अध्याय-2: हमारी पृथ्वी के अंदर

पृथ्वी का आंतरिक भाग

पृथ्वी की आकृति लध्वक्ष गोलाभ (Oblate spheroid) के समान है। यह लगभग गोलाकार है जो ध्रुवों  पर थोड़ा चपटी है। पृथ्वी पर सबसे उच्चतम बिंदु माउंट एवरेस्ट है जिसकी ऊँचाई 8848 मी. है। दूसरी ओर सबसे निम्नतम बिंदु प्रशांत महासागर में स्थित मारियाना खाई है जिसकी समुद्री स्तर से गहराई 10,911 मी. है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना कई स्तरों में विभाजित है। पृथ्वी की आंतरिक संरचना के तीन प्रधान अंग हैं- ऊपरी सतह भूपर्पटी (Crust), मध्य स्तर मैंटल (mantle) और आंतरिक स्तर धात्विक क्रोड (Core)। पृथ्वी के कुल आयतन का 0.5% भाग भूपर्पटी का है जबकि 83% भाग में मैंटल विस्तृत है। शेष 16% भाग क्रोड है।

भूपर्पटी:- भूपर्पटी अथवा क्रस्ट की मोटाई 8 से 40 किमी. तक मानी जाती है। इस परत की निचली सीमा को मोहोरोविसिक असंबद्धता या मोहो असंबद्धता कहा जाता है। पृथ्वी पर महासागर और महाद्वीप केवल इसी भाग में स्थित हैं।

मैंटल:- मैंटल की मोटाई लगभग 2895 किमी. है। यह अद्र्ध-ठोस अवस्था में है। एक संक्रमण परत जो मैंटल को क्रोड या कोर से विभक्त करती है उसे गुटेनबर्ग असंबद्धता कहते हैं।

क्रोड:- बाह्म्तम क्रोड की विशेषता यह है कि यह तरल अवस्था में है जबकि आंतरिक क्रोड का पदार्थ ठोस पदार्थ की भांति व्यवहार करता है। इसकी त्रिज्या लगभग 1255 किमी. है। आंतरिक क्रोड के घूर्णन का कोणीय वेग पृथ्वी के कोणीय वेग से थोड़ा अधिक होता है।

पृथ्वी का निर्माण आयरन (32.1 फीसदी), ऑक्सीजन (30.1 फीसदी), सिलिकॉन (15.1 फीसदी), मैग्नीशियम (13.9 फीसदी), सल्फर (2.9 फीसदी), निकिल (1.8 फीसदी), कैलसियम (1.5 फीसदी) और अलम्युनियम (1.4 फीसदी) से हुआ है। इसके अतिरिक्त लगभग 1.2 फीसदी अन्य तत्वों का भी योगदान है। क्रोड का निर्माण लगभग 88.8 फीसदी आयरन से हुआ है। भूरसायनशास्त्री एफ. डल्ब्यू. क्लार्क के अनुसार पृथ्वी की भूपर्पटी में लगभग 47 फीसदी ऑक्सीजन है।

पृथ्वी की आंतरिक परतें

गहराई (किमी.)परत
0-35भूपर्पटी या क्रस्ट
35-60ऊपरी भूपर्पटी
35-2890मैंटल
2890-5100बाहरी क्रोड
5100-6378आंतरिक क्रोड

