखी हो गई थी। गर्दन लंबी नीले-हरे रंग की थी। पंखों में भी चमक आने लगी थी। मोरनी का विकास मोर के समान सौन्दर्यपूर्ण नहीं था परन्तु फिर भी वह मोर की उपयुक्त सहचारिणी थी। लेखिका ने मोर की नीली गरदन के कारण उसका नाम रखा नीलकंठ और मोरनी हमेशा नीलकंठ की छाया की तरह उसके साथ रहने के कारण उसका नाम राधा रखा गया।

नीलकंठ लेखिका के चिड़ियाघर का स्वामी बन गया। जब कोई पक्षी नीलकंठ की बात न मानता तो वह चोंच के प्रहारों से उसे दंड देता था। एक बार एक साँप ने खरगोश के बच्चे को अपने मुँह में दबा लिया था। नीलकंठ ने अपने चोंच के प्रहार से उस साँप के न केवल टुकड़े कर दिए बल्कि पूरी रातभर उस नन्हें खरगोश के बच्चे को पंखों में दबाए गर्मी देता रहा।

वसंत पर मेघों की साँवली छाया छाने पर नीलकंठ अपने इन्द्रधनुषी पंखों को फैलाकर एक सहजात लय ताल में नाचता रहता। लेखिका का को उसका यूँ नृत्य करना बड़ा अच्छा लगता था। अनेक विदेशी महिलाओं ने तो उसकी मुद्राओं को अपने प्रति सम्मान समझकर उसे ‘परफेक्ट जेंटलमैन’ की उपाधि ही दे दी थी। नीलकंठ और राधा को वर्षा ऋतु ही अच्छी लगती थी। उन्हें बादलों के आने से पहले ही उसकी सूचना मिल जाती थी और फिर बादलों की गडगडाहट, वर्षा की रिमझिम और बिजली की चमक के साथ ही उसके नृत्य का वेग भी बढ़ता ही जाता।

एक दिन लेखिका किसी कार्यवश बड़े मियाँ की दुकान से गुजरी तो एक मोरनी जिसके पंजें टूटे थे सात रुपए देकर खरीद लाई। मरहमपट्टी के बाद एक ही महीने में वह ठीक हो गई और डगमगाती हुई चलने लगी। इसी डगमगाने के कारण लेखिका ने उसका नाम कुब्जा रखा। उसे भी जालीघर पहुँचा दिया गया। कुब्जा नाम के अनुरूप ही उसका स्वभाव भी सिद्ध हुआ। नीलकंठ और राधा को साथ रहने ही न देती। उसने अपने चोंच के प्रहार से राधा की कलगी और पंख तोड़ दिए। नीलकंठ उससे दूर भागता था पर वह नीलकंठ के साथ ही रहना चाहती थी। यहाँ तक कि कुब्जा ने राधा के दोनों अंडे भी तोड़ दिए थे। इस कारण राधा और नीलकंठ की प्रसन्नता का अंत हो गया। लेखिका को लगा कुछ दिनों में सबकुछ ठीक हो जाएगा। परन्तु ऐसा न हुआ।

तीन-चार महीने के बाद एक सुबह लेखिका ने नीलकंठ को मरा हुआ पाया। न उसे कोई बीमारी हुई थी और न ही उसके शरीर पर कोई चोट के निशान थे। लेखिका ने उसे अपनी शाल में लपेटकर संगम में प्रवाहित कर दिया। नीलकंठ के न रहने पर राधा कई दिन तक कोने में बैठी नीलकंठ का इन्तजार करती रही। इसके विपरीत कुब्जा ने उसके न रहने पर उसकी खोज आरंभ कर दी थी। एक दिन लेखिका की अल्सेशियन कुतिया कजली कुब्जा के सामने पड़ गई आदत अनुसार उसने अपने चोंच से कजली पर प्रहार कर दिया। इस पर कजली ने भी उसकी गर्दन पर अपने दाँत लगा दिए। कुब्जा का इलाज करवाया गया परन्तु वह ठीक न हो पाई और उसकी भी मृत्यु हो गई। राधा अब भी नीलकंठ की प्रतीक्षा कर रही है। बादलों को देखते ही वह अपनी केका ध्वनि से उसे बुलाती है।

NCERT SOLUTIONS

निबंध से प्रश्न (पृष्ठ संख्या 116-117)

प्रश्न 1 मोर-मोरनी के नाम किस आधार पर रखे गए?

