अध्याय-4: मुग़ल साम्राज्य

मुगल साम्राज्य

मुगल साम्राज्य अपने सक्षम शासकों के लिए जाना जाता है, जिन्होंने न केवल अपने साम्राज्य को संगठित किया बल्कि कुशलता से शासन भी किया। यह सुदृढ़ प्रशासनिक नीतियों और शासन के आदर्शों के कारण संभव हुआ।

मुगल वंश

मुगल शासकों के दो महान वंशों के वंशज थे। बाबर अपनी माता की ओर से चंगेज खान (चीन और मध्य एशिया की मंगोल जनजाति का शासक) का वंशज था और अपने पिता की ओर से तैमूर। मुगलों को चंगेज खान के साथ जुड़ना पसंद नहीं था क्योंकि उसने अपने जीवनकाल में कई निर्दोष लोगों को मार डाला था। इसके अलावा, वह उज्बेक्स से भी जुड़ा था जो उनके मंगोल प्रतियोगी थे। दूसरी ओर, मुगलों को अपने तैमूर वंश पर गर्व था क्योंकि उसने 1398 में दिल्ली पर कब्जा कर लिया था।

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मुगलों को अपने तैमूर वंश पर गर्व था

बाबर 1526-1530

1526 में पानीपत के मैदान में इब्राहिम लोदी एवं उसके अफ़गान समर्थकों को हराया 1527 में खानुवा में राणा सांग , राजपूत और उनके समर्थको को हराया और दिल्ली औरआगरा में मुग़ल नियंत्रण स्थापित किया।

A person in a garment

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हुमायूँ 1530-1540

पिता की वसीयत में एक प्रांत मिला शेर खान ने हुमायूँ को 1539 में चौसा में और 1540 में कन्नौज में पराजय किया। 1555 में दिल्ली पर पुन: कब्जा कर लिया।

अकबर 1556-1605

13 वर्ष की अल्पायु में अकबर सम्राट बना। 1556 -1570 के मध्य मालवा और गोंडवाना में सैन्य अभियान चलाए और रणथम्भौर पर कब्जा कर लिया। 1570-1585 के मध्य सैनिक अभियान किया। गुजरात, बिहार, बंगाल, उड़ीसा में अभियान चलाए। 1585-1605 के मध्य अकबर के साम्राज्य का विस्तार किया।उत्तर-पश्चिम , कांधार , कश्मीर , काबुल , दक्क्न, अहमदनगर।

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जहाँगीर 1605 -1627

जहाँगीर ने अकबर के सैन्य अभियानों को आगे बढ़ाया। मेवाड़ के सिसोदिया शासक अमर सिंह ने मुगलों की सेवा स्वीकार की। इसके बाद सिक्खों, अहोमों और अहमदनगर के खिलाफ अभियान चलाए गए, जो पूर्णत: सफल नहीं हुए।

शाहजहाँ 1627-1658

दक्क्न में सैन्य अभियान, अहमदनगर के विरुद्ध अभियान जिसमें बुंदेलों की हर हुई और ओरछा पर कब्जा कर लिया। अहमदनगर को मुगलों के राज्य में मिला लिया गया।

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औरंगज़ेब 1658-1707

उत्तर-पूर्व में अहोमों की पराजय हुई, मारवाड़ के राठौड़ राजपूतों ने मुगलों के खिलाफ विद्रोह किया। इसका कारण था उनकी आंतरिक राजनीती और उत्तराधिकार के मसलों में मुगलों का हस्तक्षेप। मराठा सरदार, शिवाजी के विरुद्ध मुगल अभियान प्रांरभ में सफल रहे।

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मुगलों के बीच उत्तराधिकार की परंपरा

मुगलों ने सहदायिकी विरासत की प्रथा का पालन किया। इसका मतलब था कि राजा की मृत्यु के बाद, संपत्ति उसके सभी पुत्रों को समान रूप से विरासत में मिली थी। वे वंशानुक्रम के नियम में विश्वास नहीं करते थे जिसके अनुसार बड़े पुत्र को पिता की संपत्ति विरासत में मिलती है। यही कारण था कि प्रत्येक मुगल राजकुमार सत्ता पर कब्जा करने के लिए अपने भाई के साथ होड़ करता था।

साम्राज्य विस्तार

सोलहवीं सदी के उत्तरार्ध से , इन्होंने दिल्ली और आगरा से अपने राज्य का विस्तार शुरू किया और सत्रहवीं शताब्दी में लगभग संपूर्ण महाद्वीप पर अधिकार प्राप्त कर लिया। उन्होंने प्रशासन के ढाँचे तथा शासन संबंधी जो विचार लागू किए , वे उनके राज्य के पतन के बाद भी टिके रहे। आज भारत के प्रधानमंत्री , स्वतंत्रता दिवस पर मुग़ल शासकों के निवासस्थान , दिल्ली के लालकिले की प्राचीर से राष्ट्र को संबोधित करते हैं।

