-श्री विजय तेंदुलकर

सारांश

प्रस्तुत पाठ विजय तेंदुलकर द्वारा लिखी गई एकांकी है। इस एकांकी में उन्होंने निर्जीव वस्तुओं को सजीव रूप में प्रस्तुत किया है।

इस कहानी में मुख्य पात्र हैं-

बिजली का खंभा

पेड़

लैटर बॉक्स

कौआ

नाचने वाली

लड़की

आदमी

समुद्र के किनारे एक फुटपाथ पर एक बिजली का खंभा,एक पेड़ और एक लेटर बॉक्स है। वहीँ दीवार पर एक सिनेमा का एक पोस्टर लगा है जिसमें एक नृत्य की भंगिमा में एक औरत की आकृति है। पेड़ सबसे पहले से उस स्थान पर हैं बाद में खंभा,लेटर बॉक्स और पोस्टर लगाए गए हैं।

कहानी का सार कुछ इस प्रकार है-

यह एकांकी एक रात की एक घटना का वर्णन है। रात में हवा तेज थी, जिससे पोस्टर पर बनी महिला का संलुलन बिगड़ जाता है और उसके घुंघरू बज उठते हैं। रात के अँधेरे में पेड़ और खंभा आपस में बातें कर रहे हैं। लेटर बॉक्स समय बिताने पर अपने पेट में चिठ्ठियों को पढ़ने लगता है। उसी समय किसी के आने की आहट सुनकर सभी चुप्पी साध लेते हैं। एक दुष्ट व्यक्ति एक छोटी बच्ची को अपने कंधे पर उठाकर उसे पेड़ की ओट में डाल देता है। यह दुष्ट व्यक्ति एक बच्चे उठाने वाला था। यह व्यक्ति लड़की को उठा लाया था और उसे बेहोशी की दवा दे दी थी। उस व्यक्ति को भूख लग आती है तो वह उस पर अपना कोट डालकर खाने की तलाश में निकल जाता है।

उस लड़की को देखकर सब चिंतित हो जाते हैं। वे सब उसकी रक्षा करने के संदर्भ में आपस में चर्चा करने लगते हैं। उनकी बातचीत को सुनकर लड़की जाग जाती और आश्चर्यचकित हो जाती हैं कि ये आवाजें कहाँ से आ रही है। तब लेटर बॉक्स उसे बताता है कि निर्जीव होने के बावजूद वे बात कर सकते हैं। लड़की यह जानकर खुश हो जाती है। सभी उससे उसके घर का पता जानने का प्रयास करते हैं परन्तु लड़की उन्हें कुछ ठीक से बता नहीं पाती।

थोड़ी देर में वह दुष्ट आदमी लौट आता है। सभी चुप हो जाते हैं और बच्ची छिप जाती है। वह दुष्ट आदमी बच्ची को न पाकर क्रोधित हो जाता है और बच्ची को खोजने लगता है। सभी बच्ची को छिपाने का प्रयास करते हैं। इतने में कौआ भूत-भूत चिल्लाता है जिससे डरकर वह भाग जाता है। लड़की पोस्टर वाली औरत के पीछे से बाहर निकल आती है और थककर सो जाती है।

अब सब उस लड़की को घर पर पहुँचाने के बारे में सोचने लगते हैं। अचानक कौए को एक तरकीब सूझती है कि पेड़ सुबह तक लड़की के ऊपर अपनी छाया रखें जिससे वह देर तक सोती रहे। खंभे से कहता है की वह पेड़ से टिककर खड़ा रहे ताकि लोगों को लगे यहाँ पर कोई अपघात हो गया है। लोग पुलिस को बुलाएँगे। पुलिस लड़की को देखेगी और उसका घर का पता मालूम कर उसे उसके घर तक पहुँचा देगी। लेटर बॉक्स को लगता है कि इतना सब करने पर भी कुछ नहीं हुआ तो? तब कौआ उससे कहता है कि तुम तो पढ़े लिखे हो, तुम्हें ही कुछ करना होगा।