प्लेट टेक्टोनिक्स

महाद्वीपों और महासागरों के वितरण को स्पष्ट करने के लिए यह सबसे नवीन सिद्धांत है। इस सिद्धांत के अनुसार स्थलमंडल कई दृढ़ प्लेटों के रूप में विभाजित है। ये प्लेटें स्थलमंडल के नीचे स्थित दुर्बलतामंडल के ऊपर तैर रही हैं। इस सिद्धांत के अनुसार भूगर्भ में उत्पन्न ऊष्मीय संवहनीय धाराओं के प्रभाव के अंतर्गत महाद्वीपीय और महासागरीय प्लेटें विभिन्न दिशाओं में विस्थापित होती रहती हैं। स्थलमंडलीय प्लेटों के इस संचलन को महाद्वीपों तथा महासागरों के वर्तमान वितरण के लिए उत्तरदायी माना जाता है। जहां दो प्लेटें विपरीत दिशाओं में अपसरित होती हैं उन किनारों को रचनात्मक प्लेट किनारा या अपसारी सीमांत कहते हैं। जब दो प्लेटें आमने-सामने अभिसरित होती हैं तो इन्हें विनाशशील प्लेट किनारे अथवा अभिसारी सीमांत कहते हैं।

सबसे पुरानी महासागरीय भूपर्पटी पश्चिमी प्रशांत में स्थित है। इसकी अनुमानित आयु 20 करोड़ वर्ष है। अन्य प्रमुख प्लेटों में भारतीय प्लेट, अरब प्लेट, कैरेबियाई प्लेट, दक्षिणी अमेरिका के पश्चिमी तट पर स्थित नाज्का प्लेट और दक्षिणी अटलांटिक महासागर की स्कॉटिया प्लेट शामिल हैं। लगभग 5 से 5.5 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय व ऑस्ट्रेलियाई प्लेटें एक थी।

पृथ्वी के आयतन का केवल 1% हिस्सा ही पर्पटी है। 84% मेंटल एंव 15% हिस्सा क्रोड है । पृथ्वी की त्रिज्या 6371 किलोमीटर है।

शैल

भूपर्पटी की संरचना जिन तत्वों से हुई है। उन्हें शैल या चट्टान कहते हैं। यह अनेक खनिज एवं लवणों लवणों का मिश्रण होती हैं। इस प्रकार भूपर्पटी का निर्माण विभिन्न प्रकार की सालों सालों से हुआ है शैलो की रचना में फेलस्पार, क्वार्ट्ज, अभ्रक के सिलिकेट खनिजों का अधिक मिलता है।

शैल की परिभाषा

आर्थर होम्स के अनुसार शैल की परिभाषा

“शैले विभिन्न प्रकार के खनिज पदार्थों का मिश्रण होती हैं। कुछ शैले एक ही खनिज के योग से मिलकर बनती हैं। जबकि अधिकांश का निर्माण एक से अधिक खनिजों के योग से होता है ।वह चाहे चीका की भांति मुलायम हो अथवा ग्रेनाइट की भांति कठोर हो शैल कहलाती हैं।”

शैल के प्रकार

उत्पत्ति के आधार पर शैल के तीन प्रकार होते है।

  1. आग्नेय शैल।
  2. अवसादी शैल।
  3. कायान्तरित शैल।

आग्नेय शैल –

जो चट्टाने पिघले चट्टानी पदार्थों के ठंडे होने से ठोस हो गई हैं, आग्नेय शैल कहलाती हैं। भू पृष्ठ पर पाई जाने वाली शैलो में आग्नेय शैल प्राचीनतम शैले हैं। इन शैलो को प्राथमिक सेल भी कहा जाता है, क्योंकि अन्य शैलो की उत्पत्ति इन्हीं के कारण होती है। भूगर्भ का तरल एवं तप्त मैग्मा या लावा भूपृष्ठ पर पहुंचकर ठंडा होने से रवेदार कणों के रूप में जमकर आग्नेय शैल का रूप धारण करता है। आग्नेय शैल के उत्तम उदाहरण बैसाल्ट और ग्रेनाइट हैं।

