प्रस्तुत पाठ में सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा कुँवरसिंह की वीरता और साहस का वर्णन किया गया है। अंग्रजों के विरुद्ध विद्रोह करने पर 8 अप्रैल सन 1857 को मंगल पांडे को फाँसी की सजा दे दी गई थी। 10 मई 1857 को मेरठ में भारतीय सैनिकों ने अंग्रजों के खिलाफ आंदोलन किया। 11 मई को उन्होंने ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर बहादुरशाह जफ़र को भारत का शासक बना दिया।

सन 1857 में ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिलाने वाले स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी थे- मंगल पांडे, नाना साहेब, तात्या टोपे, अजीममुल्लाखान, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, कुँवरसिंह मौलवी अहमदुल्लाह,बहादुर खान, राव तुलाराम आदि थे। इस आंदोलन में कुँवरसिंह जैसे वयोवृद्ध व्यक्ति ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहादुरी के साथ युद्ध किया।

वीर कुँवरसिंह का जन्म 1782 में बिहार के शाहबाद जिले के जगदीशपुर रियासत में हुआ था। उनके माता-पिता पंचरतन कुँवर और साहबजादा सिंह थे। कुँवरसिंह अपने पिता की तरह ही वीर,स्वाभिमानी और उदार थे। पिता की मृत्यु के बाद 1827 में उन्होंने अपनी जगदीशपुर की रियासत की कमान सँभाली। इस दौरान उन्होंने अंग्रेजों से डटकर लोहा लिया। 
25 जुलाई, सन 1857 को दानापुर की सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया और वे सोन नदी पार कर आरा की ओर चल पड़े। कुँवरसिंह ने आरा पर विजय प्राप्त कर ली। उस समय आरा क्रांति का मुख्य केंद्र बन गया था। जमींदारों का अंग्रजों के साथ सहयोग और आधुनिक शस्त्रों की कमी के कारण अंग्रजों ने जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया। कुंवरसिंह ने इस पार हार न मानते हुए तुरंत भावी संग्राम की योजना में लग गए। उन्होंने ने सासाराम से मिर्जापुर, रीवा, कालपी, कानपूर, लखनऊ, आजमगढ़ में क्रांति की आग को जलाए रखा। लगातार अंग्रजों से युद्ध करके उन्होंने 22 मार्च 1858 को आजमगढ़ पर कब्जा कर लिया। अंग्रजों ने उनपर दोबारा हमला किया परन्तु दूसरी बार भी उन्हें हराकर कुंवरसिंह ने 23 अप्रैल 1858 को स्वतंत्रता का विजय झंडा लहराकर जगदीशपुर चले गए। लेकिन इसके तीन दिन बाद ही वीर कुंवरसिंह का निधन हो गया।

वीर कुँवर सिंह युद्धकला में पूरी तरह से कुशल थे। वे अत्यंत चतुर तथा साहसी योद्धा थे। उन्होंने अनेकों बार अंग्रजों को चकमा दिया। एक बार गंगा नदी को पार करने के लिए अंगेज सेनापति डगलस को झूठी खबर में फँसाकर अपनी सेना के साथ शिवराजपुर से गंगा पार गए। कुशल योद्धा होने के साथ सामाजिक कार्य भी करते थे। उन्होंने अपने समय में निर्धनों की सहायता की, कुएँ खुदवाए, तालाब बनवाए। वे अत्यंत उदार एवं संवेदनशील व्यक्ति थे। लोकभाषाओं में आज भी उस वीर सेनानी का यशगान किया जाता है।

प्रस्तुत पाठ में सन 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के योद्धा कुँवरसिंह की वीरता और साहस का वर्णन किया गया है। अंग्रजों के विरुद्ध विद्रोह करने पर 8 अप्रैल सन 1857 को मंगल पांडे को फाँसी की सजा दे दी गई थी। 10 मई 1857 को मेरठ में भारतीय सैनिकों ने अंग्रजों के खिलाफ आंदोलन किया। 11 मई को उन्होंने ने दिल्ली पर कब्ज़ा कर बहादुरशाह जफ़र को भारत का शासक बना दिया।

