अध्याय-8: पादप में जनन

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पादप प्रजनन (plant reproduction) का मतलब पौधों द्वारा नई संतान उत्पन्न करना होता है। पादप जनन, लैंगिक जनन द्वारा या अलैंगिक प्रजनन द्वारा संपन्न किया जा सकता है। लैंगिक जनन वह है जिसमें युग्मकों के संलयन (fusion) से संतान पैदा होते हैं और जिससे संतान आनुवंशिक रूप से माता-पिता के समान या माता-पिता से अलग होती है। अलैंगिक प्रजनन युग्मकों के संलयन के बिना नए पादपों का निर्माण करता है। इसके द्वारा बनी नयी सन्तान आनुवंशिक रूप से मूल पौधों के समान होती है, और मूल पौधे से केवल तब अलग होती जब उत्परिवर्तन होते हैं।

जनन की विधियाँ :- अधिकांश पादपों में मूल, तना, और पत्तियां होती हैं। जनन दो प्रकार से होता है।

अलैंगिक जनन

पादप बिना बीजों के ही नए पादप को उत्पन्न कर सकते हैं। अलैंगिक जनन है, जिसमें पादप के मूल, तने, पत्ती कली के कायिक अंग द्वारा नया पादप प्राप्त किया है। प्रत्येक जीव के जीवन का प्रारंभ एक कोशिका से होता है यदि यह एक कोशिका एक ही जनक द्वारा प्रदान की गई तो इसे अलैगिक जनन कहते है। अलैगिक जनन में बनी संतति आपस मेंतथा जनको से समान रखती है। अलैगिक जनन में बनी संतति आपस में आकारिकी एवं आनुवाँशिक रूप से आपस में तथा जनकों के समरूप होती है अतः इन्हें क्लोन कहते है।

लैंगिक जनन

नए पादप बीजों से प्राप्त होते हैं। जनन की वह विधि जिसमें लैंगिक जनन अंग भाग लेते हैं। अथवा जनन की वह विधी जिसमें अर्धसूत्री विभाजन युग्मक निर्माण तथा युग्मक संलयन अथवा निषेचन की प्रक्रिया पाई जाती है। लैंगिक जनन कहलाता है।

सीधे शब्दों मे समझे तो प्रजनन की क्रिया में दो युगमक के मिलने से एक नए जी की उत्पत्ति होती हैं और उस पुरी किया को ही लैंगिक जनन कहा जाता है। लैंगिक जनन किसे भी जीवित प्राणी या पेड़ पौधों के लिए आवश्यक हैं, क्योंकि जनन क्रिया के द्वारा ही हम अपने आने वाली पीढ़ी को बना सकते हैं अतः हमारे भविष्य के लिए जनन अति आवश्यक है।

गुलाब – तने की कलम से जनन

आलू – आँख से अंकुरित होता पादप

ब्रायोफिलम :- पत्ति जिसके किनारे पर कलिकाएँ होती है।

ैक्टस

मुख्य पादप से अलग हो जाते हैं, नए पादप को जन्म देते हैं। जो अपने मोटे, फूले हुए तनों में पानी बटोरकर शुष्क व रेगिस्तानी परिस्थितियों में जीवित रहने और अपने कांटों से भरे हुए रूप के लिए जाना जाता है। इसकी लगभग 127 वंशों में संगठित 1750 जातियाँ ज्ञात हैं और वह सभी-की-सभी नवजगत (उत्तर व दक्षिण अमेरिका) की मूल निवासी हैंइनमें से केवल एक जाति ही पूर्वजगत में अफ़्रीका और श्रीलंका में बिना मानवीय हस्तक्षेप के पहुँची थी और माना जाता है इसे पक्षियों द्वारा फैलाया गया था। कैक्टस लगभग सभी गूदेदार पौधे होते हैं जिनके तनों-टहनियों में विशेषीकरण से पानी बचाया जाता है। इनके पत्तों ने भी विशेषीकरण से कांटो का रूप धारण करा होता है ।

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मुकुलन

यीस्ट कोशिका से बाहर निकलने वाला छोटे बल्ब मुकुल या कली कहलाता है। यीस्ट एक कोशिका जीव है। जनन कोशिका से विलग होकर नई यीस्ट कोशिका बनाता है।