अवसादी शैल –

अवसादी शैलो का निर्माण तलछट के जमाव से होता है। जिसका जमाव सागरों एवं झीलों की तली में होता है। अवसादो में बजरी, बालू ,चूना ,कीचड़ ,गाद और चिकनी मिट्टी के कण मिले रहते हैं। इसका निक्षेपण कणों के आधार और भार के अनुरूप होता है। अर्थात भारी कण नीचे की ओर तथा हल्के कण ऊपर की ओर निक्षेपित हो जाते हैं। अवसाद की परतों से नीचे होने के कारण ही इन्हें परतदार शैल भी कहा जाता है। भू पृष्ठ पर अवसादी शैलो का विस्तार सबसे अधिक मिलता है।चूना पत्थर और बलुआ पत्थर अवसादी शैल के प्रमुख उदाहरण है

कायान्तरित शैल –

कायांतरण शब्द अँग्रेजी भाषा के मेटामॉरफिक शब्द का हिंदी अनुवाद हैं। इन शैलो का निर्माणा आग्नेय एवं परत दार शैलो के रूप परिवर्तन के कारण होता है।इसलिए इन्हें कायांतरित शैल या रूपांतरित शैल कहा जाता है। कभी-कभी कायांतरित शैल का पुनः कायांतरण हो जाता है। कायांतरण के समय मूल शैल की प्रकृति बदल जाती है इस प्रक्रिया में पुराने खनिज नया रूप धारण कर लेते हैं। जिससे नवीन खनिजों का निर्माण हो जाता है। शैलो में रवे बन जाते हैं।तथा पूर्व निर्मित रवो का रूप भी बदल सकता है संगमरमर महत्वपूर्ण कायांतरित शैल है ।जिसकी रचना चूना पत्थर के कायांतरण से हुई है ।बलुआ पत्थर का कायांतरण क्वार्टजाइट में होता है।

शैल चक्र

शैल चक्र का संबंध चट्टानों के स्वरूपीय परिवर्तन से है। शैलें अपने मूल रूप में अधिक समय तक नहीं रहती हैं, बल्कि इनमें परिवर्तन होता रहता है।

शैल चक्र एक सतत् प्रक्रिया है, जिसमें पुरानी शैलें परिवर्तित होकर नवीन रूप लेती हैं।
आग्नेय शैलें प्राथमिक शैलें हैं तथा अन्य (अवसादी एवं कायांतरित) शैलें इन प्राथमिक शैलों से निर्मित होती हैं। आग्नेय शैलों के अनाच्छादन के फलस्वरूप अवसादी शैलों का तथा अत्यधिक ताप व दाब के फलस्वरूप कायांतरित शैलों का निर्माण होता है।
आग्नेय एवं कायांतरित शैलों से प्राप्त अंशों से अवसादी शैलों का निर्माण होता है। अवसादी शैलें अपखंडों में परिवर्तित हो सकती हैं तथा ये अपखंड अवसादी शैलों के निर्माण का एक स्रोत हो सकते हैं। निर्मित भूपृष्ठीय शैलें (आग्नेय, कायांतरित एवं अवसादी) प्रत्यावर्तन के द्वारा पृथ्वी के आंतरिक भाग में नीचे की ओर जा सकती हैं तथा पृथ्वी के आंतरिक भाग में तापमान बढ़ने के कारण ये शैलें पिघलकर मैग्मा में परिवर्तित हो जाते हैं। यही मैग्मा सभी शैलों का मूल स्रोत हैं।

जीवाश्म

शब्द ‘जीवाश्म’ को प्राचीन जीवन के अवशेषों या लेश तत्वों के रूप में परिभाषित किया जा सकता है जो प्राकृतिक प्रक्रियाओं द्वारा अवसादी शैलों में परिरक्षित हो गए।

