अध्याय-1: भोजन के घटक

भोजन

ऐसा कोइ भी पदार्थ जो शर्करा (कार्बोहाइड्रेट), वसा, जल तथा/अथवा प्रोटीन से बना हो और जीव जगत द्वारा ग्रहण किया जा सके, उसे भोजन कहते हैं। जीव न केवल जीवित रहने के लिए बल्कि स्वस्थ और सक्रिय जीवन बिताने के लिए भोजन करते हैं।

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भोजन क्यों आवश्यक हैं

सभी सजीव अर्थात पेड़ पौधे तथा जानवर को भोजन की आवश्यकता होती है। बिना भोजन के कोई भी सजीव नहीं रह सकता है। सभी सजीवों को जीवित रहने तथा कार्य करने के लिए उर्जा की आवश्यकता होती है, इस उर्जा को वे भोजन से प्राप्त करते हैं।

उर्जा के अलावे भी कई अन्य पदार्थ हमें देता है, जो हमें विभिन्न प्रकार की बीमारियों से बचाता है तथा हमारे शरीर को विकसित होने में सहायक होता है।

भोजन के घटक

भोजन में पाये जाने वाले पोषक तत्वों को भोजन के घटक कहते हैं। विभिन्न खाद्य पदार्थों में विभिन्न तरह के पोषक तत्व पाये जाते हैं।

भोजन के घटक मुख्यत: पाँच प्रकार के हैं, ये हैं कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन तथा खनिज। इनके अतिरिक्त हमारे भोजन में रूक्षांश तथा जल भी शामिल हैं, जिनकी हमारे शरीर को आवश्यकता है।

खाद्य पदार्थ

खाद्य पदार्थ दो तरह के होते हैं। एक मनुष्य के लिए और दुसरा जानवरों के लिए। जो पदार्थ कुदरत ने मनुष्य के लिए बनाए और मानव शरीर जो हजम कर पाता है और जिसमें सारे खनिज मिलते हैं, वह खाद्य पदार्थ है। प्रत्येक व्यंजन एक या एक से अधिक प्रकार की कच्ची सामग्री से बना होता है, जो हमें पादपों या जंतुओं से मिलते हैं।

पोषक तत्व

वैसे तत्व जो पोषण देते हैं, पोषक तत्व कहलाते हैं।

वे तत्व जो हमें वृद्धि और कार्य करने के लिए ऊर्जा देते है भोजन में सभी पोषक तत्व सही मात्रा, अनुपात व संतुलन में होना आवश्यक होता है। ये विभिन्न प्रकार के 50 पोषक तत्व हैं, जो शरीर को स्वस्थ रखते हैं। ग्रहण किये जाने वाले विभिन्न प्रकार के भोज्य पदार्थ – अनाज, दालें, सब्जियाँ, फल, दूध, मांस-मछली-अण्डे एवं खाद्य तेल से भी पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। उन्हें पोषक कहते है।

Components of Food

कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, वसा, विटामिन तथा खनिज लवणों को पोषक तत्व कहते है। इन खाद्य पदार्थों में कई अलग-अलग पोषक तत्व विद्यमान होते हैं। इन पोषक तत्वों को मुख्य रूप से छ: समूहों में विभक्त किया गया है-

  • कार्बोहाइड्रेट 
  • प्रोटीन
  • वसा
  • खनिज लवण
  • विटामिन
  • जल

कार्बोहाइड्रेट:- भोजन में कार्बोहाइडे्रट्स, मोनोसैकराइड्स (Monosaccharides), डाइसैकराइड्स (Disacchrides) एवं पॉलीसैकराइड्स (Polysaccharides) के रूप में पाया जाता है। मोनोसैकराइड्स शर्करा का सरलतम रूप है, जो हमारे द्वारा ग्रहण किये गये भोजन में ग्लूकोज, फ्रक्टोस एवं गैलेक्टोज के रूप में उपस्थित रहता है। डाइसैकराइड्स, सुक्रोज, माल्टोज एवं लेक्टोज तथा पॉजीसैकराइड्स, स्टार्च, डेक्सट्रीन तथा सैल्युलोज के रूप में उपस्थित रहता है। 

कार्बोहाइडे्रट्स आहार में ऊर्जा प्रदान करने वाले तत्वों में प्रमुख है। आहार में इसकी कमी होने पर ऊर्जा की कमी हो जाती है। हमारे भोजन में पाए जाने वाले मुख्य कार्बोहाइड्रेट, मंड तथा शर्करा के रूप में होते हैं। कार्बोहाइड्रेट मुख्य रूप से हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं। कार्बोहाइडे्रट्स मुख्य रूप से चावल, आलू, फल तथा कन्द वाले भोज्य पदार्थों में पाये जाते हैं। अत: यह ऊर्जा प्राप्ति का सबसे सस्ता साधन है। निम्न आय वर्ग के आहार की 80 प्रतिशत ऊर्जा की आवश्यकता इसी से पूर्ण होती है। आय बढ़ने के साथ-साथ इसके द्वारा पूर्ण की जाने वाले ऊर्जा के प्रतिशत में कमी आती जाती है।  कार्बोहाइड्रेट के स्रोत :- चावल, गेहूँ, आलू, शकरकंदी, मक्का, पपीता आदि।

प्रोटीन :- हमारे शरीर को प्रोटीन की आवश्यकता माँस-पेशियों के निर्माण तथा निष्क़िय कोशिकाओं व ऊतकों के पुनर्निर्माण के लिए होती है। हमारी पेशियाँ, अंग तथा यहाँ तक कि हमारा रक्त, अधिकतर प्रोटीन से बने होते हैं। यदि हम अपने आहार में प्रोटीन का सेवन नहीं करेंगे तो हमारी क्षतिग्रस्त कोशिकाओं का पुनर्निर्माण या नई कोशिकाओं का निर्माण नहीं हो पाएगा। हमारे आहार में प्रोटीन, पशु तथा पौधों, दोनों स्रोतों से प्राप्त होता है। प्रोटीन का अर्थ होता है, ‘‘पहले आने वाला, क्योंकि प्रोटीन अन्य पोषक तत्वों में एक महत्वपूर्ण तत्व है। पानी के बाद शरीर का सबसे बड़ा घटक प्रोटीन होता है। जैविक क्रियाओं में प्रोटीन की प्रमुख भूमिका होती है। बाल आयु वर्ग को दैनिक औसतन 60 ग्राम प्रोटीन की आवश्यकता होती है। प्रोटीन प्राणीज व वनस्पतिज दोनों ही तरह के खाद्य पदार्थों से प्राप्त होता है। मुख्य रूप से प्रोटीन मांस-मछली-अण्डे, दूध एवं दूध से बने 

