अध्याय-4: पौधों को जानिए

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पौधे

पादप या उद्भिद (plant) जीवजगत का एक बड़ी श्रेणी है जिसके अधिकांश सदस्य प्रकाश संश्लेषण द्वारा शर्कराजातीय खाद्य बनाने में समर्थ होते हैं। ये गमनागम (locomotion) नहीं कर सकते। वृक्ष, फर्न (Fern), मॉस (mosses) आदि पादप हैं।

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अगर हम पने आस पास देखे हमें दो तरह की वस्तुएं दिखाई देती है|सजीव वस्तुएं और निर्जीव वस्तुएं,सजीव वस्तुओ में एक कोशकीय जंतु से लेकर बहुकोशकीय जन्तु तथा पेड़-पौधे पाए जाते है|

पेड़ पोधों का हमारे जीवन में अनमोल योगदान है| जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते है| यह हमारे प्रदूषण को कम करते है और हमारे द्वारा छोड़ी गयी कार्बनडाईऑक्साइड को ग्रहड़ कर हमें प्राण वायु ऑक्सीजन प्रदान करते है तथा इनसे प्राप्त होनेवाली विभिन्न प्रकार की वस्तुए जैसे औषधियाँ,मसाले,सब्जियाँ,खड्यातेल,फल,अनाज से हमारा जीवन का निर्वाह होता है|

पेड़पौधों के भाग

         पेड़-पौधों के प्रकार एवं भाग की विस्तृत जानकारी के लिए इन्हे दो भागो में बाटा गया है जड़ तथा तना |

जड़

पेड़-पोधों का वह भाग जो जमीन केअंदर पाया जाता है उसे जड़ कहते है|जड़ के कार्य – जड़े पेड़-पोधों कोआधार प्रदान करती है|जड़े जमीन से खनिज पदार्थो का अवशोषण कर पेड़-पोधों के विभिन्न भागों तक पहुँचाती है|

जड़े के प्रकार

जड़े दो प्रकार की होती हैं

  1. मूसला जड़े
  2. रेशेदार जड़ें।
जड़ (Root) किसे कहते है, जड़ के प्रकार, विशेषताएँ तथा कार्य (what is root,  its type and function) मूसला जड़ एवं अपस्थानिक जड़ें - The Vigyan
  1. मूसला जड़े

मूसला जड़ (Taproot) कुछ पौधों की एक मुख्य केन्द्रीय जड़ होती है जिसमें से अन्य जड़ें निकलती हैं। प्रायः मूसला जड़ लगभग सीधी और मोटी है जिसकी चौड़ाई नीचे जाते-जाते घटती जाती है। यह अक्सर सीधी नीचे की ओर बढ़ती है।

  1. रेशेदार जड़ें।

रेशेदार जड़ें – कुछ पौधों की कोई मुख्य जड़ नहीं होती। इनमें रेशे जैसी बहुतसी जड़ें होती हैं। इन्हें रेशेदार जड़े कहते हैं। ये जड़ें मिट्टी में चारों ओर फैल जाती हैं और पौधों को मजबूती से पकड़े रखती हैं।

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तना

पेड़-पोधों का वह भाग जो जमीन के ऊपर पाया जाता है उसे तना कहते है|तना के कार्य-इसके प्रमुख कार्य जड़ो के द्वारा अवशोषित जल एवं खनिज पदार्थो को पौधों  के अन्य भाग जैसे -पत्ती,फूल,फल,बीज तक पहुचाना है|

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पौधों के विभिन्न भागों के नाम

पौधों के दो भाग होते है जड़ और तना , तने को पत्ती,फूल,फल,बीज में बांटा गया है|

1.पत्ती – यह पौधे का हरा भाग होता है इसका हरा रंग इसमे पाए जाने वाले कलोरोफिल के कारण होता है|पत्ती के प्रमुख कार्य- पत्ती सूर्य के प्रकाश में जल तथा कार्बनडाइऑक्साइड की सहायता से प्रकाश संश्लेषण क्रिया द्वारा भोजन का निर्माण करना है|

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2 फूल – यह पौधे का रंग बिरंगा तथा सबसे आकर्षक भाग होता है इसके 4 भाग होते है| वाह्यदलपुंज,दलपुंज, पुमंग (पुंकेसर-फूल का नर भाग)जायांग(स्त्रीकेसर-फूल का मादा भाग)|फूल के कार्य फूल के प्रमुख कार्य प्रजनन में सहायता करना है|

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  1. फल-

पेड़-पौधों का यह ऐसा भाग है जिसका निर्माण अण्डाशय से होता है|इसका प्रयोग खाने तथा दवाई से साथ साथ दूसरे कार्यो में भी किया जाता है