सन 1857 में ब्रिटिश सरकार की जड़ें हिलाने वाले स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख सेनानी थे- मंगल पांडे, नाना साहेब, तात्या टोपे, अजीममुल्लाखान, रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, कुँवरसिंह मौलवी अहमदुल्लाह,बहादुर खान, राव तुलाराम आदि थे। इस आंदोलन में कुँवरसिंह जैसे वयोवृद्ध व्यक्ति ने भी ब्रिटिश शासन के खिलाफ बहादुरी के साथ युद्ध किया।

वीर कुँवरसिंह का जन्म 1782 में बिहार के शाहबाद जिले के जगदीशपुर रियासत में हुआ था। उनके माता-पिता पंचरतन कुँवर और साहबजादा सिंह थे। कुँवरसिंह अपने पिता की तरह ही वीर,स्वाभिमानी और उदार थे। पिता की मृत्यु के बाद 1827 में उन्होंने अपनी जगदीशपुर की रियासत की कमान सँभाली। इस दौरान उन्होंने अंग्रेजों से डटकर लोहा लिया। 

25 जुलाई, सन 1857 को दानापुर की सैनिक टुकड़ी ने विद्रोह कर दिया और वे सोन नदी पार कर आरा की ओर चल पड़े। कुँवरसिंह ने आरा पर विजय प्राप्त कर ली। उस समय आरा क्रांति का मुख्य केंद्र बन गया था। जमींदारों का अंग्रजों के साथ सहयोग और आधुनिक शस्त्रों की कमी के कारण अंग्रजों ने जगदीशपुर पर कब्जा कर लिया। कुंवरसिंह ने इस पार हार न मानते हुए तुरंत भावी संग्राम की योजना में लग गए। उन्होंने ने सासाराम से मिर्जापुर, रीवा, कालपी, कानपूर, लखनऊ, आजमगढ़ में क्रांति की आग को जलाए रखा। लगातार अंग्रजों से युद्ध करके उन्होंने 22 मार्च 1858 को आजमगढ़ पर कब्जा कर लिया। अंग्रजों ने उनपर दोबारा हमला किया परन्तु दूसरी बार भी उन्हें हराकर कुंवरसिंह ने 23 अप्रैल 1858 को स्वतंत्रता का विजय झंडा लहराकर जगदीशपुर चले गए। लेकिन इसके तीन दिन बाद ही वीर कुंवरसिंह का निधन हो गया।

वीर कुँवर सिंह युद्धकला में पूरी तरह से कुशल थे। वे अत्यंत चतुर तथा साहसी योद्धा थे। उन्होंने अनेकों बार अंग्रजों को चकमा दिया। एक बार गंगा नदी को पार करने के लिए अंगेज सेनापति डगलस को झूठी खबर में फँसाकर अपनी सेना के साथ शिवराजपुर से गंगा पार गए। कुशल योद्धा होने के साथ सामाजिक कार्य भी करते थे। उन्होंने अपने समय में निर्धनों की सहायता की, कुएँ खुदवाए, तालाब बनवाए। वे अत्यंत उदार एवं संवेदनशील व्यक्ति थे। लोकभाषाओं में आज भी उस वीर सेनानी का यशगान किया जाता है।

NCERT SOLUTIONS

निबंध से प्रश्न (पृष्ठ संख्या 127)

प्रश्न 1 वीर कुँवरसिंह के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी विशेषताओं ने आपको प्रभावित किया?

उत्तर- वीर कुँवरसिंह के व्यक्तित्व की निम्न विशेषताओं ने हमें प्रभावित किया है-

  • बहादुर
  • साहस
  • बुद्धिमान व चतुर
  • उदार
  • सांप्रदायिक सद्भाव

प्रश्न 2 कुँवरसिंह को बचपन में किन कामों में मजा आता था? क्या उन्हें उन कामों से स्वतंत्रता सेनानी बनने में कुछ मदद मिली?