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पदार्थों से मिलता है। मध्यम मात्रा में सूखे मटर, अनाज, दालें एवं सब्जियों से मिलता है। बैंगनी रंग खाद्य पदार्थ में प्रोटीन की उपस्थिति दर्शाता है। प्रोटीन की आवश्यकता शरीर की वृद्धि तथा स्वस्थ रहने के लिए होती है।

प्रोटीन की मात्रा (Protein ki matra):

नेशनल इंस्‍टीट्यूट ऑफ न्‍यूट्रीशन के मुताबिक जहां एक वयस्‍क पुरुष को प्रतिदिन 50 ग्राम प्रोटीन की आवश्‍यकता होती है, वहीं एक महिला को 46 ग्राम प्रोटीन की आवश्‍यकता होती है. एक गर्भवती महिला और स्‍तनपान करा रही महिला का प्रोटीन इंटेक ज्‍यादा होना चाहिए. उन्‍हें प्रतिदिन 72 ग्राम प्रोटीन की आवश्‍यकता होती है

यह सच है कि प्रोटीन सेहत के लिए बहुत फायदेमंद है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि आप बॉडी बनाने के लिए दिन भर प्रोटीन ही खाते रहें। आजकल बाजार में प्रोटीन शेक, प्रोटीन बार, प्रोटीन सप्लीमेंट आदि चीजें मिलने लगी हैं लेकिन इनकी बजाय प्राकृतिक चीजों से प्रोटीन हासिल करना ज्यादा फायदेमंद होता है।

राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार सामान्य रुप से भारतीय लोगों को प्रति किलो वजन के हिसाब से एक ग्राम प्रोटीन का सेवन करना चाहिए। इसे ऐसे समझें कि अगर किसी पुरुष का वजन 60 kg है तो उसे एक दिन में 60 gm प्रोटीन या अगर किसी महिला का वजन 45 kg है तो उसे एक दिन में 45 gm प्रोटीन का सेवन करना चाहिए।

हालांकि नवजात शिशुओं, युवाओं और गर्भवती महिलाओं को रोजाना के लिए जरुरी प्रोटीन की मात्रा बदल भी सकती है जैसे कि बच्चों और गर्भवती महिलाओं को थोड़ी अधिक मात्रा में प्रोटीन चाहिए होता है। इसलिए राष्ट्रीय पोषण संस्थान ने उम्र और लिंग के आधार पर भी प्रोटीन की रोजाना की जरुरत निर्धारित की है। आइये उस बारे में जानते हैं:

नवजात शिशु और बच्चे :

बच्चों के लिए भी प्रोटीन उतना ही ज़रुरी है जितना बड़ों के लिए। प्रोटीन बच्चों के शारीरिक विकास में अहम भूमिका निभाता है। आइये इस तालिका से समझें कि बच्चों को एक दिन में कितने ग्राम प्रोटीन खिलाना चाहिए।

0-6 महीने :   6.26 gm

6-12 महीने : 14. 20gm

1 से 3 साल : 16.70 gm

4 से 6 साल : 20.10 gm

7 से 9 साल : 29.50 gm

किशोरावस्था :  किशोरावस्था में आकर लड़के और लड़कियों दोनों के लिए ही प्रोटीन की ज़रुरत बढ़ जाती है। उन्हें प्रतिदिन नीचे बताए गये तालिका के अनुसार प्रोटीन का सेवन करना चाहिए।

10 से 12 साल (पुरुष) :     39.90 gm

10 से 12 साल (महिलायें) : 40.40 gm

13 से 15 साल (पुरुष) :      54.30 gm

13 से 15 साल (महिलायें) : 51.90 gm

16 से 18 साल ( पुरुष):     61.50 gm

16 से 18 साल (महिलाएं) :  55.50 gm

वयस्क : आमतौर पर वयस्कों में प्रोटीन की रोजाना की मात्रा उनके जीवनशैली के अनुसार निर्धारित की गयी है।

पुरुष (18 साल से अधिक) : 60 gm

महिलायें (18 साल से अधिक) : 55 gm

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गर्भावस्था एवं स्तनपान :

गर्भावस्था और स्तनपान के दौरान महिलाओं को प्रोटीन का सेवन नीचे दिए तालिका के अनुसार करना चाहिए।

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गर्भावस्था : 78 gm

स्तनपान (0-6 महीने) : 74 gm

स्तनपान ( 6-12 महीने) : 68 gm

प्रोटीन के स्रोत :- पादप से चना, मटर, राजमा, मूँग,सोयाबीन जंतु से मांस, अंडे, मछली, दूध, पनीर आदि।

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प्रोटीन के शाकाहारी और मांसाहारी स्रोत

प्रोटीन के शाकाहारी स्रोत

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सोयाबीन : सोयाबीन को प्रोटीन का सबसे अच्छा स्रोत माना जाता है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार 100 gm सोयाबीन में लगभग 36.9 gm प्रोटीन पाया जाता है। जिससे रोजाना के लिए ज़रुरी प्रोटीन का एक बड़ा हिस्सा आप हासिल कर सकते हैं. आप किसी भी डिश में सोयाबीन का उपयोग कर सकते हैं।