उत्तर- मोर की गर्दन नीली थी, इसलिए उसका नाम नीलकंठ रखा गया और मोरनी सदा मोर के आस-पास घूमती रहती थी, इसलिए उसका नाम राधा रखा गया।

प्रश्न 2 जाली के बड़े घर में पहुँचने पर मोर के बच्चों का किस प्रकार स्वागत हुआ?

उत्तर- जाली के बड़े घर में मोर के बच्चों के पहुँचते ही वहाँ हलचल मच गई। अन्य जीवों को वैसा ही कौतूहल हुआ जैसा नववधू के आगमन पर परिवार के बाकी सदस्यों को होता है। लक्का कबूतर नाचना छोड़ कर दौड़ पड़े और उनके चारों और घूम-घूमकर गुटरगूं करने लगे। बड़े खरगोश गंभीर भाव से कतार में बैठकर उन्हें परखने लगे। छोटे खरगोश उनके आसपास उछलकूद मचाने लगे। तोते मानो सही निरीक्षण के लिए एक आँख बंद करके उन्हें देखने लगे।

प्रश्न 3 लेखिका को नीलकंठ की कौन सी चेष्टाएँ बहुत भाती थीं?

उत्तर- लेखिका को नीलकंठ का गर्दन ऊँची कर देखना, विशेष भंगिमा के साथ उसे नीची कर दाना चुगना और पानी पीना तथा गर्दन टेढ़ी कर शब्द सुनना आदि चेष्टाएँ बहुत भाती थीं। इनके अतिरिक्त पंखों को फैलाकर उसका नृत्य करना भी लेखिका को बहुत अच्छा लगता था।

प्रश्न 4 “इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा’-वाक्य किस घटना की ओर संकेत कर रहा है?

उत्तर- इस आनंदोत्सव की रागिनी में बेमेल स्वर कैसे बज उठा’-वाक्य नीलकंठ और राधा के प्रेम और आनंद भरे जीवन में कुब्जा के आगमन की ओर संकेत कर रहा है। नीलकंठ और राधा खुशी-खुशी अपना वक्त गुजार रहे थे कि कुब्जा ने आकर उनके जीवन की सारी प्रसन्नता का अंत कर दिया। वह उन दोनों को कभी साथ नहीं रहने देती थी। राधा को नीलकंठ के साथ देखकर वह उसे चोंच से मारने दौड़ती। वह किसी अन्य जीव को भी नीलकंठ के पास नहीं जाने देती थी। वह चाहती थी कि नीलकंठ केवल उसके साथ रहे और नीलकंठ उससे दूर भागता रहता था। कुब्जा ने उसके शांतिपूर्ण जीवन में ऐसा कोलाहल मचाया कि बेचारे नीलकंठ के जीवन का ही अंत हो गया।

प्रश्न 5 बसंत ऋतु में नीलकंठ के लिए जालीघर में बंद रहना असहनीय क्यों हो जाता था?

उत्तर- नीलकंठ को फलों के वृक्षों से अधिक फूलों से लदे नए पत्तों वाले वृक्ष भाते थे। वसंत ऋतु में जब आम के वृक्ष सुनहली मंजरियों से लद जाते थे, अशोक नए लाल पल्लवों से ढंक जाता था, तब जाली घर में वह इतना अस्थिर और बेचैन हो उठता था कि उसे बाहर छोड़ देना पड़ता था।

प्रश्न 6 जाली घर में रहने वाली सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कुब्जा के साथ ऐसा संभव क्यों नहीं हो पाया?

