अध्याय-6:सजीव- विशेषताएँ एवं विकास

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सजीव

एक या कई कोशिकाओं से बने सभी प्राणियों को सजीव कहा जाता है। सजीव कई प्रकार के कार्य करने की क्षमता रखते हैं, जैसे कि सांस लेना,  प्रजनन करना, बढ़ना और विकसित होना, खाना, अपने पर्यावरण के साथ बातचीत करना और प्रतिक्रिया करना।

दूसरे शब्दों सजीव की परिभाषा यह है कि पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवितों को जिनमें जीवन पाया जाता है, उन्हें सजीव कहा जाता है। सजीव प्राणी अपने पर्यावरण के साथ ऊर्जा और पदार्थ का आदान-प्रदान करने में सक्षम होते हैं।

मनुष्य, गाय, जिराफ, केकड़े, शार्क, व्हेल, घोंघे, कीड़े,  लाइकेन, पौधे , कवक, मूंगा और सूक्ष्म जीवाणु सभी जीवित प्राणी हैं, अर्थात ये सभी सजीव हैं।

सभी जीवित प्राणियों कि एक प्रमुख विशेषता यह होती है कि इनमें जीवन पाया जाता है। इसके विपरीत जिनमें जीवन नहीं होता है उन्हें निर्जीव कहा जाता है, उदाहरण के लिए चट्टानें, हवा, पानी, इत्यादि।

जीवित प्राणियों जिन्हे कि सजीव कहा जाता है, उन्हें परिभाषित करना आसान नहीं होता है, क्योंकि हमारे ग्रह पर जीवों की एक विशाल संख्या है, और ये सभी जीव किसी न किसी प्रकार से एक दूसरे से बहुत अलग होते हैं।

सजीव प्राणी निर्जीव से कई प्रकार से भिन्न हैं, जैसे कि –

  • पोषण- सजीव पर्यावरण से या अन्य प्राणियों से अपने अस्तित्व को बनाए रखने के लिए आवश्यक सामग्री ग्रहण करते हैं।
  • क्रिया- सजीव, अन्य जीवित प्राणियों, निर्जीवों और पर्यावरण के साथ कुछ न कुछ क्रियाएं करते हैं।
  • जनन- एक ही प्रजाति के नए प्रकार के सजीवों को जन्म देने के लिए सजीव जनन की क्रिया करते हैं।
  • मृत्यु- सभी सजीवों का अंत निश्चित होता है।

सजीवों के लक्षण और विशेषताएं

सजीवों के लक्षण और प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं-

सभी सजीव कोशिकाओं से बने होते हैं

सभी जीवित प्राणी के संगठन की मूल इकाई कोशिका होती है। इसका मतलब है कि सबसे जटिल प्राणियों (जैसे स्तनधारी) से लेकर सबसे सरल (जैसे बैक्टीरिया ) तक, सभी सजीव कोशिकाओं से बने हैं।

हालांकि उनकी कोशिकाओं में जटिलता के विभिन्न स्तर होते हैं: कुछ सरल होते हैं और कुछ अधिक जटिल होते हैं इसी कारण से वे अलग-अलग कार्य करते हैं और उनकी रचनाएं, आकार और अंग अलग-अलग होते हैं।

सभी सजीव सांस लेते हैं

सभी जीवित प्राणियों का एक महत्वपूर्ण कार्य श्वसन होता है। श्वसन के माध्यम से, जीव कई प्रकार की गैसों (जैसे कि ऑक्सीजन और नाइट्रोजन) को अपने शरीर में अंदर लेते हैं, और फिर कुछ अन्य गैस (जैसे कि कार्बन डाईऑक्साइड) को शरीर से बाहर निकालते हैं।

सजीव प्रजनन करते हैं

प्रजनन यकीनन जीवित प्राणियों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषताओं में से एक है। यह पृथ्वी पर रहने वाले जीवों की कई प्रजातियों के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रजनन से ही कोई भी सजीव अपनी आगे की पीढ़ी को पैदा करता है या नए सजीव बनता है।

सजीवों में प्रजनन दो तरह से हो सकता है: अलैंगिक या यौन रूप से।

यौन प्रजनन

यौन प्रजनन अधिकतर बहुकोशिकीय जीवों द्वारा किया जाता है जोकि यूकेरियोटिक कोशिकाओं से बने होते हैं।