पनीर : दूध से बनी चीजों में भी प्रोटीन की मात्रा बहुत ज्यादा होती है। आपको बता दें कि 100 ग्राम पनीर में लगभग 26.9 gm प्रोटीन मिलता है. इसके अलावा खोआ, स्किम्ड मिल्क में भी लगभग इतनी ही मात्रा में प्रोटीन मिलता है। प्रोटीन के लिए आप नाश्ते में पनीर या स्किम्ड मिल्क का सेवन कर सकते हैं।

दाल : बचपन से आप पढ़ते आ रहे हैं कि दाल में बहुत अधिक मात्रा में प्रोटीन मिलता है। यह बात पूरी तरह सच है आप चाहे किसी भी दाल का सेवन करें आपको उससे प्रोटीन की ज़रुरी मात्रा आसानी से मिल जाती है। आंकड़ों के अनुसार 100 gm दाल में प्रोटीन की मात्रा लगभग 22.6 gm होती है जो आपके लिए पर्याप्त है। इसलिए रोजाना लंच और डिनर में दाल का सेवन करें।  

ड्राई फ्रूट्स : काजू और बादाम भी प्रोटीन के अच्छे स्रोत हैं। आंकड़ों के अनुसार 100 ग्राम काजू या बादाम में लगभग 20.2 gm प्रोटीन मिलता है। आप शाम को स्नैक्स के रुप में इनका सेवन कर सकते हैं।

दूध : दूध में विटामिन और खनिजों का भंडार होता है इसीलिए कुछ लोग इसे संपूर्ण आहार मानते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि दूध में प्रोटीन की पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। आंकड़ों के अनुसार 100 gm गाय या भैंस के दूध में लगभग 3.6 gm प्रोटीन पाया जाता है। इसलिए रोजाना एक गिलास दूध पीने से शरीर की प्रोटीन की जरुरत काफी हद तक पूरी हो जाती है।

मूंगफली : मूंगफली में कैलोरी और विटामिन के साथ प्रोटीन भी उचित मात्रा में मिलता है। मूंगफली शरीर को भरपूर पोषण देती है। आंकड़ों के अनुसार 100 gm मूंगफली में लगभग 20.2 gm प्रोटीन मिलता है। आप इसे शाम को स्नैक्स में ले सकते हैं।

प्रोटीन के मांसाहारी स्रोत :

शाकाहारी चीजों की तुलना में मांसाहारी चीजों में प्रोटीन अधिक मात्रा में मिलता है. अगर आप नॉन वेज खाने के शौकीन हैं तो आप आसानी से प्रोटीन हासिल कर सकते हैं। आइये प्रोटीन के मुख्य मांसाहारी स्रोतों के बारे में जानते हैं।

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मछली : सी-फ़ूड खाने वालों के लिए यह बहुत अच्छी बात है कि उन्हें प्रोटीन का सेवन करने के लिए ज्यादा इधर उधर भटकने की जरुरत नहीं है क्योंकि मछलियों में पहले से ही प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। राष्ट्रीय पोषण संस्थान द्वारा बताए गए आंकड़ों के अनुसार 100 ग्राम मछली से लगभग 24.6 gm प्रोटीन मिलता है।

चिकन : मछली के अलावा चिकन भी प्रोटीन का अच्छा स्रोत है। 100 ग्राम चिकन से आप लगभग  22.8 gm प्रोटीन हासिल कर सकते हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ग्रिल्ड चिकन का सेवन करना ज्यादा फायदेमंद माना जाता है।

मीट : चिकन और मीट दोनों में ही प्रोटीन की मात्रा लगभग बराबर होती है। 100 ग्राम मीट में लगभग 22.2 gm प्रोटीन मिलता है। प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होने की वजह से बहुत अधिक मात्रा में मीट के सेवन से परहेज करना चाहिए।

अंडे : अंडे भी प्रोटीन के अच्छे स्रोत है। अंडों से प्रोटीन के अलावा बाकी कई अन्य जरुरी पोषक तत्व और विटामिन भी शरीर को आसानी से मिल जाते हैं। रोजाना सुबह नाश्ते में अंडों का सेवन करना बहुत फायदेमंद माना जाता है. 100 ग्राम अंडे से लगभग 15.7 gm प्रोटीन मिल जाता है।

प्रोटीन सप्लीमेंट (Protein Supplement) :

प्रोटीन के प्राकृतिक स्रोतों के अलावा कुछ लोग प्रोटीन सप्लीमेंट का भी इस्तेमाल करते हैं। वास्तव में इसकी जरुरत तब पड़ती है जब प्राकृतिक स्रोतों से आपकी रोजाना की ज़रुरत पूरी नहीं हो पाती है। आमतौर पर जो लोग बहुत ज्यादा मेहनत करते हैं जैसे एथलीट या खिलाड़ी, इनकी प्रोटीन की जरुरत सिर्फ डाइट से पूरी नहीं हो सकती है. इसलिए इन्हें प्रोटीन सप्लीमेंट लेने की जरुरत पड़ती है। यही कारण है कि एथलीट या खिलाड़ी या बॉडी बिल्डिंग वाले लड़के इसका इस्तेमाल ज्यादा करते हैं। यह बात हमेशा ध्यान में रखें कि सिर्फ जिम ट्रेनर के कहने पर ही प्रोटीन सप्लीमेंट लेना शुरु ना करें बल्कि पहले चिकित्सक की सलाह लें उसके बाद इसे अपनाएं।

वसा :- यह शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है तथा आवश्यक विटामिन A, D, E और K के वसा में घुलनशील होने के कारण शरीर को इन विटामिनों की आपूर्ति करता है। वसा में प्राप्त वसीय अम्ल ऊतकों को स्वस्थ रखते हैं। कागज पर तेल का धब्बा खाद्य पदार्थ में वसा की उपस्थिति दर्शाता है। 