यदि पर्याप्त पोषण उपलब्ध हो, तो यीस्ट कुछ ही घण्टों में वृद्धि करके जनन करने लगते है। मुकुलन नए जीवों के निर्माण का एक अलैंगिक तरीका है। इस प्रक्रिया में माता-पिता के शरीर के एक छोटे से हिस्से से एक नए जीव का विकास होता है। एक कली जो बनती है, एक नए जीव के रूप में विकसित होने के लिए अलग हो जाती है। उदाहरण के लिए- हाइड्रा और यीस्ट दोनों ही मुकुलन की प्रक्रिया से प्रजनन करते हैं।

एकलिंगी पुष्प

नर अथवा मादा जनन अंग होते हैं। ऐसे फूल जिनमें पुंकेसर तथा स्त्रीकेसर में से केवल एक भाग ही होता है, उन्हें एकलिंगी फूल कहते हैं; जैसे ककड़ी, घीया, पपीता तथा कद्दू के फूल।

द्विलिंगी पुष्प :- नर और मादा जनन अंग दोनों ही होते हैं। -ऐसे फूल जिनमें पुंकेसर तथा स्त्रीकेसर दोनों होते हैं, उन्हें द्विलिंगी फूल कहते हैं, जैसे टमाटर, बैंगन, गुलाब, सरसों आदि के फूल।

शैवाल

जल और पोषक तत्व उपलब्ध होते हैं , तो शैवाल वृद्धि करते हैं और तेजी से खंडन द्वारा गुणन करते हैं। शैवाल दो या अधिक खंडों में विखंडित हो जाते हैं। ये खंड अथवा टुकड़े नए जीवों में वृद्धि कर जाते हैं। शैवाल प्रकाश संश्लेषक यूकेरियोटिक जीवों के एक बड़े और विविध समूह के लिए एक अनौपचारिक शब्द है। यह एक पॉलीफाइलेटिक समूह है, जिसमें कई अलग-अलग समूहों से प्रजातियां शामिल हैं। शामिल जीवों में एककोशिकीय माइक्रोएल्गे जैसे क्लोरेला और डायटम से लेकर बहुकोशिकीय रूप जैसे विशालकाय केल्प, एक बड़ा भूरा शैवाल होता है जो लंबाई में 50 मीटर तक बढ़ सकता है। अधिकांश जलीय और स्वपोषी होते हैं और उनमें रंध्र, जाइलम और फ्लोएम जैसे कई विशिष्ट कोशिका और ऊतक प्रकार होते हैं, जो भूमि के पौधों में पाए जाते हैं। सबसे बड़े और सबसे जटिल समुद्री शैवाल को समुद्री शैवाल कहा जाता है, जबकि सबसे जटिल मीठे पानी के रूप में ट्रॉफी, हरी शैवाल का एक प्रभाग है जिसमें शामिल हैं, उदाहरण के लिए, स्पिरोग्रा और पत्थर के पात्र।

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शैवाल के लक्षण:-

  • शैवालों में लैगिक जनन के बाद भ्रूण का निर्माण नहीं होता है।
  • इनमें क्लोरोफिल पाया जाता है।
  • अधिकांश शैवाल जलीय होते हैं।
  • कुछ शैवाल परजीवी होते हैं, जैसे सीफेल्यूरोस जो मग्नोलियां की पत्रियों में लाल किटू रोग उत्पन्न करता है।

बीजाणु :- वायु में उपस्थित बीजाणुओं से कवक उग जाते हैं। बीजाणु अलैंगिक जनन ही करते हैं।

लैंगिक जनन :- नए पादप बीजों से प्राप्त होते है।

पुंकेसर – नर जनन अंग है।

स्त्रीकेसर – मादा जनन अंग है।

एकलिंगी पुष्प :- नर अथवा मादा जनन अंग होते हैं।

द्विलिंगी पुष्प :- नर और मादा जनन अंग दोनों ही होते हैं।

परागण

परागकणों का परागकोश से पुष्प के वर्तिकाग्र पर स्थानांतरण परागण कहलाता है। जब परपरागण एक ही प्रजाति के दो सदस्यों के पुष्पों के मध्य होता है तो इस क्रिया को परनिषेचन अथवा जीनोगेमी कहते है। लेकिन दो अलग अलग प्रजातियों के मध्य परागण होने पर इसे संकरता कहते है। बीजधारी पौधों में परपरागण क्रिया के द्वारा पुनर्योजन और विभिन्नताएं जैसी महत्वपूर्ण परिघटनाएं संभव हो पाती है। हालांकि एकलिंगी पुष्पों में तो केवल परपरागण की प्रक्रिया ही पायी जाती है लेकिन अधिकांश उभयलिंगी पुष्पों में भी परपरागण के द्वारा ही परागकणों का स्थानान्तरण वर्तिकाग्र पर होता हुआ देखा गया है।