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  1.  बीज-

पेड़ पौधों के इस भाग का निर्माण फूलो में पाए जाने वाले बीजाणु से होता है यह एक ऐसा भाग होता है जिसके   अन्दर एक नए पौधे का पूराअस्तित्व छिपा होता है|इसका प्रयोग तेल निकालने तथा खाने में किया जाता है|

पौधों के प्रकार 

अगर पौधों के प्रकार एवं भाग के विषय में बात करे तब पौधों में पायी जाने वाली विभिन्न विशेषताएँ और आकर के आधार पर पौधों को  निम्नलिखित रूप से वर्गीकरण किया गया है। 

शाक:

शाक (Herbs) इस प्रकार के पौधे आकार में बहुत छोटे होते है तथा इनका तना हरे रंग का और अत्यधिक कोमल होता है।  जैसे-मेथी ,पालक ,धनिया आदि | हरे एवं कोमल तने वाले पौधे शाक कहलाते हैं। ये छोटे, कोमल और अकाष्ठीय पौधे होते है। भूमि की सतह के ऊपर इनके कोई स्थायी भाग नहीं पाए जाते। इस श्रेणी के पौधों की अधिकतम ऊँचाई 1 मीटर (3.25 फीट) तक हो सकती है। ऐसे शाकीय पादप एक वर्षीय जैसे सरसों , द्विवर्षीय जैसे चुकंदर अथवा बहुवर्षीय जैसे देवकेल हो सकते है। बहुवर्षीय शाकीय पौधों में प्राय: रूपांतरित तने के रूप में भूमिगत प्रकन्द पाया जाता है, जिसके द्वारा प्रतिवर्ष नयी वायवीय प्ररोह शाखाएँ उत्पन्न होती है। अनेक वनस्पति शास्त्रियों द्वारा केले के पौधों को भी बहुवर्षीय शाक के तौर पर निरुपित किया गया है

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झाड़ी:-

कुछ पौधों में शाखाएँ तने के आधार के समीप से निकलती हैं। तना कठोर होता है परंतु अधिक मोटा नही होता इन्हें झाड़ी कहते हैं।

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झाड़ी (Shrubs) इस प्रकार के पौधों का आकार शाक की तुलना में बड़ा होता है तथा इनका तना मोटा और कढोर होता है।  इस कढोर तने के आधार से कई शाखाएँ निकलती है।  जैसे-गुड़हल, नीबूं, गुलाब |

वृक्ष:-

कुछ पौधे बहुत ऊँचे होते है इनके तने सुदृढ़ एवं गहरे भूरे होते हैं। इनमें शाखाएँ भूमि से अधिक ऊँचाई पर तने के ऊपरी भाग से निकलती हैं इन्हें ही वृक्ष कहते हैं।

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वृक्ष (Tree) बड़े एवं विशाल पौधों को वृक्ष कहा जाता है। वृक्षों का तना कढोर, मोटा एवं भूरे रंग का होता है जिससे कई शाखाएँ निकली होती है।  जैसे- पीपल, नीम , जामुन, आम आदि

लता:-

जो स्वयं उर्ध्वाधर दिशा में खड़ी नहीं रह सकतीं। इनके तने पतले और कमजोर होते हैं और इतने लम्बे होते हैं कि ये स्वयं खड़ी नहीं होती बल्कि किसी अन्य वृक्ष, दीवार, जमीन आदि पर पसरते हुए वृद्धि करतीं हैं। कमजोर तने वाले पौधे सीधे खड़े नही हो सकते और ये भूमि पर फैल जाते हैं इन्हें ही लता कहते हैं।

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लताएँ (Creepers) इस प्रकार के पौधे अत्यन कमजोर होते है अर्थात स्वम सीधे खड़े नहीं हो सकते है, इनको स्थिर रखने के लिये सहायता की आवश्यकता पड़ती है। इन लताओं को दो भागों में बाँटा गया है। 

विसर्जी लता- वह लताएँ जो जमीन के बहुत बड़े भूभाग पर फैली होती है उन्हें विसर्जी लताएँ कहा जाता है। जैसे-तरबूज, खीरा, खरबूजा ,पुदीना आदि

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आरोही लता- वह लताएँ जिनको सीधा खड़े होने के लिए किसी दूसरे पौधे अथवा ढाँचे का सहारा लेना पड़ता है उन्हें आरोही लताएँ कहा जाता है। जैसे-अमरबेल, मटर, मनीप्लांट आदि