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वसा से हमारे शरीर को ऊर्जा मिलती है। वसा शरीर के तापक्रम को स्थिर बनाये रखने में सहायता करती है। शरीर के कोमल अंगों जैसे हृदय, फेफड़े, गुर्दे, आदि के चारों ओर वसा की एक सुरक्षात्मक परत पाई जाती है, जो आकस्मिक आघातों से इन अंगों को सुरक्षा प्रदान करती है। वसा द्वारा भोजन का स्वाद रूचिकर बनता है एवं व्यक्ति के खाने की इच्छा तीव्र होती है। अत: भोजन में वसा की एक निश्चित मात्रा का होना आवश्यक होता है।

वसा के स्रोत :- पादप से मूँगफली, तिल, गिरि, तेल जंतु से अंडे, मछली, मांस, दूध, घी, क्रीम, मक्खन आदि।

वसा

वसा अर्थात चिकनाई शरीर को क्रियाशील बनाए रखने में सहयोग करती है। वसा शरीर के लिए उपयोगी है, किंतु इसकी अधिकता हानिकारक भी हो सकती है। यह मांस तथा वनस्पति समूह दोनों प्रकार से प्राप्त होती है। इससे शरीर को दैनिक कार्यों के लिए शक्ति प्राप्त होती है।

वसा का सही मात्रा में सेवन

स्वस्थ वयस्कों के लिए, वसा से मिलने वाली कैलोरियां आपकी कुल कैलोरियों के 30 प्रतिशत से अधिक नहीं होनी चाहिए। इस 30 प्रतिशत में कुल कैलोरियों का 7 से 10 प्रतिशत संतृप्त वसाओं से, 10 से 15 प्रतिशत मोनोअनसैचुरेटेड वसाओं से और 10 प्रतिशत बहुअसंतृप्त वसाओं से आना चाहिये।

खनिज: हमारे शरीर के उचित विकास तथा अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रत्येक खनिज लवण की आवश्यकता है।

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खनिज लवण के स्रोत :- आयोडीन, अदरक, केकड़ा।

फास्फोरस के स्रोत :- दूध, केला, गेंहूँ। लोहे के स्रोत :- पालक, सेब, यकृत।

कैल्सियम के स्रोत :- दूध, अंडा आदि। खनिज ऐसे अकार्बनिक पदार्थ हैं, जो अस्थियों, दांतो, रक्त, हार्मोन आदि के निर्माण के लिए आवश्यक हैं। ये ऐसे सुरक्षात्मक भोज्य पदार्थ हैं,

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जो शरीर को विभिन्न रोगों से सुरक्षा प्रदान करता है। हमारे शरीर में विभिन्न खनिज लवणों की आवश्यकता होती है, इनमें से प्रमुख खनिज कैल्शियम एवं आयरन है।

विटामिन :- विटामिन ऐसे पदार्थ हैं, जो शरीर को स्वस्थ रखने और विकास के लिए जरूरी होते हैं। ये तत्वों का एक समूह है जो शरीर की कोशिकाओं के कार्य, वृद्धि और विकास के लिए जरूरी होते हैं। ये शरीर को ठीक तरह से कार्य करने में मदद करते हैं।मुख्य तौर पर 13 तरह के विटामिन्स होते हैं

विटामिन के प्रकार

विटामिन मुख्य रूप से 13 प्रकार के होते हैं। इन्हें दो भागों में बांटा गया है। विटामिन का एक भाग वसा में घुलनशील (Fat-Soluble) और दूसरा भाग पानी में घुलनशील (Water-Soluble) होता है

  • विटामिन ए (रेटिनॉल)
  • विटामिन बी1 (थायमिन)
  • विटामिन बी2 (राइबोफ्लेविन)
  • विटामिन बी3 (नियासिन)
  • विटामिन बी5 (पैंटोथेनिक एसिड)
  • विटामिन बी6 (पाइरिडोक्सीन)
  • विटामिन बी7 (बायोटिन)
  • विटामिन बी9 (फोलेट या फोलिक एसिड)
  • विटामिन बी12 (स्यानोकोबलामीन)
  • विटामिन सी (एसकोर्बिक एसिड)
  • विटामिन डी (कैल्सिफेरॉल)
  • विटामिन ई (टोकोफेरोल)
  • विटामिन के (फिलोक्विनोन)

वसा में घुलनशील विटामिन (Fat-soluble Vitamins) –

विटामिन का यह प्रकार शरीर के वसायुक्त ऊतकों में जमा होते हैं। इसमें मुख्य रूप से विटामिन ए, डी, ई, और के शामिल है। ये विटामिन्स डाइटरी फैट के रूप में शरीर में आसानी से अवशोषित हो सकता है।

Fat soluble vitamins- Vitamin A, D, E and K

पानी में घुलनशील विटामिन (Water-Soluble Vitamins) –

विटामिन के अधिकतर प्रकार पानी में घुलनशील होते हैं, ये मुख्य रूप से 9 हैं। वसा में घुलनशील विटामिन की तरह यह शरीर में जमा नहीं होते हैं, बल्कि पानी में घुलकर मूत्र के माध्यम से शरीर से बाहर निकल जाते हैं। शरीर में इन विटामिन के कमी को रोकने के लिए उन्हें नियमित रूप से लेना पड़ता है। हालांकि, इनमें विटामिन बी12 एकमात्र ऐसा पानी में घुलने वाला विटामिन है, जो लीवर में सालों तक स्टोर रह सकता है।

Water Soluble Vitamins- B-Complex and C

पौष्टिक आहार का सेवन न करना –

मनुष्य के शरीर को खाद्य पदार्थों के जरिए ही पोषक तत्व मिल पाते हैं। ऐसे में उच्च गुणवत्ता वाले खाद्य पदार्थ खाने से शरीर में विटामिन का स्तर संतुलित रहता है। वहीं, जब शरीर को पौष्टिक आहार नहीं मिल पाता तो विटामिन की कमी हो सकती है। कई बार जरूरी विटामिन की कमी कुपोषण का कारण भी बन सकती है ।

मालअब्जॉर्प्शन (Malabsorption) –

विटामिन की कमी का एक कारण मालअब्जॉर्प्शन भी हो सकता है। दरअसल, यह स्वास्थ्य संबंधी स्थिति है, जिसमें शरीर भोजन से पोषक तत्वों को अवशोषित करने में असफल होता है। यह स्थिति छोटी आंत में किसी प्रकार की समस्या के कारण उत्पन्न हो सकती है।

