-रहीम

सारांश

रहीम के दोहे हमें कई तरह की नैतिक शिक्षा और जीवन का गहरा ज्ञान देते हैं। पाठ में दिए गए दोहों में सच्चे मित्र, सच्चे प्रेम, परोपकार, मनुष्य की सहनशक्ति आदि के बारे में बहुत ही सरल और मनोहर ढंग से बताया है।

पहले दोहे में रहीम ने सच्चे मित्र के बारे में ज्ञान दिया है।

दूसरे दोहे में मछली के उदाहरण द्वारा सच्चे प्रेम को दर्शाया है।

तीसरे दोहे में रहीम परोपकार के महत्त्व की बात करते हैं जो उन्होंने वृक्ष और सरोवर के माध्यम से बताया है।

चौथे दोहे में रहीम ने निर्धन होने के बाद अपने पुराने संपन्न दिनों को याद करने का कोई मोल न होने के बारे में बादलों के उदाहरण से समझाया है।

पाँचवें और अंतिम दोहे में रहीम ने सहनशीलता के बारे में धरती के माध्यम से समझाया है।

भावार्थ

कहि ‘रहीम’ संपति सगे, बनत बहुत बहु रीति।

बिपति-कसौटी जे कसे, सोई सांचे मीत॥

भावार्थ- उपर्युक्त दोहे में कवि रहीम कहते हैं कि हमारे सगे-संबंधी तो किसी संपत्ति की तरह होते हैं, जो बहुत सारे रीति-रिवाजों के बाद बनते हैं। परंतु जो व्यक्ति मुसीबत में आपकी सहायता कर, आपके काम आए, वही आपका सच्चा मित्र होता है।

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।

‘रहिमन’ मछरी नीर को तऊ न छाँड़ति छोह॥

भावार्थ- उपर्युक्त दोहे में रहीमदास ने सच्चे प्रेम के बारे में बताया है। उनके अनुसार, जब नदी में मछली पकड़ने के लिए जाल डालकर बाहर निकाला जाता है, तो जल तो उसी समय बाहर निकल जाता है। क्योंकि उसे मछली से कोई प्रेम नहीं होता। मगर, मछली पानी के प्रेम को भूल नहीं पाती है और उसी के वियोग में प्राण त्याग देती है।

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।

कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥

भावार्थ- उपर्युक्त दोहे रहीमदास कहते हैं कि जिस प्रकार वृक्ष अपने फल खुद नहीं खाते और नदी-तालाब अपना पानी स्वयं नहीं पीते। ठीक उसी प्रकार, सज्जन और अच्छे व्यक्ति अपने संचित धन का उपयोग केवल अपने लिए नहीं करते, वो उस धन से दूसरों का भला करते हैं।

थोथे बादर क्वार के, ज्यों ‘रहीम’ घहरात।

धनी पुरुष निर्धन भये, करैं पाछिली बात॥

भावार्थ- उपर्युक्त दोहे में रहीम दास जी ने कहते हैं कि जिस प्रकार बारिश और सर्दी के बीच के समय में बादल केवल गरजते हैं, बरसते नहीं हैं। उसी प्रकार, कंगाल होने के बाद अमीर व्यक्ति अपने पिछले समय की बड़ी-बड़ी बातें करते रहते हैं, जिनका कोई मूल्य नहीं होता है।

धरती की सी रीत है, सीत घाम औ मेह।

जैसी परे सो सहि रहै, त्‍यों रहीम यह देह॥

भावार्थ- उपर्युक्त दोहे में कवि रहीम ने मनुष्य के शरीर की सहनशीलता के बारे में बताया है। वो कहते हैं कि मनुष्य के शरीर की सहनशक्ति बिल्कुल इस धरती के समान ही है। जिस तरह धरती सर्दी, गर्मी, बरसात आदि सभी मौसम झेल लेती है, ठीक उसी तरह हमारा शरीर भी जीवन के सुख-दुख रूपी हर मौसम को सहन कर लेता है।