उत्तर- जाली घर में रहने वाले सभी जीव एक-दूसरे के मित्र बन गए थे, पर कुब्जा के साथ ऐसा संभव नहीं हो पाया क्योंकि कुब्जा किसी से मित्रता करना ही नहीं चाहती थी। वह सबसे लड़ती रहती थी। उसे केवल नीलकंठ के साथ रहना पसंद था। वह और किसी को उसके पास नहीं जाने देती थी। किसी को उसके साथ देखते ही वह चोंच से मारना शुरू कर देती थी।

प्रश्न 7 नीलकंठ ने खरगोश के बच्चे को साँप से किस तरह बचाया? इस घटना के आधार पर नीलकंठ के स्वभाव की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- साँप ने शिशु खरगोश के शरीर का पिछला हिस्सा मुँह में दबा लिया था। खरगोश चींची करता हुआ चीख रहा था। नीलकंठ दूर ऊपर झूले में सो रहा था। खरगोश की आवाज सुनकर एक झटके में वह नीचे आ गया। अपनी सहज-चेतना से ही वह समझ गया कि साँप के फन पर चोंच मारने से खरगोश घायल हो सकता है। इसलिए उसने साँप के फन के पास पंजों से दबाया और फिर चोंच से इतना मारा कि वह अधमरा हो गया। खरगोश उसके पंजे से छूट तो गया, पर बेसुध सा वहीं पड़ा रहा। साँप का काम तमाम कर नीलकंठ खरगोश के पास गया और रात भर उसे अपने पंखों के नीचे रखे ऊष्णता देता रहा।

इस घटना से नीलकंठ के स्वभाव की कई विशेषताओं का पता चलता है। वह वीर था, साहसी था। उसमें मानवीय भावनाएँ भी विद्यमान थीं। अपने साथियों के प्रति प्रेम और उनकी रक्षा का ख्याल भी था।

निबंध से आगे प्रश्न (पृष्ठ संख्या 117)

प्रश्न 1 यह पाठ एक रेखाचित्र’ है। रेखाचित्र की क्या-क्या विशेषताएँ होती हैं? जानकारी प्राप्त कीजिए और लेखिका के लिखे किसी अन्य रेखाचित्र को पढ़िए।

उत्तर- रेखाचित्र किसी के जीवन के मुख्य-मुख्य अंगों को प्रस्तुत करती है। इसको कोई एक कहानी नहीं होती है, वरन संपूर्ण जीवन की छोटी बड़ी घटनाओं का समावेश होता है। रेखाचित्र में भावात्मकता और संवेदना होती है। महादेवी वर्मा द्वारा लिखित अन्य रेखाचित्र पुस्तकालय से लेकर पढ़िए।

प्रश्न 2 वर्षा ऋतु में जब आकाश में बादल घिर आते हैं तब मोर पंख फैलाकर धीरे-धीरे मचलने लगता है -यह मोहक दृश्य देखने। का प्रयास कीजिए।

उत्तर- अभयारण्य में इस तरह के दृश्य देखे जा सकते हैं।

प्रश्न 3 पुस्तकालय से ऐसी कहानियों, कविताओं या गीतों को खोजकर पढ़िए जो वर्षा ऋतु और मोर के नाचने से संबंधित हों।

उत्तर-

NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 15 नीलकंठ (महादेवी वर्मा) 1

अनुमान और कल्पना प्रश्न (पृष्ठ संख्या 117)