अलैंगिक प्रजनन

यह एक प्रकार का प्रजनन है जो बैक्टीरिया, आर्किया और प्रोकेरियोटिक कोशिका वाले एककोशिकीय जीवों में होता है। इसके अतिरिक्त कुछ कवक में और कई प्रकार के पौधों में भी अलैंगिक प्रजनन होता है।

सजीवों में उपापचय होता है

सभी सजीव भोजन और पोषक तत्वों से ऊर्जा प्राप्त करते हैं, जिससे वे अपने कार्यों और गतिविधियों को करते हैं। भोजन के बिना इनका बढ़ना और विकसित होना संभव नहीं है।

सजीवों में विकास होता है

सभी जीवित चीजें विकास करने में सक्षम होती हैं। वृद्धि किसी भी जीव की आकार में वृद्धि करने की क्षमता है, हर सजीव पोषक तत्वों , भोजन , पानी आदि का प्रयोग करके एक निश्चित वृद्धि तक विकास करता है।

सजीव एक जीवन चक्र से गुजरते हैं

प्रत्येक जीवित प्राणी एक जीवन चक्र का पालन करता है, यह चक्र उसके जन्म से लेकर मृत्यु तक का समय होता है। हर प्राणी का जीवन चक्र एक दूसरे से बहुत भिन्न हो सकते हैं, और यही कारण है कि कुछ जीवित चीजें लंबे समय तक जीवित रहती हैं और धीमी गति से जीवन व्यतीत करती हैं, जबकि कुछ अन्य जल्दी मर जाते हैं।

प्रत्येक जीवन चक्र में निम्नलिखित चरण होते हैं:

  • जन्म- दुनिया में एक प्रजाति के एक नए जीव की उत्पत्ति या तो गर्भ से, या अंडे से या पूर्वजों की कोशिका से होती है। अर्थात प्रत्येक सजीव का जन्म किसी न किसी प्रकार से होता है।
  • विकास- जन्म के बाद हर सजीव में किसी न किसी प्रकार का विकास होता है।  उदहारण के लिए शरीर का बढ़ना, नए अंगो का बनना, चलना, पर्यावरण से बात करना इत्यादि।
  • प्रजनन- यह वह चरण है जिसमें सजीव अपने जैसे नए सदस्यों को दुनिया में लाते हैं।
  • बुढ़ापा और मृत्यु- प्रत्येक सजीव एक समय के बाद बूढा हो जाता है और अंत में उसकी मृत्यु हो जाते है। सजीवों के जीवन चक्र का यही अंतिम चरण होता है।

सजीव कितने प्रकार के होते हैं?

सर्वप्रथम सजीवों को या तो एक पौधे या एक जानवर के रूप में वर्गीकृत किया गया था। आगे चलकर सजीवों के प्रकार के बारे में कई खोजें हुई और उनके आधार पर सजीव को कई प्रकार से विभाजित किया गया। जैसे कि-

कोशिकाओं के आधार पर हम सजीवों को दो प्रकार से विभाजित कर सकते हैं |

एककोशिकीय जीव- जिनके शरीर एक ही कोशिका से बने होते हैं। उदाहरण के लिए: अमीबा, पैरामीशिया और सूक्ष्म जीव।

बहुकोशिकीय जीव- जिनके शरीर विभिन्न प्रकार की कोशिकाओं से बने होते हैं | जैसे इंसान, जानवर, मुर्गियां, पेड़, मछली आदि।

अगर हम सजीवों का वर्गीकरण जगत के हिसाब से करें, तो सजीव पांच प्रकार के हो सकते हैं –

  • मोनेरा जगत- जिसमें बैक्टीरिया, नीला-हरा शैवाल (सायनोबैक्टीरिया) पाए जाते हैं।
  • प्रॉटिस्टा जगत- जिसमें प्रोटोजोआ और विभिन्न प्रकार के शैवाल पाए जाते हैं।
  • कवक जगत- इसमें मोल्ड, मशरूम, खमीर, फफूंदी आदि पाए जाते हैं।
  • पादप जगत- इसमें सभी प्रकार के पौधे, फूल आदि पाए जाते है। (पढ़िए पादप कोशिका किसे कहते हैं? )
  • जंतु जगत- इसमें कीड़े, मछली, उभयचर, सरीसृप, पक्षी और स्तनधारी जैसे जीव पाए जाते हैं। ( जानिए जंतु कोशिका किसे कहते हैं? )

