अध्याय-1: समानता

समानता एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है जिसे भारतीय संविधान में प्रतिपादित किया गया है। भारतीय संविधान सभी नागरिकों को उनकी जाति, वर्ग, पंथ और लिंग के बावजूद समानता की गारंटी देता है।

समानता और भारतीय संविधान

समानता का तात्पर्य समान होने की स्थिति से है। आज हमारे समाज में कई तरह की असमानताएं मौजूद हैं। हमारे देश में मौजूद सबसे बुरी असमानताओं में से एक जाति व्यवस्था पर आधारित है। आर्थिक, धार्मिक और लैंगिक असमानताएँ कुछ अन्य प्रकार की असमानताएँ हैं।

भारतीय संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू हुआ। भारत का संविधान अपने सभी नागरिकों को समानता, स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांत प्रदान करता है।

संविधान द्वारा लोगों के लिए समानता के सिद्धांत को मुख्य रूप से निम्नलिखित तरीकों से सुनिश्चित किया गया है:

• हमारा संविधान कानून के समक्ष प्रत्येक व्यक्ति को समान घोषित करता है। इसका मतलब है कि देश के हर नागरिक, चाहे अमीर हो या गरीब, को देश के कानूनों का पालन करना होगा।

• संविधान जाति, नस्ल, धर्म, लिंग या वर्ग के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव को प्रतिबंधित करता है।

• प्रत्येक व्यक्ति को सार्वजनिक स्थानों जैसे पार्कों, कुओं, स्नान घाटों और सड़कों तक पहुँचने का अधिकार है।

• देश से अस्पृश्यता को समाप्त कर दिया गया है।A picture containing text, furniture, picture frame

Description automatically generated

• देश में 18 वर्ष से अधिक आयु के प्रत्येक नागरिक को मतदान का अधिकार है। इसे सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार कहा जाता है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी जाति, संप्रदाय, लिंग और वर्ग के बावजूद अपना प्रतिनिधि चुनने का अधिकार है।

लोकतांत्रिक सरकार के मुख्य तत्व

लोगों की भागीदारी संघर्ष का शांतिपूर्ण समाधान, समानता और न्याय।

भारत एक लोकतंत्रीय देश है। ‘ समानता ‘ लोकतंत्र की मुख्य विशेषता है और इसकी कार्यप्रणाली सभी पहलुओं को प्रभावित करती है।

मताधिकार की समानता

भारत लोकतांत्रिक देश है जहाँ सभी वयस्कों को मत देने का अधिकार है ; चाहे उनका धर्म कोई भी हो, शिक्षा का स्तर या जाति कुछ भी हो, वे गरीब हों या अमीर सभी को मताधिकार का अधिकार है।

सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार

सभी नागरिक जो अपनी जाति या शिक्षा, धर्म, रंग, नस्ल और आर्थिक स्थितियों की परवाह किए बिना 18 या उससे अधिक उम्र के हैं तो वो वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं।

यह सभी लोकतंत्रों का आवश्यक पहलू है। ये समानता के विचार पर आधारित है ।

अन्य प्रकार की असमानता

निर्धन होने के अतिरिक्त भारत मैं लोगों को अन्य कारणों से भी आसमानता का सामना करना पड़ता है।

  1. जातिगत व्यवस्था (न्यूज़ पेपर में वैवाहिक विज्ञापन)
  2. धर्मों के आधार पर
  3. लिंग व जन्म स्थान के आधार पर

मानवीय गरिमा

जब लोगों के साथ आसमानता का व्यवहार होता है तो उनके सम्मान को ठेस पहुंचती है

भारतीय लोकतंत्र में समानता

सविधान सभी व्यक्तियों को समान मानता है जिसका अर्थ होता है देश के व्यक्ति चाहे वह पुरुष हो या स्त्री किसी भी जाति, धर्म, शिक्षक, और आर्थिक पृष्ठभूमि से संबंध रखते हो वह सब समान माने जाएंगे।

संविधान द्वारा प्रावधान :-

  1. कानून की दृष्टि में हर व्यक्ति समान है।
  2. किसी भी प्रकार से धर्म, जाति, वंश, जन्म स्थान, लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होगा।
  3. सार्वजनिक स्थानों पर जाने का अधिकार
  4. अस्पृश्यता का उन्मूलन

समानता के अधिकार को दो प्रकार से लागू किया गया है।

  • कानून द्वारा
  • सरकार की योजनाओं व कार्यक्रमों द्वारा

[मध्याह्नन भोजन योजना]

मिड डे मील :— सर्वप्रथम तमिलनाडु में लागू 2001 में उच्चतम न्यायालय द्वारा सभी राज्यों में लागू।

नागरिक अधिकार आंदोलन( सिविल राइट्स मूवमेंट)