सुबह होते ही सब देखते हैं कि पेड़ झुककर लड़की पर छाया किये हुए है। लड़की गहरी नींद में है। खंभा टेढ़ा है। कौआ काँव-काँव कर सबका ध्यान आकर्षित कर रहा है और पोस्टर पर बड़े-बड़े अक्षरों में लिखा होता है ‘पापा खो गए’। लेटर बॉक्स सबसे कहता है कि यदि किसी ने इस प्यारी बच्ची के पापा को देखा हो, तो उसे यहाँ ले आएँ।

NCERT SOLUTIONS

नाटक से प्रश्न (पृष्ठ संख्या 40)

प्रश्न 1 नाटक में आपको सबसे बुद्धिमान पात्र कौन लगा और क्यों?

उत्तर- नाटक में सबसे बुद्धिमान पात्र मुझे कौआ लगा क्योंकि उसने ही लड़की के पापा को खोजने का उपाय बताया। उसी की योजना के कारण लैटरबक्स सन्देश लिख पाता है।

प्रश्न 2 पेड़ और खंभे में दोस्ती कैसे हुई?

उत्तर- एक बार जोरों की आँधी आने के कारण खंभा पेड़ के ऊपर गिर जाता है, उस समय पेड़ उसे सँभाल लेता है और इस प्रयास में वह ज़ख्मी भी हो जाता है। इस घटना से खंभें में जो गुरुर होता है, वह खत्म हो जाता है और अंत में दोनों की दोस्ती हो जाती है।

प्रश्न 3 लैटरबक्स को सभी लाल ताऊ कहकर क्यों पुकारते थे?

उत्तर- लैटरबक्स ऊपर से नीचे पूरा लाल रंग में रँगा था साथ ही वह बड़ों की तरह बातें भी करता था इसलिए सभी उसे लाल ताऊ कहकर पुकारते थे।

प्रश्न 4 लाल ताऊ किस प्रकार बाकी पात्रों से भिन्न है?

उत्तर- लाल ताऊ को पढ़ना-लिखना आता है इसलिए वो नाटक के अन्य पात्रों से भिन्न है। उसे दोहे भजन भी गाना आता है।

प्रश्न 5 नाटक में बच्ची को बचानेवाले पात्रों में एक ही सजीव पात्र है। उसकी कौन-कौन सी बातें आपको मजेदार लगीं? लिखिए।

उत्तर- नाटक में बच्ची को बचानेवाले पात्रों में एक ही सजीव पात्र कौआ है। उसकी कुछ मजेदार बातें हैं-

  • “ताऊ एक जगह बैठकर यह कैसे जान सकोगे? उसके लिए तो मेरी तरह रोज चारों दिशाओं में गश्त लगानी पड़ेगी, तब जान पाओगे यह सब।”
  • “वह दुष्ट कौन है? पहले उसे नज़र तो आने दीजिए।”
  • “सुबह जब हो जाए तो पेड़ राजा, आप अपनी घनी छाया इस पर किये रहें। वह आराम से देर तक सोई रहेगी।”

प्रश्न 6 क्या वजह थी कि सभी पात्र मिलकर भी लड़की को उसके घर नहीं पहुँचा पा रहे थे?

उत्तर- सभी पात्र मिलकर भी लड़की को उसके घर नहीं पहुँचा पा रहे थे क्योंकि लड़की बहुत छोटी थी उसे अपने घर का पता, यहाँ तक कि अपने पापा के नाम भी मालूम नही था जिस कारण उसे घर पहुँचाना बहुत कठिन था।

नाटक से आगे प्रश्न (पृष्ठ संख्या 61)

प्रश्न 1 अपने-अपने घर का पता लिखिए तथा चित्र बनाकर वहाँ पहुँचने का रास्ता भी बताइए।