  • जीवाश्म प्राचीन जीवन के एक मात्र प्रत्यक्ष प्रमाण को प्रदर्शित करते हैं। ये जीवों के परिरक्षित कंकालों, अस्थियों और कवचों के रूप में पाए जा सकते हैं अथवा व्यवहारगत् क्रियाकलापों जैसे जीवों के पथों ( tracks), पथचिन्हों (trails) और पदचिन्हों (foot prints) की परिरक्षित छापों के रूप में भी पाए जा सकते हैं। 
  • जीवाश्म शब्द सामान्यतः उन जीवों के अवशेषो के लिए सीमित है जो हजारों करोड़ वर्ष पूर्व मर गए थे। ये व्यापक रूप से स्वीकृत है कि शैलों में पाए गए 10,000 वर्ष पूर्व के अवशेष को भी जीवाश्म कहा जा सकता है। 
  • लेकिन 10,000 वर्ष से कम के जैविक अवशेष और जो आज भी जीवाश्मीभवन की प्रक्रिया में है, उन्हें उपजीवाश्म (subfossil) कहते हैं

 जीवाश्म का आकार (साइज) 

  • जीवाश्म विभिन्न साइज के होते हैं। ये एक माइक्रोमीटर व्यास के सूक्ष्मजीवी जीवाणुओं से लेकर विशालकाय डाइनोसॉर अथवा वृक्ष के अनेक मीटर लंबे जीवाश्म तनों तक के हो सकते हैं।
  • आपने पेट्रोलियम, कोयला और प्राकृतिक गैस के विषय में सुना होगा ये सभी ऊर्जा के गैर- नवीकरणीय (non-renewable) स्रोत हैं और यह सामूहिक रूप से जीवाश्मी ईंधन (fossil fuels) कहलाते हैं। जीवाश्मी ईंधन भी प्राचीन जीवों के जैविक अवशेषों से बनते हैं। इनमें कार्बन और हाइड्रोजन का उच्च प्रतिशत रहता है और इसलिए ये सामान्यतः ईंधन के रूप में प्रयोग किए जाते हैं। इन्हें जीवाश्म नहीं माना जाता है क्योंकि ये पूर्व जीवन के विषय में बहुत कम या कोई जानकारी प्रदान नही करते हैं। कभी-कभी कोयले में प्राचीन पादपों की परिरक्षित तने, पत्तियां, जड़े और कोशिकाएं निहित होती है, जिनकी एक निश्चित स्तर तक पहचान की जा सकती है।

जीवाश्मों के प्रकार

शैलों की परतों में अनेक प्रकार के जीवाश्म पाए जाते हैं। उनमें से कुछ जैसे देह (body) और अनुरेख (trace) जीवाश्म अधिक सामान्य हैं जबकि अन्य जीवाश्म कम सामान्य हैं। परिरक्षण की विधियाँ, साइज और उपयोगों के आधार पर जीवाश्मों को सामान्यरूप से अनेक प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।

 परिरक्षण की विधियाँ के आधार पर

  • देह जीवाश्म 
  • अनुरेख जीवाश्म
  • रासायनिक जीवाश्म
  • कूट जीवाश्म

साइज के आधार पर

  • स्थूल जीवाश्म 
  • सूक्ष्म जीवाश्म 
  • परासूक्ष्म जीवाश्म

उपयोगों के आधार पर

  • सूचक जीवाश्म 
  • जीवित जीवाश्म

NCERT SOLUTIONS

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 10)

प्रश्न 1 निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए:-

  1. पृथ्वी की तीन परतें क्या हैं ?
  2. शैल क्या है ?
  3. तीन प्रकार की शैलों के नाम लिखें।
  4. बहिर्भेदी एवं अंतर्भदी शैल का निर्माण कैसे होता है ?
  5. शैल चक्र से आप क्या समझते है ?
  6. शैलों के क्या उपयोग है ?
  7. कायांतरित शैल क्या हैं ?