  • एक आंदोलन जो संयुक्त राज्य अमेरिका में 1950 के दशक के अंत में प्रारंभ हुआ और जिसमें अफ्रीका अमेरिका लोगों ने नस्ल गत भेदभाव को को समाप्त कैसे और समान अधिकारों की मांग की।
  • 1965 के नागरिक अधिकार अधिनियम के नस्ल धर्म और राष्ट्रीय मूल के आधार पर भेदभाव को निषेध कर दिया।

1995 भारत सरकार विकलांगता अधिनियम :—

  • विकलांग व्यक्तियों को समान अधिकार
  • निशुल्क शिक्षा सरकार उन्हें मुख्यधारा से जुड़े,

अन्य देशों में असमानता

भारत अकेला लोकतांत्रिक देश नहीं है जिसमें कई असमानताएं मौजूद हैं। कई अन्य देशों में भी असमानताएं मौजूद हैं। ऐसा ही एक देश है संयुक्त राज्य अमेरिका, जहां अभी भी त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव मौजूद है। कई अफ्रीकी अमेरिकी, जिनके पूर्वजों को गुलाम के रूप में अमेरिका लाया गया था, अभी भी महसूस करते हैं कि उनके साथ भेदभाव किया जाता है।

1940 और 1950 के दशक की शुरुआत में, अफ्रीकी अमेरिकियों के खिलाफ भेदभाव अपने उच्चतम स्तर पर था। अफ्रीकी-अमेरिकी बच्चे उन्हीं स्कूलों में नहीं पढ़ सकते थे जिनमें गोरे अमेरिकियों के बच्चे पढ़ते थे। एफ्रो-अमेरिकियों को बस से यात्रा करते समय या तो बस के पीछे बैठना पड़ता था या जब भी कोई श्वेत व्यक्ति बैठना चाहता था तो उन्हें अपनी सीट खाली करनी पड़ती थी। 1 दिसंबर 1955 को, बस में यात्रा करते समय एक एफ्रो-अमेरिकन महिला रोजा पार्क्स ने एक गोरे व्यक्ति को अपनी सीट देने से इनकार कर दिया। उसके इनकार ने इस दुर्व्यवहार के खिलाफ एक आंदोलन की शुरुआत की, जो एफ्रो-अमेरिकियों से मिला था। इस आंदोलन को नागरिक अधिकार आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा।

A person wearing glasses

Description automatically generated with low confidence

रोजा पार्क्स

नागरिक अधिकार अधिनियम 1961 में पारित किया गया था और इसने जाति, धर्म या राष्ट्रीय मूल के आधार पर भेदभाव को प्रतिबंधित किया था। हालांकि, अफ्रीकी-अमेरिकियों के साथ अभी भी भेदभाव किया जा रहा है। चूंकि अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय का बड़ा हिस्सा गरीब है, वे केवल सरकारी स्कूलों का खर्च उठाने में सक्षम हैं, जिनमें कई सुविधाएं नहीं हैं।

वोट देने का समान अधिकार:

  • भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में, सभी वयस्कों को उनके धर्म, उनकी शिक्षा, जाति, या अमीर या गरीब के बावजूद वोट देने की अनुमति है। इसे यूनिवर्सल एडल्ट फ्रैंचाइज़ी कहा जाता है।
  • सार्वभौम वयस्क मताधिकार का विचार समानता के विचार पर आधारित है।

अन्य प्रकार की समानता:

  • गरीबी भारत में असमानता के मुख्य आधारों में से एक है।
  • गरीबी से एक भाग, भारत में लोग विभिन्न तरीकों से असमानता का अनुभव करते हैं।
  • जाति भारत में असमानता के अधिक सामान्य रूपों में से एक है।
  • दलित (निम्न जाति) अभी भी विभिन्न तरीकों से भेदभाव का सामना करते हैं।

NCERT SOLUTIONS

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 15)

प्रश्न 1 लोकतंत्र में सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार क्यों महत्त्वपूर्ण है ?

उत्तर – सार्वभौमिक व्यस्क मताधिकार का अर्थ है – देश के सभी नागरिकों को एक निश्चित आयु प्राप्त करने के बाद, बिना किसी भेदभाव के मत देने का अधिकार देना।

लोकतंत्र में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार निम्नलिखित कारणों से महत्त्वपूर्ण है:-

  • यह देश के वयस्क नागरिक को अपनी पसंद के उम्मीदवार को मत देने का अधिकार प्रदान करता है।
  • यह संविधान में निहित समानता के सिद्धान्त पर आधारित है।  
  • इससे एक सच्चे व वास्तविक लोकतंत्र की स्थापना होती है ।

प्रश्न 2 बॉक्स में दिए गए संविधान के अनुच्छेद 15 के अंश को पुनः पढ़िए और दो ऐसे तरीके बताइए , जिनमे यह अनुच्छेद असमानता को दूर करता है ?