आवास और अनुकूलन:

  • वह स्थान जहाँ एक जीव रहता है, उसे उसका आवास कहा जाता है।
  • आवास में दो घटक होते हैं – जैविक (सजीव) और अजैविक (निर्जीव)।
  • जीवित घटकों में मानव और अपघटक सहित पादप, जंतु शामिल होते हैं।
  • आवास को प्रभावित करने वाले और जीवों के जीवित रहने के लिए कई अजैविक कारक तापमान, प्रकाश, जल, वायु और मृदा हैं।
  • पादप और जंतु ऐसे लक्षण प्रदर्शित करते हैं जो उन्हें विशिष्ट आवास में जीवित रहने में सहायता करते हैं। इसे अनुकूलन कहा जाता है।

विभिन्न आवासों के माध्यम से यात्रा:

  • जल में रहने वाले जीवों को जलीय कहा जाता है, जबकि भूमि पर रहने वाले जीवों को स्थलीय कहा जाता है।
  • आवास के आधार पर, जंतु जलीय (जल में रहने वाले), स्थलीय (भूमि पर रहने वाले), जलस्थली (भूमि और जल दोनों पर रहने वाले), या वृक्षवासी (पेड़ों पर रहने वाले) हो सकते हैं।
  • अपघटक जीवाणु और कवक, जैसे जीव हैं, जो पादपों और जंतुओं के क्षय के लिए उत्तरदायी होते हैं।
  • विषमपोषी जीव: जीव जो अपना भोजन स्वयं तैयार नहीं कर सकते हैं, जैसे कि जंतु।

उद्दीपन:-

हम आस-पास होने वाले परिवर्तनों के प्रति अनुक्रिया करते हैं वातावरण में होने वाले परिवर्तनों को उद्दीपन कहते हैं।

उदाहरण, जब रात्रि में हम रसोई घर में बल्ब प्रदीप्त कर देते हैं तो कॉकरोच अचानक अपने छिपने के स्थान में भाग जाते हैं।

उत्सर्जन:-

प्रत्येक जीव में कोशिकीय उपापचयी क्रियाओं (metabolic activities) के फलस्वरूप कई प्रकार के अपशिष्ट उत्पाद (waste products) बनते हैं, जो उसके शरीर के लिये निरर्थक एवं हानिकारक होते हैं। इन अपशिष्ट उत्पादों को शरीर से निष्कासित करने की जैव-क्रिया को उत्सर्जन (excretion) कहते हैं। निम्न श्रेणी के अनेकानेक जन्तु अपशिष्ट पदार्थों को शरीर की सतह से विसरण द्वारा उत्सर्जित करते हैं। अनेक उच्च श्रेणी के अकशेरुकी तथा कशेरुकी प्राणियों में इन अपशिष्ट पदार्थों के निष्कासन के लिए विशिष्ट अंग पाये जाते हैं, जो सम्मिलित रूप से सम्बन्धित प्राणि में उत्सर्जन तन्त्र (excretory system) का निर्माण करते हैं। शरीर का अपशिष्ट पदार्थ सजीवों द्वारा निष्कासन के प्रक्रम को उत्सर्जन कहते हैं।

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आवास :-

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किसी सजीव का वह परिवेश जिसमें वह रहता है, उसका आवास कहलाता है। अपने भोजन, वायु, शरण-स्थल एवं अन्य आवश्यकर्ताओं के लिए जीव अपने आवास पर निर्भर रहती है। पृथ्वी पर जितने भी आवास स्थित हैं वह सभी प्राकृतिक आवास जीवमंडल के भाग हैं। हम जानते हैं कि हमारी पृथ्वी परिवर्तनशील है जिसके कारण प्राकृतिक आवास में परिवर्तित होते रहते हैं। लगभग अरब वर्षों से प्राकृतिक आवास में अनेकों प्रकार के जीव की प्रजातियां आती रही हैं और समाप्त होती रही है जिनके रहने का माहौल अलग अलग था। किसी भी आवास के परिवेश में जंतुओं का विशेष रूप से निर्मित शरीर उन्हें जीवित रहने में सहायता प्रदान करता है।