उत्तर –

  1. एक प्याज की तरह पृथ्वी भी एक के ऊपर एक संकेंद्री परतों से बनी हैI पृथ्वी की सतह की सबसे ऊपरी परत को पर्पटी कहते हैं। यह सबसे पतली परत होती है। यह महाद्वीपीय संहति में 35 किलोमीटर एवं समुद्री सतह में केवल 5 किलोमीटर तक महाद्वीपीय संहति मुख्य रूप से सिलिका एवं ऐलुमिना जैसे खनिजों से बनी है। इसलिए इसे सिएल (सि – सिलिका तथा एल – एलुमिना) कहा जाता है। पर्पटी के ठीक नीचे मैंटल होता है जो 2900 किलोमीटर की गहराई तक फैला होता है। इसकी सबसे आतरिक परत क्रोड है जिसकी त्रिज्या लगभग 3500 किलामीटर है,  यह मुख्यतः निकल एवं लोहे की बनी होती है तथा इसे निफे (नि – निकिल तथा फे – फैरस) कहते हैं ।
  2. पृथ्वी की पर्पटी अनेक प्रकार के शैलों से बनी है। पृथ्वी की पर्पटी बनाने वाले खनिज पदार्थ के किसी भी प्राकृतिक पिंड को शैल कहते हैं। शैल विभिन्न रंग, आकार एवं गठन की हो सकती हैं।  
  3. आग्नेय (इग्नियस) शैल, अवसादी (सेडिमेंट्री) शैल एवं कायांतरित (मेटामॉरफिक) शैल।
  4. आग्नेय शैल दो प्रकार की होती  है :- अंतर्भेदी शैल एवं बर्हिभेदी शैल। वास्तव में आग की तरह लाल द्रवित्त मैग्मा ही लावा है जो पृथ्वी के आंतरिक भाग से निकलकर सतह पर आता है। जब द्रवित लावा पृथ्वी की सतह पर आता है, वह तेजी से ठंडा होकर ठोस बन जाता है। इस प्रकार बहिर्भेदी शैल का निर्माण होता है। इनकी संरचना बहुत महीन दानों वाली होती है उदाहरण के लिए – बेसाल्ट। द्रवित मैग्मा कभी – कभी भू – पर्पटी के अंदर गहराई में ही ठंडा हो जाता है। इस प्रकार अंतर्भेदी शैल का निर्माण होता है। धीरे – धीरे ठंडा होने के कारण ये बड़े दानों का रूप ले लेते हैं। ग्रेनाइट ऐसे ही शैल का एक उदाहरण है।
  5. किन्हीं निश्चित दशाओं में एक प्रकार की शैल चक्रीय तरीके से एक – दूसरे में परिवर्तित हो जाते हैं। एक शैल से दूसरे शैल में परिवर्तन होने की इस प्रक्रिया को शैल चक्र कहते हैं ।

द्रवित मैग्मा ठंडा होकर ठोस आग्नेय शैल बन जाता है । ये आग्नेय शैल छोटे – छोटे टुकड़ों में टूटकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित होकर अवसादी शैल का निर्माण करते हैं । ताप एवं दाब के कारण ये आग्नेय एवं अवसादी शैल कायांतरित शैल में बदल जाते हैं । अत्यधिक ताप एवं दाब के कारण कायांतरित शैल पुनः पिघलकर द्रवित मैग्मा बन जाती है । यह द्रवित मैग्मा पुनः ठंडा होकर ठोस आग्नेय शैल में परिवर्तित हो जाता है।

  1. शैल विभिन्न खनिजों से बनी होती हैं। खनिज मानव जाति के लिए बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। कुछ का उपयोग ईंधन की तरह होता है जैसे – कोयला, प्राकृतिक गैस एवं पेट्रोलियम। इनका उपयोग उद्योगों, औषधि एवं उर्वरक में भी होता है जैसे – लोहा, एल्यूमिनियम, सोना, यूरेनियम, आदि। शैल हमारे लिए बहुत उपयोगी हैं। कठोर शैलों का उपयोग सड़क, घर एवं इमारत बनाने के लिए किया जाता है ।
  2. आग्नेय एवं अवसादी शैल उच्च ताप एवं दाब के कारण कायांतरित शैलों में परिवर्तित हो जाती है जिसे कायांतरित शैल कहते है। उदाहरण के लिए:- चिकनी मिट्टी स्लेट में एवं चूना पत्थर संगमरमर में परिवर्तित हो जाता है।