शारीरिक समस्या –

किसी तरह की गंभीर शारीरिक समस्या या बीमारी के कारण भी विटामिन की कमी हो सकती है। दरअसल, सीलिएक रोग (Celiac Disease – ग्लूटेन संवेदी आंत रोग), क्रोहन रोग (Crohn Disease – पाचन तंत्र से जुड़ी समस्या), संक्रमण, लिवर संबंधी बीमारियों के कारण भी विटामिन की कमी की समस्या हो सकती है। स्वास्थ्य संबंधी समस्या के कारण शरीर जरूरी पोषक तत्वों या विटामिन को अवशोषित नहीं कर पाता, जो विटामिन की कमी का कारण बन सकता है।

सूरज की रोशनी कम मिलना –

सूरज की रोशनी विटामिन डी का सबसे अच्छा स्रोत होता है। एनसीबीआई (National Center for Biotechnology Information) की वेबसाइट पर प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में विटामिन डी की कमी लगभग 50 फीसदी जनसंख्या में देखी जा सकती है। आंकड़ों के अनुसार, दुनियाभर में लगभग 1 अरब लोगों में विटामिन डी की कमी पाई जा सकती है। इसका मुख्य कारण जीवनशैली से जुड़ा हुआ होता है। दरअसल, बाहरी गतिविधियां कम करने या खराब पर्यावरण सूर्य के प्रकाश के संपर्क को कम कर सकता है । वजह से शरीर को सूरज की रोशनी कम मिल सकती है और यह विटामिन डी की कमी का कारण बन सकता है

विटामिन की कमी का एक कारण व्यक्ति की उम्र भी हो सकती है। बता दें कि गर्भवती व स्तनपान कराने वाली महिलाओं और युवा बच्चों में विटामिन की कमी होने का जोखिम सबसे अधिक हो सकता है|

जल

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जल या पानी एक आम रासायनिक पदार्थ है जिसका अणु दो हाइड्रोजन परमाणु और एक ऑक्सीजन परमाणु से बना है – H2O। यह सारे प्राणियों के जीवन का आधार है। आमतौर पर जल शब्द का प्रयोग द्रव अवस्था के लिए उपयोग में लाया जाता है पर यह ठोस अवस्था (बर्फ) और गैसीय अवस्था (भाप या जल वाष्प) में भी पाया जाता है। पानी जल-आत्मीय सतहों पर तरल-क्रिस्टल के रूप में भी पाया जाता है।

पृथ्वी का लगभग 71% सतह को 1.460 पीटा टन (पीटी) (1021 किलोग्राम) जल से आच्छदित है जो अधिकतर महासागरों और अन्य बड़े जल निकायों का हिस्सा होता है इसके अतिरिक्त, 1.6% भूमिगत जल एक्वीफर और 0.001% जल वाष्प और बादल (इनका गठन हवा में जल के निलंबित ठोस और द्रव कणों से होता है) के रूप में पाया जाता है।खारे जल के महासागरों में पृथ्वी का कुल 97%, हिमनदों और ध्रुवीय बर्फ चोटिओं में 2.4% और अन्य स्रोतों जैसे नदियों, झीलों और तालाबों में 0.6% जल पाया जाता है। पृथ्वी पर जल की एक बहुत छोटी मात्रा, पानी की टंकिओं, जैविक निकायों, विनिर्मित उत्पादों के भीतर और खाद्य भंडार में निहित है। बर्फीली चोटिओं, हिमनद, एक्वीफर या झीलों का जल कई बार धरती पर जीवन के लिए साफ जल उपलब्ध कराता है।

जल लगातार एक चक्र में घूमता रहता है जिसे जलचक्र कहते है, इसमे वाष्पीकरण या ट्रांस्पिरेशन, वर्षा और बह कर सागर में पहुचना शामिल है। हवा जल वाष्प को स्थल के ऊपर उसी दर से उड़ा ले जाती है जिस गति से यह बहकर सागर में पहुंचता है लगभग 36 Tt (1012 किलोग्राम) प्रति वर्ष। भूमि पर 107 Tt वर्षा के अलावा, वाष्पीकरण 71 Tt प्रति वर्ष का अतिरिक्त योगदान देता है। साफ और ताजा पेयजल मानवीय और अन्य जीवन के लिए आवश्यक है, लेकिन दुनिया के कई भागों में खासकर विकासशील देशों में भयंकर जलसंकट है और अनुमान है कि 2025 तक विश्व की आधी जनसंख्या इस जलसंकट से दो-चार होगी।जल विश्व अर्थव्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह रासायनिक पदार्थों की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए विलायक के रूप में कार्य करता है और औद्योगिक प्रशीतन और परिवहन को सुगम बनाता है। मीठे जल की लगभग 70% मात्रा की खपत कृषि में होती है।

पदार्थों में से है जो पृथ्वी पर प्राकृतिक रूप से सभी तीन अवस्थाओं में मिलते हैं। जल पृथ्वी पर कई अलग अलग रूपों में मिलता है: आसमान में जल वाष्प और बादल; समुद्र में समुद्री जल और कभी कभी हिमशैल; पहाड़ों में हिमनद और नदियां ; और तरल रूप में भूमि पर एक्वीफर के रूप में।

जल में कई पदार्थों को घोला जा सकता है जो इसे एक अलग स्वाद और गंध प्रदान करते है। वास्तव में, मानव और अन्य जानवरों समय के साथ एक दृष्टि विकसित हो गयी है जिसके माध्यम से वो जल के पीने को योग्यता का मूल्यांकन करने में सक्षम होते हैं और वह बहुत नमकीन या सड़ा हुआ जल नहीं पीते हैं। मनुष्य ठंडे से गुनगुना जल पीना पसंद करते हैं; ठंडे जल में रोगाणुओं की संख्या काफी कम होने की संभावना होती है। शुद्ध पानी H2O स्वाद में फीका होता है जबकि सोते (झरने) के पानी या लवणित जल (मिनरल वाटर) का स्वाद इनमे मिले खनिज लवणों के कारण होता है। सोते (झरने) के पानी या लवणित जल की गुणवत्ता से अभिप्राय इनमे विषैले तत्वों, प्रदूषकों और रोगाणुओं की अनुपस्थिति से होता है।