प्रश्न 1 निबंध में आपने ये पंक्तियां पढ़ी है- ‘मैं अपने शाल में लपेटकर उसे संगम ले गई। जब गंगा की बीच धार में उसे प्रवाहित किया गया तब उसके पंखों की चंद्रिकाओं से बिंबित-प्रतिबिंबित होकर गंगा को चौड़ा पाट एक विशाल मयूर के समान तरंगित हो उठा।’ इन पंक्तियों में एक भावचित्र है। इसके आधार पर कल्पना कीजिए और लिखिए कि मोरपंख की चंद्रिका और गंगा की लहरों में क्या-क्या समानताएँ लेखिका ने देखी होंगी जिसके कारण गंगा का चौड़ा पाट एक विशाल मयूर पंख के समान तरंगित हो उठा।

उत्तर- लेखिका ने जब मोर को गंगा की धारा में प्रवाहित किया होगा तो उसकी लंबी पूंछ के पंख गीले होकर गंगा की धारा पर फैल गए होंगे। उन मोर पंखों की चंद्रिकाओं की परछाई गंगा की जल धारा पर दिखाई देती होगी और आगे बढ़ती हुई लहरों में वे प्रतिबिंब द्विगुणित होते जाते होंगे। इस प्रकार गंगा का चौड़ा पाट किसी विशाल मयूर पंख की भांति तरंगित हो उठा होगा। गंगा की लहरों के हिलने-डुलने में मोर के पंखों की थिरकन का आभास होता होगा।

प्रश्न 2 नीलकंठ की नृत्य-भंगिमा का शब्दचित्र प्रस्तुत करें।

उत्तर- नीलकंठ अपने इंद्रधनुषी गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बना कर नाचता था। उसके नृत्य में एक सहजात लय-ताल रहता था। आगे-पीछे, दाएं-बाएँ, उसके घूमने में भी एक क्रम रहता था तथा वह बीच-बीच में एक निश्चित अंतराल पर थम-थम भी जाता था। वर्षा होने पर तीव्र गति में उसके नृत्य के साथ उसकी केका की ध्वनि भी सुनाई देती रहती थी।

भाषा की बात प्रश्न (पृष्ठ संख्या 117-118)

प्रश्न 1 ‘रूप’ शब्द से कुरूप, स्वरूप, बहुरूप आदि शब्द बनते हैं। इसी प्रकार नीचे लिखे शब्दों से अन्य शब्द बनाओ-

गंध, रंग, फल, ज्ञान

उत्तर-

गंधगंधहीन, सुगंध, दुर्गंध
रंगरंगहीन, रंगीला, रंगीन, बदरंग
फलफलहीन, फलदार, सफल, निष्फल
ज्ञाननहीन, ज्ञानवान, विज्ञान, ज्ञानी, अज्ञानी

प्रश्न 2 विस्मयाभिभूत शब्द विस्मय और अभिभूत दो शब्दों के योग से बना है। इसमें विस्मय के य के साथ अभिभूत के अ के मिलने से या हो गया है। अ आदि वर्ण हैं। ये सभी वर्ण-ध्वनियों में व्याप्त हैं। व्यंजन वर्गों में इसके योग को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है, जैसे क् + अ = क इत्यादि। अ की मात्रा के चिह्न () से आप परिचित हैं। अ की भाँति किसी शब्द में आ के भी जुड़ने से अकार की मात्रा ही लगती है, जैसे- मंडल + आकार = मंडलाकार। मंडल और आकार की संधि करने पर (जोड़ने पर) मंडलाकार शब्द बनता है और मंडलाकार शब्द का विग्रह करने पर (तोड़ने पर) मंडल और आकार दोनों अलग होते हैं। नीचे दिए गए शब्दों की संधि-विग्रह कीजिए-

संधि-

नील + आभ = ……………..

नव + आगंतुक = ……………….

विग्रह-

सिंहासन = …………….

मेघाच्छन्न = …………….

उत्तर-

संधि-

नील + आभ = नीलाभ

नव + आगंतुक = नवागंतुक

विग्रह-

सिंहासन = सिंह + आसन

मेघाच्छन्न = मेघ + आच्छन्न