प्रश्न 2 सही (√) उत्तर चिह्नित कीजिए:-

  1. द्रवित मैग्मा से बने शैल

(i) आग्नेय  (ii) अवसादी  (iii)  कायांतरित

  1. पृथ्वी की सबसे भीतरी परत

(i) पर्पटी    (ii)  क्रोड    (iii) मैंटल

  1. सोना, पेट्रोलियम एवं कोयला किसके उदाहरण हैं

(i) शैल   (ii)  खनिज  (iii)  जीवाश्म

  1. शैल , जिसमें जीवाश्म होते हैं

(i) अवसादी शैल (ii) कायांतरित शैल (iii) आग्नेय शैल 

  1. पृथ्वी की सबसे पतली परत है

(i) पर्पटी    (ii)  मैंटल    (iii)  क्रोड

उत्तर –

  1. (i) आग्नेय
  2. (ii) क्रोड
  3. (ii) खनिज
  4. (i) अवसादी शैल
  5. (i) पर्पटी

प्रश्न 3 निम्नलिखित स्तंभों को मिलाकर सही जोड़े बनाइए:-

उत्तर –

Text

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प्रश्न (पृष्ठ संख्या 11)

प्रश्न 4 कारण बताइए

  1. हम पृथ्वी के केंद्र तक नहीं जा सकते हैं।
  2. अवसादी शैल अवसाद से बनती है।
  3. चूना पत्थर संगमरमर में बदलता है।

उत्तर –

  1. हमारी पृथ्वी एक गतिशील ग्रह है। इसके अंदर एवं बाहर निरंतर परिवर्तन होता रहता है। पृथ्वी के आंतरिक भाग में क्या है ? पृथ्वी किन पदार्थों से बनी है ? और इसके केंद्र तक जाने की भावना भी कई बार उत्पन्न होती है लेकिन पृथ्वी के केंद्र तक पहुंचने के लिए (जो बिलकुल असंभव है) आपको समुद्र की सतह पर 6000 किलोमीटर गहराई तक खोदना होगा।
  2. शैल लुढ़ककर, चटककर तथा एक – दूसरे से टकराकर छोटे – छोटे टुकड़ों में टूट जाती हैं,  इन छोटे कणों को अवसाद कहते हैं। ये अवसाद हवा, जल आदि द्वारा एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाकर, जमा कर दिए जाते हैं। ये अदृढ़ अवसाद दबकर एवं कठोर होकर शैल की परत बनाते हैं। इस प्रकार की शैलों को अवसादी शैल कहते है। उदाहरण के लिए, बलुआ पत्थर रेत के दानों से बनता है। इन शैलों में पौधों, जानवरों एवं अन्य सूक्ष्म जीवाणुओं, जो कभी इन शैलों पर रहे हैं, जीवाश्म भी हो सकते है।
  3. चूना एक अवसादी शैल है इसलिए आग्नेय एवं अवसादी शैलें उच्च ताप एवं दाब के कारण कायोतरित शैलों में परिवर्तित हो जाती हैं। चूना पत्थर के साथ यह क्रिया होने पर वह संगमरमर में बदल जाता है।

प्रश्न 5  आओ खेले :-

  1. निम्न वस्तुओं में उपयोग किए गए खनिजों की पहचान करें।
  2. विभिन्न खनिजों से बनी अन्य कुछ वस्तुओं के चित्र बनाए।

उत्तर –

  1. कढ़ाई का उपयोग सब्जी बनाने में, तवे का उपयोग रोटी सेकने में , आभूषणों का उपयोग स्त्रियां अपनी सुंदरता बनाए रखने में करती है।
  2. एक छोटी सूई से लेकर बड़ी बड़ी इमारते भी खनिज से बनी है।