निषेचन (Fertilization)

परागकण वर्तिकाग्र पर अंकुरित होते हैं और पतली पराग नली वर्तिका के माध्यम से बढ़ती है और भ्रूण थैली में प्रवेश करती है, जहां नर और मादा युग्मकों का संलयन होता है जिसे निषेचन कहा जाता है।

परागण का तरीका (Mod of Pollination)

(1) स्व-परागण – परागकोष से उसी फूल के वर्तिकाग्र तक परागकण का स्थानांतरण “स्व-परागण” कहलाता है।

  • स्वयुग्मन में एक ही पुष्प के पराग कण उसी पुष्प की वर्तिका को परागित करते है
  • विषमयुग्मन स्व-परागण का दूसरा रूप होता है जब एक ही पौधे के दो फूलों के बीच परागण होता है,

(2) पर-परागण – एक पौधे के परागकणों का दूसरे पौधे के फूल पर स्थानांतरण पर-परागण कहलाता है। परिणामी निषेचन को पर-निषेचन या अलोगैमी के रूप में जाना जाता है। जैसे, कैस्टर, नाइजर, आदि।

  • फसलों ने अपने विकास के क्रम में या तो स्वयं या पर परागण सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न तंत्र विकसित किए हैं।

स्व-परागण प्रोत्साहित करने वाली युक्तियाँ (Mechanisms to encourage self-pollination):

a) उभयलिंगी (Bisexual): नर और मादा प्रजनन अंग एक ही फूल में मौजूद होती हैं। जैसे, हिबिस्कस, आदि।

b) सम काल परिपक्वता (Homogamy): यहाँ उभयलिंगी पुष्प का परागकोश तथा वर्तिकाग्र एक ही समय पर परिपक्व होते हैं। हरी मटर, आदि।

c) क्लिस्टोगैमी (Cleistogamy): फूल बिल्कुल नहीं खुलते हैं या फिर परागण होने के पश्चात खुलते है उभयलिंगी फूल स्वपरागण सुनिश्चित करते हैं जैसे लेट्यूस, बीन्स आदि।

d) फूल संरचना: भिंडी में युवा स्त्रीकेसर एक स्टेमिनल नली के मध्य से बढ़ता है, जिससे पराग संबंधित वर्तिकाग्र पर गिर जाते है जिससे स्व -परागण ही होता है।

पर-परागण प्रोत्साहित करने वाली युक्तियाँ

a) अपूर्ण फूल: फूल एकलिंगी होते हैं अर्थात पुंकेसर और स्त्रीकेसर अलग-अलग फूलों पर स्थित होते हैं।

  • मोनोएसियस पौधे: जैसे जैक, नारियल।
  • डाओएसियस पौधे: जैसे, पपीता, शतावरी, खजूर, आदि।

b) भिन्न काल परिपक्वता (Dichogamy): उभयलिंगी फूलों में पुंकेसर और स्त्रीकेसर की असमान परिपक्वता (उभयलिंगी फूलों का परागकोश औरवर्तिकाग्र अलग-अलग समय पर परिपक्व होते हैं)। वे दो प्रकार के होते हैं:

  • प्रोटोगिनी (Protogyny): वर्तिकाग्र पुंकेसर के लिए पहले ग्रहणशील हो जाता है। उदा. बाजरा।
  • प्रोटैंड्री (Protandry): परागकोश को तोड़कर उसी फूल के वर्तिकाग्र के ग्रहणशील होने से पहले परागकणों को छोड़ देते हैं। जैसे, गाजर, गेंदा।

c) हर्कोगैमी (Herkogamy): एक फूल के नर और मादा अंगों के बीच यांत्रिक अवरोध की उपस्थिति। जैसे, क्रेप्स।

d) नर बंध्यता (Male Sterility): कार्यात्मक परागकणों की अनुपस्थिति के कारण बीज नहीं बनते हैं। या नर बंध्यता एक ऐसी स्थिति है जिसमें पराग अनुपस्थित और गैर-कार्यात्मक होता है। नर बंध्यता (i) आनुवंशिक कारकों (जैसे टमाटर, जौ, बैंगन और चावल) (ii) साइटोप्लाज्मिक कारक (जैसे, प्याज) और (iii) परस्पर क्रिया (जैसे मिर्च, आदि) द्वारा निर्धारित किया जाता है।

e) स्वअनिषेच्यता (Self Incompatibility): नर और मादा युग्मक प्रजननक्षम होते हैं, लेकिन कुछ विरोधी कारकों के कारण स्वयं परागण से बीज पैदा नहीं होते हैं, लेकिन पर-परागण होने पर बीज सेट कर सकते हैं। जैसे, तंबाकू, आम, टमाटर, सरसों, मूली, गोभी, आदि।

पराग का स्थानांतरण

कीट परागण (Entemophily): – गृह मक्खी, मधु मक्खी, ततैया आदि के द्वारा पराग कणों को एक पुष्प से दूसरे पुष्प तक पहुंचाया जाता है इनके द्वारा आम, सेब, आलूबुखारा, फूलगोभी आदि में परागण की प्रक्रिया संपन कराई जाती है तो इन्हे कीट परागण विधि भी कहा जा सकता है।

पक्षी परागण (Ornithophily): – पक्षी, तोते भी परागकणों को स्थानांतरित करने का कार्य करते हैं और इसके द्वारा बेगोनिया, प्रवाल वृक्षों आदि में परागण किया जाता है। इन्हें परागण की ऑर्निथोफिली विधि कहा जाता है।

जानवर परागण (Zoophily): – कुछ फूल बंदर, हाथी, गिलहरी जैसे स्तनधारियों द्वारा परागित होते हैं, इसे जन्तु परागण विधि कहा जाता है।

चमगादड़ परागण (Chiropterophily): – जब परागण चमगादड़ो के द्वारा सम्पन्न करवाया जाता है तो इसे चमगादड़ परागण विधि कहा जाता है जैसे Anthocephaleus cadamba, Kigellia pinnata।

हवा परागण (Anemophily):- अधिकतर फल वृक्ष खँजूर, नारियल, पपीता, अनार आदि में परागण हवा के द्वारा होता है।

जल परागण (Hydrophily):- कमल और कुछ जलीय पौधों में परागण जल द्वारा होता है।

परपरागण के लिए अनुकूलन

हालाँकि अधिकांश पुष्पीय पौधों में द्विलिंगी पुष्प पाए जाते है लेकिन फिर भी प्रकृति में सामान्यतया पर परागण की प्रक्रिया स्वपरागण की तुलना में अधिक होती है। सामान्यतया परपरागण को प्रोत्साहित करने के लिए पौधों में निम्नलिखित आवश्यक विशिष्टताएँ पायी जाती है।

स्व बन्ध्यता (self sterility)

कुछ पौधों के पुष्पों में स्वयं के द्वारा विकसित परागकण, परागण क्रिया संचालित नहीं करते। अत: इनमें परागण की सफलता को सुनिश्चित करने के लिए दुसरे पुष्पों के परागकणों का वर्तिकाग्र पर पहुँचना आवश्यक होता है। इस विशेषता को पुष्प की स्वबंध्यता कहा जाता है। उदाहरण – राखीबेल, अंगूर और सेब आदि।

यदि ऐसे पुष्पों के वर्तिकाग्र पर उसी पुष्प के परागकण गिर जाते है तो भी इनसे निषेचन नहीं होता। यहाँ तक कि कभी कभी तो इन परागकणों का वर्तिकाग्र पर पहुंचना अत्यधिक हानिकारक सिद्ध होता है जैसे कुछ पुष्पों के लिए परागकण यदि उसी पुष्प की वर्तिकाग्र पर गिर जाए तो ऐसी अवस्था में जायांग की मृत्यु हो जाती है।

कलिंगता (unisexuality of flowers):