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फलक:-

पत्ती के चपटे हरे भाग को फलक कहते हैं।

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शिरा:-

जब एक पत्ती को कागज पर रखकर छापा जाता है तो इन रेखित संरचनाओं में शिराओं का छाप उभरकर आता है। अगर इन पत्तियों का छाप जालिका रूपी शिरा-विन्यास की तरह उभरा हो तो उसकी जड़ें मूसला जड़ होंगी। अगर इन पत्तियों की शिराओं का छाप एक दूसरे के समांतर हो तो उसकी जड़ें झकड़ा जड़ होंगी पत्ती की इन रेखित संरचनाओं को शिरा कहते हैं।

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शिरा-विन्यास :-

घास की पत्तियों में यह शिराएँ एक दूसरे के समांतर हैं। ऐसे शिरा-विन्यास को समांतर शिरा-विन्यास कहते है।

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रन्ध्र :-

पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे छिद्र पाए जिन्हें रन्ध्र कहते है। रन्ध्र से गैसों का और वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी होती हैं।

पर्णवृन्त :-

पर्ण का वह भाग जो पर्ण फलक और पर्णाधार को जोड़ने का कार्य करता है उसे पर्णवृंत कहते है। विभिन्न पौधों में पर्णवृन्त की उपस्थिति और इसकी आकृति और संरचना के आधार पर पत्तियों में पर्याप्त विविधता दृष्टिगोचर होती है। जिन पौधों की पत्तियों में पर्णवृन्त उपस्थित होते है , ऐसी पत्तियों को सवृन्त कहते है। जैसे पीपल।

इसके विपरीत कुछ अन्य पौधों जैसे आक की पत्तियों में पर्णवृन्त अनुपस्थित होते है और इस प्रकार की पत्तियों को अवृन्त कहते है।

Petiole (botany) - Wikipedia

पत्ती का वह भाग जिसके द्वारा वह तने से जुड़ीं होती है , पर्णवृन्त कहते है।

क्षेत्र के आधार पर पौधों का वर्गीकरण 

क्षेत्र के आधार पर पौधों का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया गया है

  • जलोढ़भिद(Hydrophyte)- इस प्रकार के पौधे पानी में पाये जाते है तथा इनकी जड़ो का विकास कम होता है और इनकी पत्तियां संकरी तथा पतली होती है , इन पत्तियों के ऊपर मोम की पतली परत चढ़ी होती है जिससे वाष्पोत्सर्जन की क्रिया के द्वारा जल की हानि कम होती है।  जैसे- हाइड्रिला, जललिली, कमल आदि
Category:Aquatic plants - Wikimedia Commons
  • लवणोद भिद (Halophyte) -इस प्रकार के पौधे दलदलीय क्षेत्रों में पाये जाते है तथा पोधो की जड़े जमीन के ऊपर निकली हुयी होती है। जैसे-साल्ट मार्स (Salt Marsh)
What is Salt Marsh? • Earth.com
  • समोद भिद (Mesophyte)- खेती योग्य जमीन पर पाये जाने वाले पौधे समोद भिद कहलाते है। पौधों का तना ढोस तथा शाखा युक्त होता है। जैसे-गेंहूँ, धान, टमाटर, मक्का, गन्ना आदि |
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  • मरुद भिद  (Xerophyte)- इस प्रकार के पौधे मरुस्थल क्षेत्रों में पाये जाते है।  मरुस्थल क्षेत्रों में पानी की कमी होने से वाष्पोत्सर्जन की क्रिया अधिक न हो के कारण इनकी पत्तियाँ काँटों के रूप में परिवर्तित हो जाती है। पोधो की पत्तियां छोटी तथा जेड गहरी होती है। जैसे-एकसिया, नागफनी, यूफ़ोबिया आदि
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Euphorbia eritrea in vaso | Lezio.it

पौधों का महत्व 

मानव जीवन में पौधों का विशेष महत्व होता है –

पौधे हमारे चरों और पाई जाने वाली हवा को शुद्ध करते है।  विभिन्न माध्यमों से उत्सर्जित होने वाली कार्बनडाईऑक्साइड को ग्रहण करके वातावरण में ऑक्सीजन की मात्रा को बढ़ाते है। इस तरह कहा  है की पेड़ पौधे प्रकृति में संतुलन बनाये रखने में सहायक है। 

वातावरण में गैसों का सन्तुलन बनाये रखने  यह मृदा क्षरण को रोकना तथा उसकी उर्बरकाता शक्ति को बढ़ाने में सहायक होते है साथ ही साथ इनसे जीवन निर्वाह के लिए  अनाज, शब्जियाँ, खाद्य तेल, फल, मसाले,पेय पदार्थ तथा विभिन्न प्रकार की ओषधियाँ मिलती है जो निम्न प्रकार है –