मुगलों के अन्य शासकों से संबंध

• मुगलों ने शुरू में कई राजपूत राज्यों पर कब्जा कर लिया। बाबर और हुमायूँ के राजपूतों के साथ बहुत अच्छे संबंध नहीं थे।

• बाद में अकबर को यह एहसास हुआ कि चूंकि राजपूत बहादुर और साहसी थे, इसलिए मुगल सेनाओं के लिए उन्हें हराना आसान नहीं था।

• इसलिए, मुगलों ने राजपूतों के साथ एक वैवाहिक गठबंधन में प्रवेश किया। इससे उन्हें कई राजपूत नीतियों को प्रभावित करने में मदद मिली।

• मुगलों के प्रशासन में कई राजपूत शासकों को उच्च पद दिए गए।

• सिसोदिया राजपूतों ने शुरू में मुगलों की आधिपत्य को स्वीकार नहीं किया था। हालाँकि वे हार गए थे, लेकिन उन्हें मुगलों द्वारा सम्मानित किया गया था। उन्होंने कार्यभार के रूप में उन्हें अपनी जमीनें लौटा दीं। राजपूतों के साथ अन्य मुगल कुलीनों के समान व्यवहार करने की नीति ने उन्हें राजपूत राजाओं को प्रभावित करने में मदद की। कई राजपूत राजाओं ने मुगल शासकों के पक्ष में युद्ध लड़े।

• हालांकि, सभी राजपूत शासकों के मुगलों के साथ अच्छे संबंध नहीं थे।

• मुगलों के मराठों के साथ अच्छे संबंध नहीं थे। औरंगजेब के शिवाजी के अपमान ने मुगल-मराठा संबंधों को और खराब कर दिया।

• मुगलों के सिखों के साथ भी तनावपूर्ण संबंध थे।

मुग़ल सैन्य अभियान

प्रथम मुग़ल शासक बाबर (1526-1530) ने 1494 में फरघाना राज्य का उत्तराधिकार प्राप्त किया , तो उसकी उम्र केवल बारह वर्ष की थी। मंगोलो की दूसरी शाखा , उजबेगो के आक्रमण के कारण उसे अपनी पैतृक गद्दी छोड़नी पड़ी। अनेक वर्षों तक भटकने के बाद उसने 1504 में काबुल पर कब्जा कर लिया। उसने 1526 में दिल्ली के सुलतान इब्राहिम लोदी को पानीपत में हराया और दिल्ली और आगरा को अपने कब्जे में कर लिया। सोलहवीं शताब्दी :- बाबर ने पहली बार पानीपत के लड़ाई में युद्धों में तोप और गोलाबारी का इस्तेमाल किया।

उत्तराधिकार की मुग़ल पंपराएँ

मुग़ल ज्येष्ठाधिकार के नियम में विश्वास नहीं करते थे जिसमें ज्येष्ठ पुत्र अपने पिता के राज्य का उत्तराधिकारी होता था। इसके विपरीत, उत्तराधिकार में वे सहदायाद की मुग़ल और तैमूर वंशों की प्रथा को अपनाते थे जिसमें उत्तराधिकार का विभाजन समस्त पुत्रों में कर दिया जाता था।

मुग़लों के अन्य शासकों के साथ संबंध

मुग़लों ने उन शासकों के विरुद्ध लगातार अभियान किए , जिन्होंने उनकी सत्ता को स्वीकार करने से इंकार कर दिया। जब मुग़ल शक्तिशाली हो गए तो अन्य कई शासकों ने स्वेच्छा से उनकी सत्ता स्वीकार कर ली। राजपूत इसका एक अच्छा उदाहरण हैं।अनेकों घराने में अपनी पुत्रियों के विवाह करके उच्च पद प्राप्त किए। परंतु मेवाड़ के सिसोदिया वंश ने लंबे समय तक मुग़लों की सत्ता को स्वीकार करने से इंकार करते रहे।

मनसबदार और जागीरदार

मुग़लों की सेवा में आने वाले नौकरशाह ‘ मनसबदार ‘ कहलाए। ‘ मनसबदार ‘ शब्द का प्रयोग ऐसे व्यकितयों के लिए होता था , जिन्हें कोई मनसब यानि कोई सरकारी हैसियत अथवा पद मिलता था। यह मुग़लों द्वारा चलाई गई श्रेणी व्यवस्था थी ,