उदाहरण के लिए; तालाब मछली का निवास स्थान है। हमारा घर हमारा निवास स्थान है। एक पेड़ एक चिड़िया के लिए एक निवास स्थान है।

आवास के प्रकार: –

जीव के निवास स्थान के आधार पर आवास को तीन प्रकार या तीन भागों में बांटा गया है, जिनका का वर्गीकरण निम्न है-

  • जलीय आवास (Aquatic Habitat)
  • स्थलीय आवास (Terrestrial Habitat)
  • वृक्षीय/वायवीय आवास (Aerial Habitat)

जलीय आवास (Aquatic Habitat) –

ऐसा आवास, जिसमें मछली और अन्य जलीय जीव जंतु (जल में रहने वाले जीव) निवास करते हैं, उसे जलीय आवास कहते हैं। जलीय आवास के अंतर्गत झीलें, पानी के स्रोत, तालाब, समुंद्र और नदिया इत्यादि आते हैं। जलीय आवास में मछली और अन्य प्रकार के जल मे रहने वाले जीव जंतु निवास करते हैं।

Aquatic habitat Images, Stock Photos & Vectors | Shutterstock

स्थलीय आवास (Terrestrial Habitat) –

ऐसा आवास जहां पर मनुष्य और अन्य स्थलीय जीव निवास करते हैं उसे स्थलीय आवास कहते हैं। इस आवास के अंतर्गत जंगल, रेगिस्तान, पहाड़ी क्षेत्र इत्यादि आते हैं। जिसमें जमीन ऊपर होता है और इस पर जीव जंतु रहते हैं।

Land Habitats | Different Habitat Types | DK Find Out

वृक्षीय/वायवीय आवास (Aerial Habitat) –

वृक्षीय/वायवीय आवास में कीड़े-मकोड़े, चिड़िया, चमगादर इत्यादि जैसे जीव हवा और वृक्षों पर निवास करते हैं। सामान्यतः वायु रहने के लिए उपयुक्त माध्यम नहीं है परंतु कुछ उड़ने वाले जीव वायवीय प्रवेश के लिए अनुकूल हो गए हैं।

अनुकूलन :-

जिन विशिष्ट संरचनाओं अथवा स्वभाव की उपस्थिति किसी पौधे अथवा जंतु को उसके परिवेश में रहने के योग्य बनाती है , अनुकूलन कहलाता हैं। अनुकूलन में जीव जंतु प्रकृति द्वारा उपलब्ध परिवेश या पर्यावरण को अपनाकर, उस परिवेश के अनुसार खुद को ढाल कर उस परिस्थिति में रहते हैं। जीव जंतु प्रकृति द्वारा उपलब्ध होने वाले परिस्थिति को उसी के अनुकूल ढाल लेते हैं और उसमे अपने अस्तित्व को बनाए रखते हैं।

सभी सजीवों अर्थात जीव जंतु में कुछ विशेष रचनाएं होती हैं जिनके कारण वह उपलब्ध होने वाले परिवेश में रहते हैं। पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के जीव जंतु अपने रहने के लिए अलग-अलग परिवेश को अपनाकर उसमें रहने के लिए अनुकूलित हो गए हैं।

पौधों की तरह ही जीव जंतुओं को भी विभिन्न प्रकार के आवासों में रहने में कठिनाइयां आती हैं परंतु वह इन कठिनाइयों को अपनाकर विभिन्न प्रकार के आवासों में रहने के लिए अनुप्रीत हो गए हैं।

अनुकूलन के प्रकार: –

  • जलीय अनुकूलन (Aquatic Adaptions)
  • मरुस्थलीय अनुकूलन (Desert Adaptions)
  • वृक्षीय अनुकूलन (Arboreal Adaptions)
  • स्थलीय अनुकूलन (Terrestrial Adaptions)
  • पर्वतीय क्षेत्र अनुकूलन (Mountain Regions Adaptions)

जलीय अनुकूलन:

ऐसे जीव जो समुंद्र में रहने के लिए अनुकूलित हो गए हैं वह सभी जीव जलीय अनुकूलन के अंतर्गत आते हैं। मछलियां समुंद्री जीव है जो समुद्र में रहने के लिए अनुकूलित हो गई है।

Sea turtles may not survive human-driven temperature changes • Earth.com

मरुस्थलीय अनुकूलन:

ऐसे जीव जो मरुस्थल में रहने के लिए अनुकूलित हो गए हैं, वह सभी जीव मरुस्थलीय अनुकूलन के अंतर्गत आते हैं। मरुस्थल में रहने वाले सभी जीव जंतुओं ने अपने आप को उसी के अनुसार अनुकूलित कर लिया है। मरुस्थल में रहने वाले जीव बिना पानी के रहने, पानी का संरक्षण करने, ऊंचे तापमान में रहने और शत्रु से बचने के तरीकों को अपनाकर अपने आप को मरुस्थल के अनुकूलित कर लिया है। मरुस्थल में रहने वाले जीव जंतुओं को कृंतक के नाम से भी जाना जाता है।

desert | Definition, Climate, Animals, Plants, & Types | Britannica

मरुस्थलीय अनुकूलन के कुछ लक्षण –

  • मरुस्थल में रहने वाले जंतु सूखे बीज खाते हैं उन्हें पानी की आवश्यकता नहीं होती है।
  • कुछ मरुस्थलीय जीव जमीन में गहरी सुरंग खोदकर रहते हैं जिससे वे सूर्य की सीधी रोशनी से बच सकें।
  • मरुस्थल में रहने वाली छिपकली अपने लंबे और पतले पैरों का प्रयोग करते हुए अपने शरीर का संपर्क भूमि में नहीं होने देती हैं।
  • मरुस्थल में रहने वाले जीव अपने शत्रुओं से बचाव के लिए सुरक्षात्मक रंगों और शरीर पर पाए जाने वाले कांटो का प्रयोग करते हैं।
  • मरुस्थलीय जीव अपने लंबे और गद्दीदार पैरों की सहायता से भोजन और पानी की तलाश दूर-दूर तक आसानी से घूमकर कर लेते हैं।

वृक्षीय अनुकूलन:

ऐसे जीव जो वृक्षो पर रहने और चलने के लिए अनुकूलित हो गए हैं, वह सभी जीव मरुस्थलीय अनुकूलन के अंतर्गत आते हैं। वृक्षीय अनुकूलन के अंतर्गत आने वाले जीव पेड़ों पर ही रहते हैं, चलते हैं, शिकार करते हैं और अन्य क्रिया भी कर लेते हैं।

इस अनुकूलन के अंतर्गत लंगूर, लाल पांडा इत्यादि जीव जंतु आते हैं जो आसानी से वृक्षों पर चढ़ने और उतरने के लिए होते हैं।

13 of the Cutest Tree-Dwelling Animals in the World

वृक्षीय अनुकूलन के कुछ लक्षण –

  • वृक्षीय अनुकूलन में रहने वाले जीवो के शरीर मजबूत होते हैं और इनके पैरों की मजबूती भी शरीर को ऊपर चढ़ने और उतरने में सहायता प्रदान करती है।
  • वृक्षीय अनुकूलन वाले जीव अपने विकसित पंजों से अपनी अच्छी पकड़ बना लेते हैं।
  • वृक्ष पर चिपकने वाला मेढ़क के अंदर चिपकने वाली गद्दी पाई जाती हैं जिसकी सहायता से आसानी से चढ़ते और उतरते है।

स्थलीय अनुकूलन:

ऐसे जीव जो स्थल पर रहने और चलने के लिए अनुकूलित हो गए हैं, वह सभी जीव स्थलीय अनुकूलन के अंतर्गत आते हैं। इन जीवों के अंदर मनुष्य भी एक ऐसा जीव है जो स्थल पर निवास करता है।

Difference Between Aquatic and Terrestrial Animals | Definition, Habitat,  Adaptations, Features

पर्वतीय क्षेत्र अनुकूलन:

पर्वतीय क्षेत्रों में रहने वाले जीव जंतु भी पर्वत पर रहने के लिए अनुकूलित हो गए हैं। पर्वत पर रहने वाले जीव जंतुओं के शरीर पर मोटी चमड़ी वाली खाल होती है और उस पर अधिक मात्रा में बाल होते हैं।