कुछ विशेष प्रकार के पौधें

क्रोटन-

इस पौधे की बुआई फसलों के साथ की जाती है क्योंकि क्रोटन पौधा यह बताने में सक्षम होता है की फसल में पानी की आवश्यकता है या नहीं।इस पौधे की जड़े जमीन में अधिक गराई तक नहीं  पहुँचती है।  खेत में पानी की मात्रा की कमी होने पर यह मुरझाने लगता है इससे यह पता चलजाता है कि फसल को सिंचाई की आवश्यकता है।

बरगद-

बरगद एक विशालकाय वृक्ष होता है। इसकी शाखाओं से जड़े निकलती है यह जड़े स्तम्भ का कार्य करती है। इन जड़ों को स्तम्भ जड़े भी कहा जाता है।

खेजड़ी-

खेजड़ी एक ऐसा वृक्ष है जिसको अधिक पानी की आवश्यकता नहीं होती है। खेजड़ी की खेती मुख्यतः भारत के रेगिस्तान क्षेत्रों में की जाती है । यह एक छायादार वृक्ष होता है , खेजड़ी के उपयोग इनमे आने वाली फलियों का प्रयोग शब्जी के रूप  तथा (खेजड़ी की छाल किस काम आती है) छाल को दवाओं के रूप प्रयोग किया जाता है।

रेगिस्तानी ओक-

यह वृक्ष मुख्यतः ऑस्ट्रेलिया के रेगिस्तान क्षेत्रों में पाया जाता है। इसकी जड़े गहरी होने से यह पानी में स्थित रहता है। इस क्षेत्र में रहने वाले लोग पाइप  की  सहायता से पानी को रेगिस्तानी ओक  वृक्ष से बाहर निकलते है।

A tree in a field

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केला-

केला का पौधा आकार  छोटा तथा हरे रंग के तने का होता है। जो अत्यधिक कोमल होता है। इसके फूल और फल दोनों खाये जाते है।

घटपर्णी-

अगर बात करे कि कीटभक्षी पौधे क्या है तो घटपर्णी  कीड़ो, मकोड़ो, चूहों, मेढकों तथा अन्य छोटे जीवों को खाने वाला एक कीट भक्षी पौधा होता है।  इसका आकर अथवा बनावट घड़े के समान होती है। इसके द्वारा निकाली गयी खुसबू से कीड़े मकौड़े आकर्षित होकर इसके अन्दर चले जाते है , जिनको पचा कर यह भूमि में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करता है। 

घटपर्णी पौधा कहां पाया जाता है यह पौधा भारत के मेघालय तथा इण्डोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया में भी पाया जाता है।

कीटभक्षी पौधे क्या है- कीड़ो आदि का भक्षण करने वाले पौधों को कीटभक्षी पौधे कहते है। 

कीटभक्षी पादप के उदाहरण लिखिए- कीटभक्षी पादप के उदाहरण ड्रोसेरा, नेपंथीज, यूट्रीकुलेरिया , पिचर प्लांट

कीटभक्षी पौधों के उदाहरण- पिचर प्लांट , ड्रोसेरा, डायोनिमा , सेरोसेनिया , यूट्रीकुलेरिया 

कीटभक्षी पौधे कीटों का भक्षण क्यों करते हैं- कीटभक्षी पौधे कीटो का भक्षण भूमि में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने के लिये करते है।

NCERT SOLUTIONS

प्रश्न (पृष्ठ संख्या 64-65)

प्रश्न 1 निम्न कथनों को ठीक करके लिखिए:

  1. तना मिटटी से जल एवं खनिज अवशोषित करता है।
  2. पत्तियाँ पौधे को सीधा खड़ा रखती हैं।
  3. जड़ें जल को पत्तियों तक पहुँचाती हैं।
  4. पुष्प में बाह्यदल एवं पंखुडि़यों की संख्या सदा समान होती है।
  5. यदि किसी पुष्प  के बाह्यदल परस्पर जुड़े हों तो उसकी पंखुडि़याँ भी आपस में जुड़ी होंगी।
  6. यदि किसी पुष्प की पंखुडि़याँ परस्पर जुड़ी हों तो स्त्राीकेसर पंखुडि़यों से जुड़ा होगा।