जिसके जरिए 1. पद ; 2. वेतन ; 3. सैन्य उत्तरदायित्व, निर्धारित किए जाते थे। पद और वेतन का निर्धारण जात की संख्या पर निर्भर था। जात की संख्या जितनी अधिक होती थी, दरबार में अभिजात की प्रतिष्ठा उतनी ही बढ़ जाती थी और उसका वेतन भी उतना ही अधिक होता था।

मनसबदार अपना वेतन राजस्व एकत्रित करने वाली भूमि के रूप में पाते थे, जिन्हें जागीर कहते थे और जो तकरीबन ‘ इक्ताओं ; के समान थीं। अंतिम वर्षों में औरंगजेब इन परिवर्तनों पर नियंत्रण नहीं रख पाया। इस कारण किसानों को अत्यधिक मुसिबतों का सामना करना पड़ा।

ज़ब्त और ज़मीदार

मुग़लों की आमदनी का प्रमुख साधन किसानों की उपज से मिलने वाला राजस्व था। अधिकतर स्थानों पर किसान ग्रामीण कुलीनों यानि की मुखिया या स्थानीय सरदारों के माध्यम से राजस्व देते थे। समस्त मध्यस्थों के लिए , चाहे वे स्थानीय ग्राम के मुखिया हो या फिर शक्तिशाली सरदार हों ,

मुग़ल एक ही शब्द -ज़मीदार -का प्रयोग करते थे। अकबर के राजस्वमंत्री टोडरमल ने दस साल (1570-1580) की कालावधि के लिए कृषि की पैदावार, कीमतों और कृषि भूमि का सावधनीपूर्वक सर्वेक्षण किया इन आँकड़ो के आधार पर, प्रत्येक फ़सल पर नकद के रूप में कर (राजस्व) निश्चित कर दिया गया। प्रत्येक सूबे (प्रांत) को राजस्व मंडलो में बाँटा गया और प्रत्येक की हर फ़सल के लिए राजस्व दर की अलग सूची बनायी गई। राजस्व प्राप्त करने की इस व्यवस्था को ‘ ज़ब्त ‘ कहा जाता था।

अकबर

अकबर के शासनकाल का इतिहास को तीन जिल्दों में लिखा है ‘‘ अकबरनामा ” 1. अकबर के पूर्वजों का बयान है। 2. अकबर के शासनकाल की घटनाओं का विवरण देती है। 3. आईने-अकबरी है जिसमें अकबर के प्रशासन, घराने, सेना, राजस्व, और साम्राज्य के भूगोल का ब्यौरा मिलता है।

अकबर की नीतियाँ

अबुल फ़जल के अकबरनामा , विशेषकर आईने-अकबरी में मिलता है। साम्राज्य की प्रांतों में बँटा हुआ था , जिन्हें ‘ सूबा ‘ कहा जाता था। सूबों के प्रशासक ‘ सूबेदार ‘ कहलाते थे, जो राजनैतिक तथा सैनिक, दोनों प्रकार के कार्यों का निर्वाह करते थे।

प्रत्येक प्रांत में एक वित्तीय अधिकारी भी होता था जो ‘ दिवान ‘ कहलाता था। कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सूबेदार को अन्य अफसरों का सहयोग प्राप्त था, जैसे कि बक्शी (सैनिक वेतनधिकारी), सदर (धार्मिक और धर्माथ किए जाने वाले कार्यों का मंत्री) ,

फ़ौजदार (सेनानायक) और कोटवाल (नगर का पुलिस अधिकारी) का अबुल फ़जल ने सुलह-ए -कुल के इस विचार पर आधारित शासन-दृष्टि बनाने में अकबर की मदद की।

NCERT SOLUTIONS

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 57)

प्रश्न 1 सही जोड़े बनाइए :-

उत्तर –

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प्रश्न 2 रिक्त स्थान भरें :-

  1. ______अक़बर के सौतेले भाई, मिर्ज़ा हाकिम के राज्य की राजधानी थी।
  2. दक्कन की पाँचों सल्तनत बरार, खानदेश अहमद नगर _______ और _____थी।
  3. यदि जात एक मनसबदार के पद और वेतन का द्योतक था तो सवार उसके _____ को दिखाता था।
  4. अकबर के दोस्त और सलाहकार अबुल फ़ज़्ल ने उसकी ________ के विचार को गढ़ने में मदद की जिसके द्वारा वह विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और जातियों से बने समाज पर राज्य कर सका।