इनके शरीर पर यह बाल, इन्हें गरम रखने का कार्य करते हैं जो उष्मा का आदान-प्रदान बाहर नहीं होने देते हैं। पर्वतीय क्षेत्रों पर पाई जाने वाली बकरी के खुर मजबूत होते हैं बकरी के यह खूर उसे पहाड़ों पर चढ़ने और उतरने में बहुत ही सहायता करते हैं।

पर्वतीय क्षेत्रों में पाए जाने वाले तेंदुए के पैर व अंगुलियों सहित पूरे शरीर पर मोटे और रोयेदार बाल पाए जाते हैं जो उसे पर्वतीय क्षेत्रों और बर्फीले क्षेत्रों में गरम रखने का कार्य करते हैं।

Asia High Mountains | Initiatives | WWF

जैव घटक :-

पारिस्थितिकी तंत्र के संजीव घटकों को जैव घटक कहते हैं। इसमें पेड़-पौधे तथा जन्तु होते हैं।

जन्तु:-

जैविक घटकों के मुख्य घटक पर्यावरण में रहने वाले सभी जीव-जन्तु सम्मिलित है, जिसमे जलचर, नभचर, एवं स्थलीय जीव शामिल है | इसके अंतर्गत स्वपोषी एवं परपोषी प्राणियों का विभाजन किया गया है |

वनस्पति:

वनस्पति समुदाय के अंतर्गत परिस्थितिकी में विद्यमान प्रत्येक प्रकार के पादप, पौधे, वृक्ष आदि की हजारों-लाखों प्रजातिया सम्मिलित की गई है |

सूक्ष्म जीव:

सूक्ष्म जीव पर्यावरण में अहम् भूमिका निभाते है, जिसमे सभी प्रकार के कवक, शिवाल, बैक्टीरिया, जीवाणु आदि शामिल किये गए है |

मनुष्य:

मनुष्य भी परिस्थितिकी के जैविक घटक का मुख्य बिंदु है, एवं पर्यावरण के लिए आवश्यक प्राणी है |

अजैव घटक:-

किसी पारिस्थितिक तन्त्र में पाए जाने वाले सभी निर्जीव पदार्थ उसके अजैवक घटक हैं।

जैसे:- चट्टान, मिट्टी, वायु एवं जल आदि।

सूर्य का प्रकाश एवं ऊष्मा भी परिवेश के अजैव घटक हैं।

ताप एवं प्रकाश:

प्रकाश एवं ताप जैविक घटकों के पोषण एवं जीवित रहने के लिए अत्यंत जरूरी है, क्योकि प्रकाश से ही पौधे अपना भोजन बनाते है |

मृदा:

विभिन्न प्रकार के कार्बनिक एवं अकार्बनिक कणों से संयुक्त होकर बने पदार्थ को मृदा या मिटटी कहते है, जो वनस्पति के लिए जरूरी है |

आर्द्रता:

जलवायु परिवर्तन एवं सन्तुलन हेतु आर्द्रता आवश्यक तत्व है |

हवा एवं स्थलाकृति:

हवा के बिना प्राणीमात्र का अस्तित्व संभव नहीं एवं स्थलाकृति किसी जगह का आकार है, जो किसी ग्रह की पहचान के लिए आवश्यक है | |

अंकुरण :-

अंकुरण क्रिया उस क्रिया को कहते हैं, जिसमें बीज एक पौधे में बदलने लगता है। इसमें अंकुरण की क्रिया के समय एक छोटा पौधा बीज से निकलने लगता है। यह मुख्य रूप से तब होता है, जब बीज को आवश्यक पदार्थ और वातावरण मिल जाता है। इसके लिए सही तापमान, जल और वायु की आवश्यकता होती है। रोशनी का हर बीज के लिए होना अनिवार्य नहीं है, लेकिन कुछ बीज बिना रोशनी के अंकुरित नहीं होते हैं। बीज से नए पौधे का प्रारंभ है, जब बीज से अंकुरण निकल आता है तो इस प्रक्रिया को अंकुरण कहते हैं।