उत्तर- कुँवरसिंह को बचपन में घुड़सवारी, तलवारबाजी और कुश्ती लड़ने में मजा आता था। उन्हें इन कामों से स्वतंत्रता सेनानी बनने में भरपूर मदद मिली। इन सब से उनके अंदर साहस और वीरता का विकास हुआ साथ ही वे तलवारबाजी और घुड़सवारी की कला में निपुण हुए जिसे उन्हेोने अंग्रेज़ों के खिलाफ युद्ध करने में इस्तेमाल किया।

प्रश्न 3 सांप्रदायिक सद्भाव में कुँवर सिंह की गहरी आस्था थी -पाठ के आधार पर कथन की पुष्टि कीजिए।

उत्तर- इब्राहिम खाँ और किफायत हुसैन उनकी सेना में धर्म के आधार पर नहीं अपितु कार्यकुशलता और वीरता के कारण उच्च पद पर आसीन थे। उनके यहाँ हिन्दुओं के और मुसलमानों के सभी त्योहार एक साथ मिलकर मनाए जाते थे। उन्होंने पाठशाला के साथ मकतब भी बनवाए। इनसे पता चलता है की सांप्रदायिक सद्भाव में कुँवर सिंह की गहरी आस्था थी।

प्रश्न 4 पाठ के किन प्रसंगों से आपको पता चलता है कि कुँवर सिंह साहसी, उदार एवं स्वाभिमानी व्यक्ति थे?

उत्तर- साहसी- ऊनि पूरी जीवन गाथा उनके साहसी होने का प्रमाण है। कुँवर सिंह ने जगदीशपुर हारने के बाद भी मनोबल नही खोया और संग्राम में भाग लिया। उन्होंने अपनी घायल भुजा को स्वयं काटकर गंगा में समर्पित कर दिया जो की साहस का अद्वितीय उदहारण है।

उदार- कुँवरसिंह बड़े ही उदार हृदय थे। उनकी माली हालत अच्छी न होने के बावजूद वे निर्धनों की हमेशा सहायता करते थे। उन्होंने कई तालाबों, कुँओं, स्कूलों तथा रास्तों का निर्माण किया।

स्वाभिमानी- वयोवृद्ध हो चुकने के बाद भी उन्होंने अंग्रेज़ों के सामने घुटने नहीं टेके और उनका डटकर मुकाबला किया।

प्रश्न 5 आमतौर पर मेले मनोरंजन, खरीद फ़रोख्त एवं मेलजोल के लिए होते हैं। वीर कुँवरसिंह ने मेले का उपयोग किस रूप में किया?

उत्तर- वीर कुँवरसिंह ने मेले का उपयोग स्वतंत्रता की क्रांतिकारी गतिविधियों, गुप्त बैठकों की योजनाओं को कार्यान्वयित करने के रूप में किया।

निबंध से प्रश्न (पृष्ठ संख्या 127)

प्रश्न 1 सन् 1857 के आंदोलन में भाग लेनेवाले किन्हीं चार सेनानियों पर दो-दो वाक्य लिखिए।

उत्तर- 

  1. रानी लक्ष्मीबाई-झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई बचपन से ही तलवारबाजी और युद्धाभ्यास किया करती थीं। पति गंगाधर राव की मृत्यु के बाद अपने राज्य को अंग्रेज़ों से बचाने के लिए उन्होंने वीरतापूर्वक युद्ध किया तथा 23 वर्ष की अल्पायु में ही शहीद हो गई।
  2. मंगल पांडे-अंग्रेजी सेना का मामूली सा सिपाही मंगल पांडे कट्टर धर्मावलंबी था। कारतूस में गाय और सूअर की चर्बी की बात पता चलने पर उन्होंने ने विद्रोह की शुरूआत की थी।
  3. नाना साहेब पेशवा-कानपुर के नाना साहब पेशवा ने रानी लक्ष्मीबाई को अपनी मुँहबोली बहन माना था। वह एक वीर योद्धा, कुशल सेनानी तथा परम देशभक्त थे।
  4. अजीमुल्लाह खान-वीर योद्धा, परम देशभक्त तथा धर्मनिरपेक्ष अजीमुल्ला खान नाना साहेब पेशवा के विधिवेत्ता थे। उन्होंने बढ़-चढ़ कर स्वाधीनता संग्राम में हिस्सा लिया तथा अंग्रेज़ों के हाथों पकड़े गए।