उत्तर- अपनी जानकारी के अनुसार इस प्रश्न का उत्तर दें।

प्रश्न 2 मराठी से अनूदित इस नाटक का शीर्षक ‘पापा खो गए’ क्यों रखा गया होगा ? अगर आपके मन में कोई दूसरा शीर्षक हो तो सुझाइए और साथ में कारण भी बताइए।

उत्तर- लड़की को अपने पापा का नाम-पता कुछ भी मालूम नहीं था। इधर-उधर आपस में बातें करने पर भी इसकी कोई जानकारी नहीं मिलती। तब सभी पात्र एक जुट होकर लड़की के पापा को ढूंढने की योजना बनाते हैं। सम्भवतः इसी कारण से इस नाटक का शीर्षक ‘पापा खो गए’ रखा गया होगा।

प्रस्तुत नाटक में लड़की अपने पापा से अलग होकर खो जाती है। नाटक के अधिकांश भाग में लड़की के नाम-पते की जानकारी इकट्ठा करने की कोशिश की जाती है। अत: पाठ का नाम ‘लापता बच्ची’ रखना अधिक उपयुक्त लगता है।

प्रश्न 3 क्या आप बच्ची के पापा को खोजने का नाटक से अलग कोई और तरीका बता सकते हैं?

उत्तर- बच्ची को पुलिस स्टेशन ले जाकर उसके खो जाने की रिपोर्ट लिखवानी चाहिए। इससे पुलिस उसके पापा को ढूँढ़कर बच्ची को उन्हें सौप देंगे।

अनुमान और कल्पना प्रश्न (पृष्ठ संख्या 61)

प्रश्न 1 अनुमान लगाइए कि जिस समय बच्ची को चोर ने उठाया होगा वह किस स्थिति में होगी? क्या वह पार्क/ मैदान में खेल रही होगी या घर से रूठकर भाग गई होगी या कोई अन्य कारण होगा?

उत्तर- नाटक को पढ़कर ऐसा लगता है कि जिस समय चोर ने बच्ची को  उठाया होगा वह गहरी नींद में सो रही थी। तभी तो चोर कहता है-

अभी थोड़ी देर पहले एक घर से यह लड़की उठाई है मैंने। गहरी नींद सो रही थी ———————- मैंनें इसे थोड़ी बेहोशी की दवा जो दी है”। यदि वह पार्क या मैदान से उठाई जाती तो लड़की चुराने पर लड़की चीखती-चिल्लाती। पर नाटक में ऐसी किसी घटना का उल्लेख नहीं है।

प्रश्न 2 नाटक में दिखाई गई घटना को ध्यान में रखते हुए यह भी बताइए कि अपनी सुरक्षा के लिए आजकल बच्चे क्या-क्या कर सकते हैं। संकेत के रूप में नीचे कुछ उपाय सुझाए जा रहे हैं। आप इससे अलग कुछ और उपाय लिखिए।

  • समूह में चलना।
  • एकजुट होकर बच्चा उठानेवालों या ऐसी घटनाओं का विरोध करना।
  • अनजान व्यक्तियों से सावधानीपूर्वक मिलना।

उत्तर- नाटक की इस घटना को ध्यान में रखते हुए बच्चों को कभी भी अकेले नहीं चलना चाहिए हमेशा अपने माता-पिता या किसी परिचित व्यक्ति के साथ ही चलना चाहिए। कोई अपरिचित व्यक्ति अगर जबरदस्ती करे या किसी तरह का प्रलोभन दे तो उसका विरोध करना चाहिए। जैसे- चीखकर या चिल्लाकर लोगों की सहायता माँगनी चाहिए।

भाषा की बात प्रश्न (पृष्ठ संख्या 61-62)

प्रश्न 1 आपने देखा होगा कि नाटक के बीच-बीच में कुछ निर्देश दिए गए हैं। ऐसे निर्देशों से नाटक के दृश्य स्पष्ट होते हैं, जिन्हें नाटक खेलते हुए मंच पर दिखाया जाता है,