प्रजनन :-

जिसमें कोई जीव अपने ही समान एक नए जीव की उत्पत्ति करता है, यानी जीवों द्वारा अपनी प्रजाति को बढ़ाने के लिए अपने समान ही जीव यानी संतान उत्पन्न करने की क्रिया को प्रजनन कहते हैं। पृथ्वी पर उपस्थित सभी प्राणियों में प्रजनन होता है। भिन्न-भिन्न प्रकार के प्राणी अलग-अलग तरह से प्रजनन करते हैं। कुछ प्राणी अंडे देते हैं जिसमें से बाद में जीव की उत्पत्ति होती है। ऐसे प्राणियों को अंडज प्रजाति का प्राणी कहा जाता है, जैसे पक्षी और सरीसृप आदि। कुछ प्राणी सीधे शिशु को जन्म देते हैं, ऐसे प्राणियों को स्तनपायी प्राणी कहा जाता है, जैसे मनुष्य, सिंह, हाथी, लोमड़ी, भेड़िया, कुत्ता, चूहा, खरगोश आदि। प्रजनन क्रिया संसार में जीवों प्रजाति के अस्तित्व को बचाये रखने के लिये आवश्यक होती है  जीव-जंतु प्रजनन द्वारा अपने समान संतान उत्पन्न करते हैं।

प्रजनन के दो मुख्य रूप होते हैं-

यौन प्रजनन: एक जीव अपने माता-पिता में से प्रत्येक से आनुवंशिक जानकारी को जोड़ता है और आनुवंशिक रूप से अद्वितीय होता है। समुद्री कछुए एक ऐसे जानवर का उदाहरण हैं जो यौन रूप से प्रजनन करता है।

यौन प्रजनन के लिए आम तौर पर दो विशेष जीवों के यौन संपर्क की आवश्यकता होती है, जिन्हें युग्मक कहा जाता है, जिसमें सामान्य कोशिकाओं के गुणसूत्रों की संख्या आधी होती है और अर्धसूत्रीविभाजन द्वारा बनाए जाते हैं।

अलैंगिक प्रजनन: एक माता-पिता आनुवंशिक रूप से समान संतान बनाने के लिए स्वयं की प्रतिलिपि बनाते हैं। एक वॉल्वॉक्स (हरा शैवाल) एक ऐसे जीव का उदाहरण है, जो अलैंगिक रूप से प्रजनन करता है।

लैंगिक प्रजनन एक प्रकार का प्रजनन है जिसमें युग्मकों का संलयन या गुणसूत्रों की संख्या में परिवर्तन शामिल नहीं होता है। 

एककोशिकीय या बहुकोशिकीय जीवों से अलैंगिक प्रजनन द्वारा उत्पन्न होने वाली संतानें अपने एकल माता-पिता के जीनों के पूरे सेट को प्राप्त करती हैं। अलैंगिक प्रजनन एकल-कोशिका वाले जीवों जैसे कि आर्किया और बैक्टीरिया के लिए प्रजनन का प्राथमिक रूप है।

  • कुछ जंतु अंडे देते हैं।
  • कुछ जंतु शिशु को जन्म देते हैं।

गति :-

सभी सजीव एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाते हैं तथा उनके शरीर मे अन्य प्रकार की गति भी करते हैं।

भोजन :-

भोजन सजीवों को उनकी वृद्धि के लिए आवश्यक ऊर्जा प्रदान करता है।

वृद्धि :-

जंतुओं के बच्चे भी वृद्धि कर वयस्क हो जाते है।

श्वसन क्रिया :-

हम वायु से ऑक्सीजन लेते है और कार्बनडाइऑक्साइड को श्वास द्वारा बाहर निकल देते है।

  • श्वसन सभी सजीवों के लिए आवश्यक है।
  • केंचुआ त्वचा द्वारा साँस लेता हैं।
  • मछली गिल द्वारा साँस लेते है।

पौधे पत्तियाँ सूक्ष्म रन्धों द्वारा वायु को अंदर लेती है।

सजीव में श्वसन, उत्सर्जन, उद्दिपन के प्रति अनुक्रिया, प्रजनन, गति एवं वृद्धि, तथा मृत्यु होती हैं। अल्प अवधि में किसी एक जीव के शरीर में होने वाले ये छोटे-छोटे परिवर्तन पर्यनुकूलन कहलाते हैं।

NCERT SOLUTIONS

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 93)

प्रश्न 1 आवास किसे कहते हैं?