बहुत से पौधों में एकलिंगी पुष्प पाए जाते है अर्थात इनमे या तो नर जनन संरचना पुमंग अथवा केवल जायांग ही पायी जाती है। वैसे एक पौधे पर दोनों प्रकार के अर्थात नर और मादा पुष्प दोनों ही मौजूद हो सकते है। इस प्रकार के पौधों को उभयलिंगाश्रयी कहा जाता है जैसे मक्का , अरण्ड , लौकी आदि। दूसरी स्थिति में नर और मादा पुष्प भिन्न भिन्न पौधों पर उत्पन्न होते है जैसे पपीता , शहतूत आदि। इस प्रकार के पौधों को एकलिंगाश्रयी कहा जाता है। अत: पौधों में एकलिंगी पुष्पों का पाया जाना निश्चित ही परपरागण की आवश्यकता को सुनिश्चित करता है।

भिन्नकाल पक्वता (dichogamy)

वैसे तो अधिकांश पौधों में उभयलिंगी पुष्प पाए जाते है , अत: इस अवस्था में स्वपरागण ही इन पौधों में होना चाहिए लेकिन अधिकांश उदाहरणों में ऐसा संभव नहीं हो पाता क्योंकि इन उभयलिंगी पुष्पों में पुमंग और जायांग के परिपक्व होने का समय भिन्न भिन्न होता है। कुछ उदाहरणों जैसे गुडहल , कपास , भिण्डी आदि में पुंकेसर, अंडाशय से पहले ही परिपक्व हो जाते है। इस अवस्था को पुंपूर्वता कहते है। इसके विपरीत कुछ पौधों जैसे बैंगन और मक्का में जायांग , पुंकेसरों से पहले परिपक्व हो जाते है। इस अवस्था को स्त्रीपूर्वता कहते है।

इस प्रकार पुमंग और जायांग दोनों जनन संरचनाओं के परिपक्व होने का समय भिन्न भिन्न होने से परपरागण की अनिवार्यता सुनिश्चित हो जाती है।

बंधन युति (herkogamy)

इस शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के एक शब्द हरकोस से हुई है जिसका हिंदी समानार्थी शब्द है बाधा अथवा अड़चन। सामान्यत: उभयलिंगी पुष्पों में नर और मादा जनन संरचनाओं के मध्य कुछ ऐसी रुकावट अथवा बाधा आ जाती है, जिसकी वजह से एक पुष्प के परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र तक पहुँचने में असफल रहते है।

इस तथ्य का सर्वोत्तम उदाहरण आक अथवा मदार है। इसके परागकण, एक थैली जैसी संरचना परागपिंड में पाए जाते है। पुष्प की संरचना कुछ इस प्रकार की होती है , कि परागकण इन थैलीनुमा पोलीनिया से अपने आप नहीं निकल पाते है अत: ऐसी अवस्था में परपरागण आवश्यक हो जाता है। ट्रोपिओलम नामक पौधे के पुष्प में पुंकेसर पुष्प से बाहर की तरफ निकले रहते है अत: परिपक्व होने पर इनके परागकण बाहर की तरफ झड़ जाते है। एक अन्य पौधे , पेंजी के उभयलिंगी पुष्प में जायांग की वर्तिकाग्र एक छोटे परदे के द्वारा ढकी रहती है। इस पौधे में कीट परागण पाया जाता है। परागण क्रिया संपन्न हो जाने के बाद जब कीट वर्तिकाग्र से बाहर निकल आता है तो इसका पर्दा अथवा पट अपने आप ही बंद हो जाता है तथा इस प्रकार यहाँ स्वपरागण संभव नहीं हो पाता। एक अन्य उदाहरण , क्लोरोडेन्ड्रम में भी पुंकेसर और अंडप का विन्यास कुछ इस प्रकार का होता है कि इसमें स्वपरागण संभव नहीं है।

विषम वर्तिकात्व (heterostyly)

अनेक पौधों में एक ही पौधे पर वर्तिकाओं की लम्बाई में भिन्नता पायी जाती है। ऐसी अवस्था में पुंकेसरों की लम्बाई भी भिन्न भिन्न हो सकती है। कुछ पुष्पों में यदि वर्तिका लम्बी होती है तो पुंकेसरों के तन्तु छोटे छोटे है। जबकि कुछ अन्य पुष्पों में यदि पुंकेसर लम्बे होते है तो वर्तिका छोटी पायी जाती है। ऐसे पुष्प द्विरूपी कहलाते है जैसे प्रिमरोज। इसी प्रकार खट्टीबूटी में भी वर्तिकाओं की लम्बाई अलग अलग देखने को मिलती है इसकी कुछ प्रजातियों में तो त्रिरूपी पुष्प पाए जाते है।