जैसे- ‘सड़क/ रात का समय…दूर कहीं कुत्तों के भौंकने की आवाज।’ यदि आपको रात का दृश्य मंच पर दिखाना हो तो क्या-क्या करेंगे, सोचकर लिखिए।

उत्तर- रात का दृश्य दिखाने के लिए हम निम्नलिखित निर्देशों का प्रयोग कर सकते हैं-

  • चाँदनी रात का दृश्य है। आसमान में तारे दिख रहे हैं।
  • अँधेरी रात होने के कारण सड़कें सुनसान हैं। कुत्तों के भौंकने की आवाज़ आ रही है।

प्रश्न 2 पाठ को पढ़ते हुए आपका ध्यान कई तरह के विराम चिहन की ओर गया होगा। अगले पृष्ठ पर दिए गए अंश से विराम चिह्नों को हटा दिया गया है। ध्यानपूर्वक पढि़ए तथा उपयुक्त चिहन लगाइए- 

मुझ पर भी एक रात आसमान से गड़गड़ाती बिजली आकर पड़ी थी अरे बाप रे वो बिजली थी या आफ़त याद आते ही अब भी दिल धक-धक करने लगता है और बिजली जहाँ गिरी थी वहाँ खड्डा कितना गहरा पड़ गया था खंभे महाराज अब जब कभी बारिश होती है तो मुझे उस रात की याद हो आती है, अंग थरथर काँपने लगते हैं

उत्तर- मुझ पर भी एक रात आसमान से गड़गड़ाती बिजली आकर पड़ी थी। अरे, बाप रे! वो बिजली थी या आफ़त ! याद आते ही अब भी दिल धक-धक करने लगता है और बिजली जहाँ गिरी थी वहाँ खड्डा कितना गहरा पड़ गया था, खंभे महाराज! अब जब कभी बारिश होती है तो मुझे उस रात की याद हो आती है। अंग थरथर काँपने लगते हैं।

प्रश्न 3 आसपास की निर्जीव चीज़ों को ध्यान में रखकर कुछ संवाद लिखिए जैसे-

  • चॉक का ब्लैक बोर्ड से संवाद
  • कलम का कॉपी से संवाद
  • खिड़की का दरवाज़े से संवाद

उत्तर- चॉक का ब्लैक बोर्ड से संवाद

चॉक-आह! यह जीवन भी कोई जीवन है।

ब्लैक बोर्ड-क्या हुआ चॉक भाई?

चॉक: क्या पूछते हो? देखते नहीं? कितनी बेदर्दी से मुझे घिसा गया है। सुबह तक मैं ठीक-ठाक था, दोपहर तक आधा भी नहीं रहा।

क बोर्ड: ऐसा क्यों सोचते हो? तुम्हें तो खुश होना चाहिए कि तुम्हारे माध्यम से बच्चों को शिक्षित किया जा रहा है।

चॉक: मुझे अपनी तबाही पर रोना आ रहा है और तुम खुशी की बात कर रहे हो।

ब्लैक बोर्ड: हाँ भाई। जरा सोचो यदि तुम न रहो तो शिक्षक बच्चों को अच्छी तरह कैसे समझा सकेंगे।

चॉक: रहने दो ये महानता की बातें। वैसे भी तुम्हें क्या फर्क पड़ने वाला, दर्द तो मुझे हो रहा है।

ब्लैक बोर्ड: ऐसा मत कहो। तुम्हारा दर्द तो एक-दो दिन का है, पर मैं तो बरसों ये अपने ऊपर असंख्य शब्दों के उकेरे जाने का दर्द सहता आ रहा हूँ।

चॉक: फिर भी तुम्हें कोई शिकायत नहीं?