प्रश्न 2 सन् 1857 के क्रांतिकारियों से संबंधित गीत विभिन्न भाषाओं और बोलियों में गाए जाते हैं। ऐसे कुछ गीतों को संकलित कीजिए।

उत्तर- सन् 1857 के क्रांतिकारियों से संबंधित गीत विभिन्न भाषाओं और बोलियों में गाए जाते हैं। ऐसे कुछ गीतों को संकलित कीजिए।

अनुमान और कल्पना प्रश्न (पृष्ठ संख्या 127)

प्रश्न 1 वीर कुंवर सिंह का पढ़ने के साथ-साथ कुश्ती और घुड़सवारी में अधिक मन लगता था। आपको पढ़ने के अलावा और किन-किन गतिविधियों या कामों में खूब मज़ा आता है? लिखिए।

उत्तर- हमें पढ़ने के साथ-साथ क्रिकेट खेलने, पार्क में घू, सिनेमा देखने एवं दोस्तों के साथ गप्पे मारना अच्छा लगता है। इसके अलावा बाइक की सवारी करना अच्छा लगता है।

प्रश्न 2 सन् 1857 में अगर आप 12 वर्ष के होते तो क्या करते? कल्पना करके लिखिए।

उत्तर- सन् 1857 में यदि मैं 12 वर्ष के होता तो उस समय की राजनीति, सामाजिक स्थिति और माहौल का प्रभाव मझ पर भी अवश्य पड़ता। इससे मुझमें भी देशप्रेम और विद्रोह की भावना जरूर विकसित होती। मैं भी तलवारबाजी, कुश्ती तथा घुड़सवारी का अभ्यास करता। इतना ही नहीं मैं स्वतंत्रता संग्राम के सेनानियों के संदेश एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाने में उनकी सहायता भी करता।

प्रश्न 3 अनुमान लगाइए, स्वाधीनता की योजना बनाने के लिए सोनपुर के मेले को क्यों चुना गया होगा?

उत्तर- सोनपुर का मेला एशिया का सबसे बड़ा मेला है। यह हरिहर क्षेत्र में काफी दूर तक लगता है। इसमें काफी भीड़ होती है तथा तरह-तरह के पशु-पक्षियों की खरीद-बिक्री भी की जाती है। स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वाधीनता की योजना बनाने के लिए इन्हीं कारणों से इस मेले को चुना होगा। भीड़-भाड़ के कारण अंग्रेजों के लिए उन्हें पहचानना और पकड़ पाना असंभव था। इतना ही नहीं मेले जैसी जगह में अगर वह एकत्र होकर बातचीत करते थे, तो कोई उन पर संदेह भी नहीं कर सकता था। किसी के लिए यह समझ पाना अत्यंत मुश्किल होता कि उनमें क्रांतिकारी कौन है और मेले का दर्शक कौन है। उनके वहाँ आने का वास्तविक उद्देश्य क्या है, यह भी पता न चल पाता।

भाषा की बात प्रश्न (पृष्ठ संख्या 127)

प्रश्न 1 आप जानते हैं कि किसी शब्द को बहुवचन में प्रयोग करने पर उसकी वर्तनी में बदलाव आता है। जैसे- सेनानी एक व्यक्ति के लिए प्रयोग करते हैं और सेनानियों एक से अधिक के लिए। सेनानी शब्द की वर्तनी में बदलाव यह हुआ है कि अंत के वर्ण ‘नी’ की मात्रा दीर्घ ।’ (ई) से ह्रस्व ” (इ) हो गई है। ऐसे शब्दों को, जिनके अंत में दीर्घ ईकार होता है, बहुवचन बनाने पर वह इकार हो जाता है, यदि शब्द के अंत में ह्रस्व इकार होता है, तो उसमें परिवर्तन नहीं होता जैसे- दृष्टि से दृष्टियों।

  • नीचे दिए गए शब्दों का वचन बदलिए।

नीति….

जिम्मेदारियों…

सलामी….

स्थिति….

स्वाभिमानियों….

गोली….

उत्तर-

नीतिनीतियों
जिम्मेदारियोंजिम्मेदारी
सलामीसलामियाँ
स्थितिस्थितियों
स्वाभिमानियोंस्वाभिमानी
गोलीगोलियाँ