युग्मनज :- नर तथा मादा युग्मकों (संयोग) द्वारा बनी कोशिका युग्मनज कहलाती है।

निषेचन :– नर तथा मादा युग्मकों के युग्मन का प्रक्रम निषेचन कहलाता है।

फल और बीज का विकास :- निषेचन के पश्चात अंडाशय, फल से विकसित हो जाता है। बीजांड से बीज विकसित होते हैं। जब अण्डाशय से फल विकसित होता है तो इसे सत्यफल कहते है, उदाहरण – आम, मटर आदि।

जब फल फल का विकास अंडाशय के अलावा पुष्प के अन्य भाग से होता है तो इसे असत्यफल कहते है। उदाहरण – सेब (जो पुष्पासन से विकसित होता है)

कुछ पादपो में अंडाशय बिना निषेचन के ही सीधे फल में विकसित हो जाता है तो ऐसे फल को अनिषेक फल कहते है। उदाहरण – इसमें बीज अनुपस्थित होता है।

अंडाशय की भित्ति से फल भित्ति बनती है, फल भित्ति तिन प्रकार की होती है–

बाह्य फल भित्ति : यह पतला या मोटा चर्मिल छिलका बनाती है।

मध्य फल भित्ति : भोजन संचय के कारण यह रसदार व गुद्देदार हो जाती है।

उदाहरण – आम, खजूर आदि।

कुछ पादपों जैसे नारियल में मध्यफल भित्ति रेशेदार होती है।

अन्तः फल भित्ति : कुछ फलो में अंत: फल भित्ति कठोर होती है जैसे आम, नारियल।

जबकि कुछ पादपों में यह पतली तथा झिल्ली समान होती है जैसे संतरा, नींबू आदि।

बीज प्रकीर्णन

बीज विभिन्न स्थानों पर उगे हुए होते है, ये बीज प्रकीर्णन के कारण होता है। वनस्पतिशास्त्रियों के अनुसार बीजधारी पौधे पादप जगत में सर्वाधिक विकसित कहे जा सकते है। विश्व की वर्तमान वनस्पति का गहन विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि धरती पर सर्वाधिक पादप जैवभार बीजधारी पौधों का ही है। अपने जीवन चक्र की चरम परिणति के रूप में ये पौधे बीज उत्पन्न करते है। जैसा कि हम जानते है , बीजधारी पौधों में निषेचन के बाद बीजाण्ड में विकसित प्रवर्ध्य (propagule) को बीज कहते है। पोषण और वातावरण की अनुकूलन परिस्थितियों में अंकुरित होकर बीज नए पौधे के रूप में विकसित होता है जो परिपक्व होकर फिर से बीज उत्पन्न करता है। इस प्रकार बीजों के लगातार उत्पादन से प्रजाति की निरन्तरता अथवा सांतत्य बना रहता है।

हमारी धरती पर बीजधारी पौधों का वितरण और फैलाव व्यापक रूप से पाया जाता है। इसके साथ ही गहन अध्ययन के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला गया है कि आज बीजधारी पौधे जिस स्थान पर पाए जाते है वस्तुतः ये उस स्थान के मूल निवासी नहीं है अपितु इनकी उत्पत्ति कही और हुई है। तत्पश्चात विभिन्न माध्यमों और प्रक्रियाओं द्वारा इनके बीज और फल दूरस्थ क्षेत्रों में ले जाए गए, जहाँ वे अंकुरित होकर प्राकृतिक रूप से स्थापित हो गए है और वहां से इनका प्रसार अभी भी हो रहा है।

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बीजों के बन जाने के पश्चात् इनके भावी जीवन की सफलता अर्थात अंकुरण, नवांकुरों का निर्माण और इनका परिपक्व होना आदि के लिए इनका प्रकीर्णन एक आवश्यक प्रक्रिया है। इस प्रकार नवनिर्मित , पूर्णतया विकसित और परिपक्व फल और बीजों के अपने मूल पादप अथवा जनक पौधे से दूरस्थ क्षेत्रों में प्रसार अथवा फैलाव की प्रक्रिया को प्रकीर्णन कहते है।