उत्तर –

  1. काबुल अक़बर के सौतेले भाई, मिर्ज़ा हाकिम के राज्य की राजधानी थी।
  2. दक्कन की पाँचों सल्तनत बरार, खानदेश अहमद नगर बीजापुर और गोलकुंडा थी।
  3. यदि जात एक मनसबदार के पद और वेतन का द्योतक था तो सवार उसके सैन्य उत्तरदायित्व दिखाता था।   
  4. अकबर के दोस्त और सलाहकार अबुल फ़ज़्ल ने उसकी सुलह ए कुल के विचार को गढ़ने में मदद की जिसके द्वारा वह विभिन्न धर्मों, संस्कृतियों और जातियों से बने समाज पर राज्य कर सका।

प्रश्न 3 मुगल राज्य के अधीन आने वाले केंद्रीय प्रांत कौन से थे ?

उत्तर – मुग़ल राज्य के अधीन आने वाले केंद्रीय प्रांत – दिल्ली, लाहौर, पानीपत, आगरा,मेवाड़, मालवा, मारवाड़, आमेड़, चितौड़, अजमेर, मथुरा थे।

प्रश्न 4 मनसबदार और जागीर में क्या संबंध था ?

उत्तर – मनसबदार शब्द का प्रयोग ऐसे व्यक्तियों के लिए होता था जिन्हें कोई मनसब यानी कोई सरकारी हैसियत या पद मिलता था। मनसबदार अपना वेतन राजस्व एकत्रित करने वाली भूमि के रूप में पाते थे, जिन्हें जागीर कहते थे। जो तकरीबन इक्ताओ के समान थी। लेकिन जागीरों के पास केवल अपना राजस्व एकत्रित करने का अधिकार था। यह राजस्व उनके लिए उनके नौकर एकत्रित करते थे। अकबर के शासनकाल में जागिरो का सावधानीपूर्वक अनुकूलन किया जाता था ताकि इनका राजस्व मनसबदार के वेतन के तकरीबन बराबर रहे।

प्रश्न 5 मुगल प्रशासन में ज़मींदार की क्या भूमिका थी ?

उत्तर – जमींदार किसानों से राजस्व एकत्रित करके सरकार के राजस्व विभाग में जमा कराता था। वे गांव के शक्तिशाली मुखिया होते थे। वे सरकार तथा किसानों के बीच मध्यस्थ का काम करते थे। कुछ क्षेत्रों में जमींदार इतने शक्तिशाली होते थे कि मुग़ल प्रशाशको द्वारा शोषण किए जाने की स्थिति में वे विद्रोह कर सकते थे। कभी कभी एक ही जाति के जमींदार और किसान मुग़ल सत्ता के खिलाफ विद्रोह कर देते थे।

प्रश्न 6 शासन-प्रशासन संबंधी अकबर के विचारों के निर्माण में धार्मिक विद्वानों से होने वाली चर्चाएँ कितनी महत्वपूर्ण थी ?

उत्तर – अकबर की रूचि विभिन्न व्यक्तियों के धर्मों और रीती – रिवाजों में थी। ये चर्चाएं इसलिए ज्यादा महत्वपूर्ण होती थी क्योंकि अकबर को यह समझ आ गया था कि जो विद्वान धार्मिक रीती और मतांधता पर बल देते है, वे अक्सर कट्टर होते है। उनकी शिक्षाएँ प्रजा के बीच विभाजन पैदा करती है। ये अनुभव अकबर को सुलह – ए – कुल की नीति की ओर ले गए अर्थात अकबर ने सर्वत्र शांति की विचारधारा अपनाई। यह ही वह नीति थी जो सर्वत्र लागू की जा सकती थी जिसमें केवल सच्चाई , न्याय और शांति पर बल था। शासन के इस सिद्धांत को शाहजांह और जहांगीर ने भी अपनाया।

प्रश्न 7 मुगलों ने खुद को मंगोल की अपेक्षा तैमूर के वंशज होने पर क्यों बल दिया ?

उत्तर – वैसे तो मुग़ल दो महान शासको के वंशज थे। माता की ओर से मंगोल शासक और पिता की ओर से तैमूर वंशज लेकिन मुगल अपने आप को मुगल या मंगोल कहना पसंद नहीं करते थे। क्योंकि चंगेज खान मंगोल था और इनसे जुड़ी स्मृतियां सैकड़ो व्यक्तियों के नरसंहार से सम्बंधित थी अर्थात वह असंख्य लोगों के कत्ल कर चुका था। दूसरी तरफ मुगल तैमूर के वंशज होने पर गर्व का अनुभव करते थे क्योंकि उनके इस महान पूर्वज ने 1398 में दिल्ली पर कब्जा कर लिया था। इसलिए मुगल तैमूर के वंशज होने पर बल देते थे।