जल का हमारे शरीर में महत्व है

पूरे शरीर में ऑक्सीजन पहुंचाने का काम भी पानी ही करता है. – मनुष्य के शरीर के अधिकतर अंगों में पानी पाया जाता है. बेहद कम लोग जानते होंगे लेकिन ठोस और कड़ी महसूस होने वाली हमारी हड्डियों में भी 22% पानी होता है. हमारे दांतों में 10%, स्किन में 20%, दिमाग में 74.5%, मांसपेशियों में 75.6% जबकि खून में 83% पानी होता है

संतुलित आहार

ऐसा आहार जिसमें वे सभी चीजें उचित मात्रा में मौजूद हों जो शरीर निर्वाह के लिए आवश्यक है। ऐसे ही भोजन से शरीर का भली-भाँति पोषण होता है। उससे पर्याप्त शक्ति और ताप की उपलब्धि होती है तथा स्वास्थ्य एवं आयु की वृद्धि होती है। संतुलित आहार में कार्बोज, वसा, प्रोटीन, खनिज लवण, जल तथा सभी प्रकार के विटामिन उचित मात्रा में होते हैं जिनसे शरीर की सभी आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है। यदि इन खाद्य तत्वों में से किसी एक ही खाद्य तत्व का सेवन किया जाएगा तो स्वाभाविक है कि उससे शरीर की अन्य अनेकों आवश्यकताएँ पूरी न हो सकेंगी, फलतः शरीर धीरे-धीरे पूर्ण पोषण न मिल पाने के कारण क्षीण हो जाएगा। भोजन के विभिन्न प्रकार के पोषक तत्वों का अलग-अलग कार्य होता है। इनके ठीक अनुपात में होने से ही हमारा शरीर स्वस्थ बना रहता है। अतः विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थों के मिश्रण से बने उस आहार को जो हमारे शरीर को सभी पौष्टिक तत्व हमारी शारीरिक आवश्यकताओं के अनुसार उचित मात्रा में प्रदान करता है, संतुलित आहार कहते हैं।

हमारा शरीर आहार संतुलित तब ही कहलायेगा जब हमारी शारीरिक जरूरतों को पूरा कर पायेगा। हमारी शारीरिक जरूरतें कई कारणों पर निर्भर करती है, जैसे आयु, लिंग, जलवायु, शारीरिक कार्य आदि। हमारा संतुलित आहार भी इन्हीं कारणों पर निर्भर है।

संतुलित आहार

संतुलित आहार वह भोजन है, जिसमें विभिन्न प्रकार के खाद्य पदार्थ ऐसी मात्रा व समानुपात में हों कि जिससे कैलोरी खनिज लवण, विटामिन व अन्य पोषक तत्वों की आवश्यकता समुचित रूप से पूरी हो सके। 

इसके साथ-साथ पोषक तत्वों का कुछ अतिरिक्त मात्रा में प्रावधान हो ताकि अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की अवधि में इनकी आवश्यकता की पूर्ति हो सके। यदि इस परिभाषा को ध्यान से पढ़ें तो पायेंगे कि इनमें 3 मुख्य बातें हैं-

संतुलित आहार आहार में विभिन्न खाद्य पदार्थ शामिल होते हैं। 

संतुलित आहार शरीर में पोषक तत्वों की जरूरतों को पूरा करता है। 

संतुलित आहार अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की अवधि के लिये पोषक तत्व प्रदान करता है।

संतुलित भोजन क्या है

साधारणतः एक मनुष्य प्रतिदिन कौन-कौन वस्तु कितनी-कितनी मात्रा में खाये, जिससे उसकी शारीरिक आवश्यकताएँ पूरी हो जायें और वह रोगों से बचा रहकर उत्तम स्वास्थ्य और लम्बी आयु प्राप्त करें।

रक्त में क्षारत्व और अम्लत्व की उपस्थिति की दृष्टि से संतुलित भोजन 

मोटे हिसाब से संतुलित भोजन 

सबसे सस्ता संतुलित भोजन 

एक परिश्रमी का संतुलित भोजन 

प्रौढ़ व्यक्ति के लिए संतुलित दैनिक भोजन

संतुलित आहार की परिभाषा –

संतुलित आहार उसे कहते हैं, जिसमें सभी भोज्यावयक आवश्यक मात्रा में उपस्थित हों ताकि उनसे उपयुक्त मात्रा में शक्ति प्राप्त होने के साथ शरीर की वृद्धि तथा रख-रखाव संबंधी सभी पोषक तत्व प्राप्त हों और आहार अनावश्यक रूप से मात्रा में अधिक भी न हो।

संतुलित आहार क्या हैं? संतुलित आहार को प्रभावित करने वाले कारक | Goldstar  Nutritionist

संतुलित आहार के प्रमुख घटक

संतुलित आहार के प्रमुख घटकों का वर्णन निम्न है –

1. जल

जीवन के लिये जल अति आवश्यक है। जीवों के शरीर में जल की मात्रा 50 प्रतिशत से 85 प्रतिशत तक होती है। मनुष्य के शरीर का 70 प्रतिशत भार जल के कारण है। जल में मुख्य कार्य-

संरचना-जीवद्रव्य का मुख्य अवयव है। 

पदार्थों का परिवहन। 

पसीने इत्यादि द्वारा शरीर के तापक्रम को कम करना।  

मूत्र द्वारा अपशिष्ट पदार्थों का उत्सर्जन-समस्थैतिकता बनाये रखना। 

2. खनिज लवण

यह शरीर में कार्बनिक एवं अकार्बनिक अणुओं एवं आयनों के रूप में होते हैं। शरीर में पाये जाने वाले मुख्य खनिज लवण इस प्रकार हैं।