बीजों के प्रकीर्णन के विभिन्न तरीके

हवा द्वारा : कुछ पौधों के बीच हल्के वजन के होते हैं और उन पर कुछ बाल जैसी या पंख संरचनाएँ मौजूद होती हैं। इस तरह के बीज हवा में उड़ते गुए दूर तक फ़ैल जाते हैं। उदाहरण: सहिजन, द्विफल, सूरजमुखी, मदार आदि के बीज।

पानी द्वारा : कुछ बीजों का प्रकीर्णन मुख्यत: जलीय पौधों या जल निकाय के पास बढ़ने वाले पौधों में होता हैं। उदाहरण के लिए नारियल के बीज में एक सख्त रेशेदार आवरण होता हैं जिसके अन्दर बहुत हवा होती है। यह नारियल के बीज के पानी पार तैरने में मदद करता हैं।

जानवरों द्वारा : कुछ बीजों पार काँटेदार हुक की तरह संरचना होती हैं। वे जानवरों के शरीर से चिपका जाते हैं और विभिन्न स्थानों पार फ़ैल जाते हैं। उदाहरण के लिए यूरेना, जैन्थियम आदि। कुछ फलो के साथ पक्शियोंन और जानवरों द्वारा निगल लिया जाता हैं। बाद में ये बीज पक्षी या जानवरों द्वारा कहीं और गिराने से फ़ैल जाते हैं।

फटने के कारण : परिपव्क होने पर कुछ फल झटके के साथ फट जाते हैं। फटने के कारण उसके अंदर स्थित बीज प्रकीर्नित हो जाते हैं। उदाहरण: भिन्डी, अरंडी, बालसम आदि।

मनुष्यों द्वारा : मनुष्य बीज के फैलाव में भी मदद करता हैं। खासकर खेती के दौरान।

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प्रश्न (पृष्ठ संख्या 149-151)

प्रश्न 1 जीवों रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-

(क) जनक पादप के कायिक भागों से नए पादप के उत्पादन का प्रक्रम ________ कहलाता हैं |

(ख) ऐसे पुष्पों को, जिनमें केवल नर अथवा जनन अंग होता है _________ पुष्प कहते हैं|

(ग) परागकणों का उसी अथवा उसी प्रकार के अन्य कुछ के परागकोष से वर्तिकाग्र पर स्थानान्तरण का प्रक्रम ________ कहलाता हैं |

(घ) नर और मादा युग्मकों क युग्मन ________ कहलाता हैं |

(च) बीज प्रकीर्णन _________ , __________ और __________ के द्वारा होता हैं |

उत्तर-

(क) कायिक प्रवर्धन |

(ख) र्कलिंगी |

(ग) परागण |

(घ) निषेचन |

(च) हवा, पानी और जीवो |

प्रश्न 2 अलैंगिक जनन की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए| प्रत्येक का उदहारण दीजिए |

उत्तर- अलैंगिक जनन में पादप बिना बीजों के ही पादप को उत्पन्न कर सकते हैं | इसकी विभिन्न विधियाँ निम्नलिखित हैं:

  • कायिक प्रवर्धन

इस प्रकार के अलैंगिक जनन में पादप के मूल, तने, पत्ती अथवा कलि जैसे कसी कायिक अंग द्वारा नया पादप प्राप्त किया जाता है | उदहारण: गुलाब, ब्रयोफिलम, आलू, अदरक आदि |

  • मुकुलन

इस विधि में कोशिक में बहार की और छोटी बल्ब जैसा प्रवर्ध मुकुल या कली बनती हैं | जो क्रमश: वृद्धि करता हैं और जनक कोशिका से अलग होकर नए जीव में परिवर्तित हो जाता हैं | उदाहरण: यीस्ट |

  • खंडन

इस विधि में जीव दो या दो से अधिक खडों में विखंडित हो जाते हैं | ये खडं अथवा टुकड़े वृद्धि करके जीवों में परिवर्तित हो जाते हैं| उदाहरण:  शैवाल, कवक आदि |