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दोहे से प्रश्न (पृष्ठ संख्या 84)

प्रश्न 1 पाठ में दिए गए दोहों की कोई पंक्ति कथन है और कोई कथन को प्रमाणित करनेवाला उदाहरण। इन दोनों प्रकार की पंक्तियों को पहचान कर अलग-अलग लिखिए।

उत्तर- उदहारण वाले दोहे

तरवर फल नहिं खात है, सरवर पियत न पान।

कहि रहीम परकाज हित, संपति-संचहि सुजान।।

थोथे बादर क्वार वके, ज्यों रहीम घहरात।

धनी पुरुष निर्धन भए, करें पाछिली बात।।

धरती की-सी रीत है, सीत घाम औ मेह।

जैसी परे सो सहि रहे, त्यों रहीम यह देह।।

कथन वाले दोहे 

जाल परे जल जात बहि, तजि मीनन को मोह।

रहिमन मछरी नीर को, तऊ न छाँड़ति छोह।।

कहि रहीम संपति सगे, बनत बहुत बहु रीत।

बिपति कसौटी जे कसे, तेई साँचे मीत।।

प्रश्न 2 रहीम ने क्वार के मास में गरजनेवाले बादलों की तुलना ऐसे निर्धन व्यक्तियों से क्यों की है जो पहले कभी धनी थे और बीती बातों को बताकर दूसरों को प्रभावित करना चाहते हैं? दोहे के आधार पर आप सावन के बरसने और गरजनेवाले बादलों के विषय में क्या कहना चाहेंगे?

उत्तर- क्वार के मास बादल केवल गरजते हैं, बरसते नहीं हैं जैसे वे निर्धन व्यक्ति जो पहले कभी धनी थे और बीती बातों को बताकर दूसरों को प्रभावित करना चाहते हैं इसलिए कवि ने दोनों में समानता स्पष्ट की है।

दोहे से आगे प्रश्न (पृष्ठ संख्या 85)

प्रश्न 1 नीचे दिए गए दोहों में बताई गई सच्चाइयों को यदि हम अपने जीवन में उतार लें तो उनके क्या लाभ होंगे? सोचिए और लिखिए-

  1. तरुवर फल ………………. सचहिं सुजान।। 
  2. धरती की-सी ………………. यह देह।।

उत्तर- 

  1. इसे अपने जीवन में उतार लेने से हमारे मन से लालच और मोह खत्म हो जाएगा और परोपकार की भावना जागेगी। इससे हमें आत्म-संतुष्टि प्राप्त होगी और हम सही अर्थों में मनुष्य बन पायेंगें।
  2. इसे अपने जीवन में उतार लेने से हम अपने शरीर और मन को सहनशील बना पायेंगें जिससे सुख और दुःख दोनों को सहजता से स्वीकार कर पायेंगें।

भाषा की बात प्रश्न (पृष्ठ संख्या 85)

प्रश्न 1 निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित हिन्दी रूप लिखिए-

जैसे- परे-पड़े (रे, ड़े)

बिपति, मछरी, बादर, सीत 

उत्तर- बिपति – विपत्ति

मछरी – मछली

बादर – बादल

सीत – शीत

प्रश्न 2 नीचे दिए उदाहरण पढ़िए-

  1. बनत बहुत बहु रीत।
  2. जाल परे जल जात बहि।
  • उपर्युक्त उदाहरणों की पहली पंक्ति में ‘ब’ का प्रयोग कई बार किया गया है और दूसरी में ‘ज’ का प्रयोग। इस प्रकार बार- बार एक ध्वनि के आने से भाषा की सुंदरता बढ़ जाती है। वाक्य रचना की इस विशेषता के अन्य उदाहरण खोजकर लिखिए।

उत्तर- संपत्ति संचहि सुजान।

रघुपति राघव राजा राम।

काली लहर कल्पना काली, काल कोठरी काली।

चारू चंद्र की चंचल किरणें।