गंधक – गंधकयुक्त एमीनों एसिड प्रोटीन निर्माण में सहायक हैं।

 कैल्शियम- फॉस्फोरस के साथ मिलकर हड्डियों व दाँतों के निर्माण में सहायक।

 फॉस्फोरस- कोशिका कला की संरचना हेतु फॉस्फोलिपिड का निर्माण।

 सोडियम तथा पोटैशियम- कोशिका के अन्दर तरल की मात्रा को नियंत्रित करना।

 क्लोरीन- पाचन रस में हाइड्रोक्लोरिक अम्ल का मुख्य अवयव।

 लौह- ऑक्सीजन संवहन, हीमोग्लोबिन का प्रमुख भाग।

 आयोडीन- थॉयरॉक्सिन हार्मोन का प्रमुख अवयव, उपापचय पर नियंत्रण।

 मैंगनीज- वसीय अम्लों का ऑक्सीकरण। 

 मॉलिण्डेनम- नाइट्रोजन द्वारा नाइट्रोजन स्थिरीकरण में सहायक।

3. कार्बोहाइड्रेट

रासायनिक रूप से ये जलयोजित कार्बनिक यौगिक या पॉलीहाइड्रॉक्सी एल्डिहाइड्स व कीटोन्स होते हैं। कार्बोहाइड्रेट को शर्करा वाले यौगिक भी कहा जाता है। भोजन में यह घुलनशील शर्कराओं तथा अघुलनशील मंड के रूप में होते हैं। अधिकांश कार्बोहाइड्रेट शरीर में ऊर्जा उत्पादन के काम आते हैं। कार्बोहाइड्रेट के कार्य-

यह जीवों में मुख्य ऊर्जा स्रोत है। 

श्वसन के समय ग्लूकोस के टूटने से ऊर्जा उत्पन्न होती है। 

अनेक जन्तुओं में रूधिर में ग्लूकोस ही रूधिर शर्करा के रूप में होती है। कोशिकाएँ इसे ऑक्सीकृत करके ऊर्जा प्राप्त करती हैं। 

स्तन ग्रंथियों में ग्लूकोस तथा गैलेक्टोस दूध की लैक्टोस शर्करा बनाते हैं। 

मांड व ग्लाइकोजन के रूप में कार्बोहाइड्रेट का शरीर में संग्रह किया जाता है। इसे संचित ईधन कहते हैं। 

4. वसा

वसा कार्बन, हाइड्रोजन और ऑक्सीजन के यौगिक हैं, किन्तु इनमें ऑक्सीजन परमाणुओं की संख्या कार्बोहाइड्रेट की अपेक्षा कम होती है। रासायनिक रूप में ये वसा अम्ल तथा ग्लिसरॉल के एस्टर हैं।  वसा के कार्य-

शरीर को ऊर्जा प्रदान करते हैं, भोजन का महत्वपूर्ण घटक है। 

ये जीवधारियों में संचित ऊर्जा के स्रोत के रूप में त्वचा के नीचे एडीपोज ऊतक की कोशिकाओं में संचित रहते हैं। यहाँ पर रहकर ये ताप अवरोधक का कार्य करते हैं और ठण्ड से बचाते हैं। 

विटामिन ए, डी, तथा ई के लिये विलायक का कार्य करते हैं। 

5. प्रोटीन

प्रोटीन अधिक आण्विक भार वाले अत्यधिक जटिल रासायनिक यौगिक हैं। ये जीवधारियों में उनके शरीर में मुख्य घटक के रूप में पाये जाते हैं। ये कोशिकाओं के घटकों का संरचनात्मक ढांचा बनाते हैं। तथा जीवद्रव्य में प्रचुर मात्रा में पाये जाने वाले ठोस पदार्थ हैं। ये शरीर का 14 प्रतिशत प्रोटीन होते हैं। प्रोटीन के कार्य-

एन्जाइम के रूप में, हार्मोन्स के रूप में। 

ये इम्यूनोग्लोब्यूलिन्स हैं। ये बाह्य पदार्थ के प्रभाव को समाप्त करते हैं। 

रूधिर में पाये जाने वाले Thrombin तथा Librinogen प्रोटीन चोट लगने पर रूधिर का थक्का बनने में सहायक होते हैं। 

परिवहन- कुछ प्रोटीन कुछ विशिष्ट प्रकार के अणुओं से जुड़कर रूधिर द्वारा उनके परिवहन में सहायक है। उदाहरण के लिये हीमोग्लोबिन फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर ऊतकों को पहुँचाता है।

संतुलित आहार कैसा हो

  • संतुलित आहार में व्यक्तिगत आवश्यकताओं के अनुसार पोषक तत्वों की मात्राएँ शामिल होनी चाहिए। 
  • उसमें सभी पोषक तत्वों को स्थान मिलना चाहिए। 
  • संतुलित आहार ऐसा होना चाहिए कि विशेष पोषक तत्व साथ-साथ हो। जैसे- प्रोटीन और वसा, प्रोटीन और कार्बोहाइड्रेट आदि। 
  • उस आहार में सभी पोषक तत्व उचित अनुपान में होने चाहिए। 
  • आहार उचित मात्रा में ऊर्जा प्रदान करने वाला होना चाहिए। 
  • शरीर में एकत्रित होने वाले पोषक तत्वों की मात्रा आहार में अधिक होनी चाहिए। 
  • संतुलित आहार में सभी भोज्य समूहों से भोज्य पदार्थ शामिल होने चाहिए। 
  • आहार आकर्षक, सुगन्धित, स्वादिष्ट एवं रूचिकर होना चाहिए।

संतुलित आहार का महत्व

संतुलित आहार के बारे में जानना और स्वस्थ रहने के लिये संतुलित आहार लेना कितना आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण है। संतुलित आहार के महत्व को आप निम्न बिन्दुओं के माध्यम से समझ सकते है-