उत्तर – बॉक्स में दिया गया संविधान का अनुच्छेद 15 निम्नलिखित तरीकों से असमानता को दूर करता है। राज्य, किसी नागरिक के विरुद्ध केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर कोई विभेद नहीं करेगा। कोई नागरिक केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग, जन्म स्थान या इनमें से किसी के आधार पर :-

(क) दुकानों, सार्वजनिक भोजनालयों, होटलों और सार्वजनिक मनोरंजन के स्थानों में प्रवेश

या

(ख) पूर्णतः या अंशतः राज्य – निधि से पोषित या साधारण जनता के प्रयोग के लिए समर्पित कुँओं , तालाबों , स्नान घाटों , सड़कों और सार्वजनिक समागम के उपयोग के संबंध में किसी भी निर्योग्यता , दायित्व या शर्त के अधीन नहीं होगा ।

प्रश्न 3 ओमप्रकाश  वाल्मीकि का अनुभव, अंसारी दंपति के अनुभव से किस प्रकार मिलता था ?

उत्तर – ओम प्रकाश वाल्मीकि और अंसारी दंपति दोनों के साथ ही जाति को लेकर बुरा व्यवहार हुआ था। ओम प्रकाश वाल्मीकि और अंसारी दंपत्ति की गरिमा को ठेस पहुंचाई गई थी। ओम प्रकाश वाल्मीकि को उसकी छोटी जाति के कारण स्कूल में झाडू लगाना पड़ा था, जबकि अंसारी दंपति को उनके धर्म के कारण मकान देने से मना कर दिया था।

प्रश्न 4 “ कानून के सामने सब व्यक्ति बराबर है “ – इस कथन से आप क्या समझते हैं ? आपके विचार से यह लोकतंत्र में महत्त्वपूर्ण क्यों है ?

उत्तर – “ कानून के सामने सब व्यक्ति बराबर हैं “ से अभिप्राय है। क़ानून सबकी सुनेगा, अगर किसी के साथ कुछ बुरा हुआ है तो सामने वाले को सज़ा मिलेगी, चाहे कोई किसी भी जाति का हो। जाति के आधार पर किसी के साथ कोई भेदभाव नहीं होगा। सभी व्यक्तियों को कानून का पालन करना पड़ेगा। कानून लोकतंत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण है क्योंकि बिना कानून कोई भी देश लोकतांत्रित नहीं बन सकता है। उदहारण : कानून नहीं होगा तो कोई भी ट्रैफिक नियम का पालन नहीं करेगा, किसी का भी मन होगा वो शोरूम में जाकर मुफ्त में टीवी लेकर आ जायेगा, लोग बस, ट्रैन और मेट्रो में मुफ्त में सफर करना शुरू कर देंगे। इसलिए किसी भी देश के लिए लोकतंत्र में कानून बहुत ही महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 5 दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम, 2016, के अनुसार उनको समान अधिकार प्राप्त हैं और समाज में उनकी पूरी भागीदारी संभव बनाना सरकार का दायित्व है। सरकार को उन्हें नि :शुल्क शिक्षा देनी है और विकलांग बच्चों का स्कूलों को मुख्यधारा में सम्मिलित करना है। कानून का यह भी कहना है कि सभी सार्वजनिक स्थल, जैसे – भवन, स्कूल आदि में ढलान बनाए जाने चाहिए, जिससे वहाँ विकलांगों के लिए पहुँचना सरल हो। चित्र को देखिए और उस बच्चे के बार में सोचिए, जिसे सीढ़ियों से नीच लाया जा रहा है। क्या आपको लगता है कि इस स्थिति में उपयुक्त कानून लागू किया जा रहा है ? वह भवन में आसानी से – आ – जा सके उसके लिए क्या करना आवश्यक है ? उसे उठाकर सीढियों से उतारा  जाना, उसके सम्मान और उसकी सुरक्षा को कैसे प्रभावित करता है ?

उत्तर – चित्र में दिखाए गए बच्चें को, जिसे सीढ़ियों से नीचे लाया जा रहा है उस पर विकलांगता कानून लागू नहीं किया जा सकता। स्कूल, अस्पताल जैसे सार्वजनिक स्थलों पर ढलानों की व्यवस्था की जानी चाहिए, ताकि विकलांगों के लिए चढ़ना – उतरना आसान हो जाए। जिस प्रकार यह विकलांग बच्चा दूसरे लोगों के द्वारा लाया जा रहा है उससे उसकी गरिमा को चोट पहुँच रही होगी। उसे बुरा लग रहा होगा। उसके मन में अवश्य ही हीन भावना पैदा हो रही होगी। वह यह भी सोच रहा होगा कि वह और बच्चों की तरह चल नहीं सकता, भाग नहीं सकता।