उत्तर- वह परिवेश जिसमें पौधें और जंतु रहते हैं, उनका आवास कहलाता हैं 

प्रश्न 2 कैक्टस मरुस्थल में जीवनयापन के लिए किस प्रकार अनुकूलित है?

उत्तर-

  • कैक्टस वाष्पोसर्जन द्वारा जल की बहुत काम मात्रा निष्कासितकरता हैं |  
  • पत्तियां या तो बहुत छोटी होती हैं या वे कांटे के रूप में होती है, जो पत्तिया से होने वाले वाष्पोंसर्जन के कारण होने वाले कल ह्रास में कमी लाती हैं |
  • कैक्टस में दिखाई पड़ने वाले पत्तियों जैसी संरचना वास्तव में इसका ताना है |
  • इन पौधें में प्रकाश – संश्लेषण की क्रिया ताने द्वारा होती है |
  • तना एक मोटी परत से ढका होता हैं, जिससे पौधें को जल संरक्षण में सहायता मिलाती हैं |
  • कैक्टस की जड़ें जल अवशोषण के लिए मिट्टी में बहुत गहराई तक चली जाती है | 

प्रश्न 3 रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(क) पौधे एवं जंतुओं में पाए जाने वाले विशिष्ट लक्षण जो उन्हें आवास विशेष में रहने योग्य बनाते हैं, —————— कहलाते हैं।

(ख) स्थल पर पाए जाने वाले पौधें एवं जंतुओं के आवास को —————— आवास कहते हैं।

(ग) वे आवास जिनमें जल में रहने वाले पौधे एवं जंतु रहते हैं, —————— आवास कहलाते हैं।

(घ) मृदा, जल एवं वायु किसी आवास के —————— घटक हैं।

(घ) हमारे परिवेश में होने वाले परिवर्तन जिनके प्रति हम अनुक्रिया करते हैं, —————— कहलाते हैं।

उत्तर-

(क) अनुकूलन

(ख) स्थलीय

(ग) जलीय

(घ) अजीव

(ड) उद्दीपन

प्रश्न 4 निम्नलिखित सूची में कौन-सी निर्जीव वस्तुएँ हैं?

हल, छत्राक, सिलाई मशीन, रेडियो, नाव, जलकुंभी, केंचुआ ।

उत्तर- हल, सिलाई मशीन, रेडियो, नाव |

प्रश्न 5 किसी ऐसी निर्जीव वस्तु का उदाहरण दीजिए जिसमें सजीवों के दो लक्षण दिखाई देते हैं।

उत्तर- उदाहरण: कार

  1. उत्सर्जन
  2. ऑक्सीजन की आवश्यकता

प्रश्न 6 निम्न में से कौन-सी निर्जीव वस्तुएँ किसी समय सजीव का अंश थीं?

मक्खन, चमड़ा, मृदा, ऊन, बिजली का बल्ब, खाद्य-तेल, नमक, सेब, रबड़।

उत्तर- मक्खन, चमड़ा, ऊन, खाद्य तेल, सेब, रबड़ |

प्रश्न 7. सजीवों के विशिष्ट लक्षण सूचीबद्ध कीजिए?

उत्तर- सजीवों की सामान्य विशेषताएँ हैं

  1. वृद्धि
  2. श्वसन 
  3. भोजन की आवश्यकता
  4. उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया 
  5. उत्सर्जन 
  6. प्रजनन
  7. गति

प्रश्न 8 घास के मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले जंतुओं को अपना अस्तित्व बनाए रखने के लिए तीव्र गति क्यों आवश्यक है। (संकेत-घासस्थल आवासों में छिपने के लिए वृक्षों की संख्या बहुत कम होती है।

उत्तर- मैदानों में जतुओं के छिपने के लिए वृक्षों की संख्या बहुत काम होती हैं | चीता हिरन को खता है | बचने के लिए, हिरन चीते से तेज भागता हैं | इस प्रकार घास के मैदानों में जीवन के लिए गति बहुत महत्वपूर्ण होती हैं |