1. शरीर को पोषण तत्व प्रदान करना- संतुलित आहार के कारण शरीर को सभी पोषक तत्व जैसे कि कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज लवण तथा जल पर्याप्त एवं समुचित मात्रा में प्राप्त होते है। 

2. अपर्याप्त मात्रा में भोजन मिलने की अवधि में शरीर को अतिरिक्त पोषक तत्व प्रदान करना- संतुलित आहार में पोषक तत्व अतिरिक्त मात्रा में भी उपलब्ध रहते है। कुद ऐसा इसलिये ताकि जब कभी भोजन पर्याप्त मात्रा में प्राप्त न हो सके तो शरीर को इससे किसी भी प्रकार की क्षति ना हो। उसे पर्याप्त मात्रा में उर्जा मिलती रहे।

3. शरीर निर्माण एवं बुद्धि हेतु आवश्यक- शरीर संबर्धन की दृष्टि से भी संतुलित आहार का अत्यन्त महत्व है। आहार के संतुलित होने पर ही शरीर का ठीक ढंग से निर्माण तथा उम्र के अनुसार सही शारीरिक विकास होता है। 

4. शारीरिक क्रियाओं का सुचारु संचालन- जिस प्रकार किसी विद्युत उपकरण को चलाने के लिये बिजली की आवश्यक्ता होती है। उसी प्रकार शरीर की समस्त गतिविधिया ठीक-ठीक चलती रहे, इसके लिये पर्याप्त मात्रा में उर्ज्ाा की आवश्यक्ता होती है, जो संतुलित आहार से ही प्राप्त होती है। 

5. शरीर की सुरक्षा के लिये- यदि आहार हमारा संतुलित हो तो इससे शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता का भी विकास होता है। अत: रोगों से शरीर की सुरक्षा की दृष्टि से भी संतुलित आहार का विशेष महत्व है।

6. धातुनिर्माण हेतु आवश्यक- सप्त धातुओं(रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा,शुक्र) के पोषक के लिये आहार में सभी पोषक तत्वों का समुचित मात्रा में होना अत्यन्त आवश्यक है।

7. शक्ति या ऊर्जा निर्माण हेतु आवश्यक- शरीर हमारा बलवान या शक्तिशाली तभी बनता है, जब आहार संतुलित हो। अत: उर्जा के निर्माण की दृष्टि से संतुलित आहार आवश्यक है।

8. समग्र स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक- जैसा कि आप अब तक यह समझ ही चुके हैं कि आहार का संबंध केवल हमारे शरीर से ही नहीं बल्कि यह हमारे मन, भावनाओं और यहाँ तक की हमारी आत्मा पर भी प्रभाव डाले बिना नहीं रहता है क्योंकि आहार का सूक्ष्म प्रभाव भी होता है, जो हमें आन्तरिक रूप से प्रभावित करता है।

अभावजन्य रोग

वे रोग जो लंबी अवधि तक पोषकों के अभाव के कारण होते हैं, उन्हें अभावजन्य रोग कहते हैं। यदि कोई व्यक्ति अपने भोजन में पर्याप्त प्रोटीन नहीं ले रहा है तो उसे कुछ रोग हो सकते हैं जैसे वृद्धि का अवरुद्ध होना, चेहरे पर सूजन, बालों के रंग का उड़ना, त्वचा की बीमारियाँ और पेचिश आदि ।

NCERT SOLUTIONS

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 17)

प्रश्न 1. हमारे भोजन के मुख्य पोषक तत्त्वों के नाम लिखिए।

उत्तर- हमारे भोजन के मुख्य पोषक तत्व निम्नलिखित हैं

  • कार्बोहाइड्रेट
  • वसा
  • विटामिन
  • प्रोटीन
  • खनिज इत्यादि

प्रश्न 2 निम्नलिखित के नाम लिखिए

  1. पोषक जो मुख्य रूप से हमारे शरीर को ऊर्जा देते हैं।
  2. पोषक जो हमारे शरीर की वृद्धि और अनुरक्षण के लिए आवश्यक हैं।
  3. वह विटामिन जो हमारी अच्छी दृष्टि के लिए आवश्यक है।
  4. वह खनिज जो अस्थियों के लिए आवश्यक है।

उत्तर- 

  1. कार्बोहाइड्रेट और वसा 
  2. प्रोटीन 
  3. विटामिन A
  4. कैल्शियम

प्रश्न 3 दो ऐसे खाद्य पदार्थों के नाम लिखिए जिनमें निम्न पोषक प्रचुर मात्रा में उपलब्ध् होते हैं

  1. वसा
  2. मंड
  3. आहारी रेशे
  4. प्रोटीन

उत्तर

  1. वसा – घी और दूध 
  2. मंड – चावल और आलू 
  3. आहारी रेशे – सब्जी और फल 
  4. प्रोटीन – पनीर और राजमा

प्रश्न 4 इनमें सही कथन को ( √ ) अंकित कीजिए:

(क) केवल चावल खाने से हम अपने शरीर की पोषण आवश्यकताओं को पूरा कर

सकते हैं। ( )

(ख) संतुलित आहार खाकर अभावजन्य रोगों की रोकथाम की जा सकती है। (  )

(ग) शरीर के लिए संतुलित आहार में नाना प्रकार के खाद्य पदार्थ होने चाहिए। ( )

(घ) शरीर को सभी पोषक तत्त्व उपलब्ध् कराने के लिए केवल मांस पर्याप्त है। ( )

उत्तर: 

(क) ( x ) 

(ख) ( √ )

(ग) ( √ )

(घ) ( x )

प्रश्न 5. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए:

(क) —————— विटामिन D के अभाव से होता है।

(ख) —————— की कमी से बेरी-बेरी नामक रोग होता है।

(ग) विटामिन C के अभाव से —————— नामक रोग होता है।

(घ) हमारे भोजन में —————— के’ अभाव से रतौंधी होती है।

उत्तर 

(क) रिकेट

(ख) विटामिन B

(ग) स्कर्वी