ब्लैक बोर्ड: नहीं। क्योंकि मुझे अपना महत्व पता है। मैं जानता हूँ मुझ पर लिखे गए ये शब्द कितने बच्चों के जीवन में ज्ञान की रोशनी फैलाते हैं। जब ये बातें सोचता हूँ तो मुझे अपने ब्लैकबोर्ड होने पर गर्व होता है।

चॉक: शायद तुम ठीक कहते हो। मैंने कभी इस तरह नहीं सोचा। सचमुच हमें खुद पर नाज होना चाहिए कि हम ज्ञान के प्रसार में इतनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तुम्हारी बात सुन कर दर्द कम हो गया। अब तो नेकी की इस राह मे खुद को न्यौछावर कर देने की इच्छा होती है।

कलम का कॉपी से संवाद

कॉपी: उफ! ये क्या किया?

कलम: माफ करना बहन!

कॉपी: देख कर नहीं चल सकती? सारे पन्ने खराब कर दिए।

कलम: मेरी गलती नहीं है बहन। मुझे ऐसे चलाया गया कि स्याही फैल गई।

कॉपी: स्याही तुम्हारी है और गलती चलाने वाले की? कितना हिफाज़त से रखा था खुद को, सब बेकार कर दिया।

कलम: मेरी स्याही से इतनी नाराजगी क्यों बहन? मत भूलो इस स्याही से ही हम दोनों की उपयोगिता है।

कॉपी: जानती हूँ, पर तुम्हें भी समझना चाहिए कि स्याही का सही ढंग से प्रयोग कैसे हो। नहीं तो तुम्हें और मुझे दोनों को कूड़े के डिब्बे में जाना पड़ेगा।

कलम: अरे बाबा! गलती हो गई। इतना उपदेश मत दो। फिर कभी ऐसा नहीं करूँगी।

कॉपी: वादा?

कलम: पक्का वादा।

खिड़की का दरवाजे से संवाद

खिड़की: क्या बात है दरवाज़े भाई? आज बड़ी आवाजें कर रहे हो?

दरवाजा: क्या कहूँ बहन, खुलते बंद होते मेरे तो कब्जे हिल गए हैं। दर्द से चीख निकल ही जाती है।

खिड़की: कल तक तो ठीक थे।

दरवाज़ा: अरे, यह सब उस नटखट बच्चे की कारस्तानी है। इतनी जोर से धकेला मुझे कि मैं सर से पाँव तक हिल गया और चोट लगी सो अलग।

खिड़की: बच्चा है भाई। क्या करोगे?

दरवाज़ा: यही सोच कर तो छोड़ दिया। नहीं तो जी में आया था, उसकी उँगली ही दबा लूँ।

खिड़की: हा… हा…। बच्चे की उंगली दबा लेने से क्या तुम्हारा दर्द कम हो जाता भैया।

दरवाज़ा: अरे, मेरा क्या दर्द कम होगा और किसे परवाह है मेरे दर्द की? इतने दिनों से घर की हिफाजत कर रहा हूँ। किसी को ये ख्याल न आया कि बच्चे की गलती पर जरा उसे डाँट ही लगा दें।

खिड़की: भैया, तुम तो लगता है ज्यादा ही बुरा मान गए।

दरवाज़ा: बुरा मानने की बात ही है। किसी के लिए इतना करो और किसी को तुम्हारी परवाह ही नहीं।

खिड़की: अरे भैया, चिंता मत करो। खूब परवाह है उन्हें तुम्हारी। क्या वो नहीं जानते कि तुम्हारे नहीं रहने पर उन्हें क्या खतरा है? देखना शाम तक वो तुम्हें ठीक करने की कोई-न-कोई व्यवस्था जरूर करेंगे।

दरवाज़ा: भगवान करे बहन ऐसा ही हो। मेरी तो जान निकली जा रही है दर्द से।

खिड़की: हिम्मत रखो। सब ठीक हो जाएगा।

प्रश्न 4  उपर्युक्त में से दस-पंद्रह संवादों को चुनें, उनके साथ दृश्यों की कल्पना करें और एक छोटा सा नाटक लिखने का प्रयास करें। इस काम में अपने शिक्षक से सहयोग लें।

उत्तर- छात्र स्वयं करे