उत्तर-

  1. जड़ मिटटी से जल एवं खनिज अवशोषित करता है।
  2. तना पौधे को सीधा खड़ा रखती हैं।
  3. तनें जल को पत्तियों तक पहुँचाती हैं।
  4. पुष्प में बाह्यदल एवं पंखुडि़यों की संख्या सदा असमान होती है।
  5. यदि किसी पुष्प  के बाह्यदल परस्पर जुड़े हों तो उसकी पंखुडि़याँ भी आपस में पृथक होंगी।
  6. यदि किसी पुष्प की पंखुडि़याँ परस्पर जुड़ी हों तो स्त्राीकेसर पंखुडि़यों से स्वतंत्र होगा।

प्रश्न 2 निम्न के चित्र बनाइएः

  1. पत्ती

उत्तर- पत्ती का नामांकित चित्र:

  1. मूसला जड़

उत्तर- मुसला जड़

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  1. एक पुष्प जिसका आपने सारणी 7.3 में अध्ययन किया हो।

उत्तर सारणी 7.3 में हमने गुलाब के पुष्प का अध्ययन किया था

गुलाब का पुष्प

A close-up of some flowers

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प्रश्न 3 क्या आप अपने घर के आस-पास ऐसे पौधे को जानते हैं जिसका तना लंबा परंतु दुर्बल हो? इसका नाम लिखिए। आप इसे किस वर्ग में रखेंगें?

उत्तर- पौधे जिसके तने लंबे परन्तु दुर्बल होते है वे शाक कहलाते  है |

जैसे – टमाटर, तोरी, सरसों आदि | 

प्रश्न 4 पौधे में तने का क्या कार्य है?

उत्तर-

(i) तना पौधे को सहारा देता है।  

(ii) तना जल तथा खनिज लवणों का संवहन करता हैं ।

(iii) यह पौधे के लिए भोजन संचय करता है। 

प्रश्न 5 निम्न में से किन पत्तियों में जालिका रूपी शिरा-विन्यास पाया जाता है?

गेहूँ, तुलसी, मक्का, घास, धनिया, गुड़हल

उत्तर- तुलसी और गुडहल 

प्रश्न 6 यदि किसी पौधे की जड़ रेशेदार हो तो उसकी पत्ती का शिरा-विन्यास किस प्रकार का होगा?

उत्तर- समांतर शिरा-विन्यास 

प्रश्न 7 यदि किसी पौधे की पत्ती में जालिका रूपी शिरा-विन्यास हो तो उसकी जड़ें किस प्रकार की होंगी?

उत्तर- मुसला जड़ 

प्रश्न 8. क्या आप पत्तियों को देखे बिना उनकी पहचान कर सकते हैं? कैसे ?

उत्तर- हाँ, हम पत्तियों के देखे बिना उसकी पहचान हम

उसके जड़ के आधार पर कर सकते है | यदि जड़ मुसला जड़ हो तो उसकी पत्ती जालिका रूपी शिरा-विन्यास की होगी जबकि रेशेदार जड़ों वाले पौधे की पत्तियाँ समांतर शिरा-विन्यास की होती है |  

प्रश्न 9 किसी पुष्प के विभिन्न भागों के नाम लिखिए।

उत्तर-

(i) बह्यदल 

(ii) पंखुड़ी 

(iii) स्त्रीकेसर (पुष्प का मादा भाग)

     (a) वर्तिकग्र

     (b) वर्तिका 

     (c) अंडाशय 

(iv) पुंकेसर (पुष्प का नर भाग) 

     (a) परागकोष 

     (b) तंतु

प्रश्न 10 निम्न में से किन पौधें के फुल आपने देखे हैं?

उत्तर- घास, मक्का, गेहूँ, मिर्च, टमाटर, तुलसी, पीपल, शीशम, बरगद, आम, जामुन, अमरूद, अनार, पपीता, केला, निम्बू, गन्ना, आलू, मूँगफली।

प्रश्न 11 पौधें के उस भाग का नाम लिखिए जो अपना भोजन बनाता है। इस प्रक्रम को क्या कहते हैं?

उत्तर- पौधे पत्ती से अपना भोजन बनाते हैं और इस प्रक्रम को प्रकाश संश्लेषण कहते है | 

प्रश्न 12 पुष्प के किस भाग में अंडाशय मिलता है?

उत्तर- स्त्रीकेसर भाग में अंडाशय होता है | 

प्रश्न 13 ऐसे दो पुष्पों के नाम लिखिए जिनमें से प्रत्येक में संयुक्त और अलग-अलग पंखुडि़याँ हों।

उत्तर- पुष्प जिनमें संयुक्त बह्यदल और पंखुडियां होती हैं – धतुरा

पुष्प जिनमें पृथक बह्यदल और पंखुडियां होती है – गुलाब