  • बीजाणु निर्माण

कुछ जीव बहुत अधिक बीजाणुओं का निर्माण करते हैं जो निर्मुक्त होते हैं और हवा में तैरते रहते हैं | हल्के होने के कारण ये लंबी दूरी तक जा सकते हैं | ये बीजाणु उच्च ताप तथा निम्न आर्द्रता जैसी प्रतिकूल परिस्थितियों को भी सह सकते हैं | अनुकूल परिस्थितियों में बीजाणु अंकुरित हो जाते हैं और नए जीव में विकसित हो जाते हैं | उदाहरण: कवक, फर्न आदि |

प्रश्न 3 पादपों में लैगिक जनन के प्रक्रम को समझाइए |

उत्तर- लैगिक जनन में दो जनक होते हैं नर और मादा | नर और मादा युग्मकों के युग्मन से युग्मनज बनता हैं जो बाद में एल ने जीव में परिवर्तित हो जाता हैं |

प्रश्न 4 अलैगिक और लैगिक जनन के बीच प्रमुख अंतर बताइए |

उत्तर- 

  • अलैंगिक प्रजनन एक सरल प्रक्रिया है लेकिन यौन प्रजनन एक जटिल प्रक्रिया है।
  • अलैंगिक प्रजनन कोशिका-विभाजन द्वारा किया जा सकता है, लेकिन यौन प्रजनन कोशिका विभाजन द्वारा नहीं किया जा सकता है।
  • यौन प्रजनन के लिए हमें नर और मादा युग्मक की आवश्यकता होती है लेकिन अलैंगिक प्रजनन के लिए हमें युग्मक की आवश्यकता नहीं होती है।
  • अलैंगिक प्रजनन निर्मित कोशिका में निर्माता कोशिका के समान है लेकिन यौन प्रजनन में निर्मित कोशिका निर्माता कोशिका से अलग है।

प्रश्न 5. किसी पुष्प का चित्र खींचकर उसमें जनन अंगों को नामांकित कीजिए |

उत्तर-

Class 7th Science Chapter 12 – पादप में जनन

प्रश्न 6 स्व – परागण और पर – परागण के बीच अंतर बताइए |

उत्तर- यदि परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं, तो इसे स्व-परागण कहते हैं। स्व- परागण उभयलिंगी पादप में होता हैं। जब पुष्प के परागकण उसी पादप के किसी अन्य पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं, तो इसे पर-परागण कहते हैं। पर-परागण एकलिंगी पादप में होता हैं।

प्रश्न 7 पुष्पों में निषेचन का प्रक्रम किस प्रकार संपन्न होता हैं |

उत्तर- परागण द्वारा परागकण उपयुक्त वर्तिकाग्र तक पहुँच जाते हैं | इसके पश्चात नर युग्मक का अंडाशय में स्थित मादा युग्मक तक पहुंचना निषेचन कहलाता हैं | इसके के लिए परागकण से एक नलिका विकसित होती हैं | जो वर्तिका से होती हुई बीजांड तक पहुचती हैं | 

प्रश्न 8 बीजों के प्रकीर्णन की विधियाँ का वर्णन कीजिए |

उत्तर- बीजों के प्रकीर्णन के विभिन्न तरीके निमालिखित हैं

हवा द्वारा : कुछ पौधों के बीच हल्के वजन के होते हैं और उन पर कुछ बाल जैसी या पंख संरचनाएँ मौजूद होती हैं | इस तरह के बीज हवा में उड़ते गुए दूर तक फ़ैल जाते हैं | उदाहरण: सहिजन, द्विफल, सूरजमुखी, मदार आदि के बीज |

पानी द्वारा : कुछ बीजों का प्रकीर्णन मुख्यत: जलीय पौधों या जल निकाय के पास बढ़ने वाले पौधों में होता हैं | हम उदाहरण के लिए नारियल के बीज में एक सख्त रेशेदार आवरण होता हैं जिसके अन्दर बहुत हवा होती है | यह नारियल के बीज के पानी पार तैरने में मदद करता हैं |

जानवरों द्वारा : कुछ बीजों पार काँटेदार हुक की तरह संरचना होती हैं| वे जानवरों के शरीर से चिपका जाते हैं और विभिन्न स्थानों पार फ़ैल जाते हैं | उदाहरण के लिए यूरेना, जैन्थियम आदि | कुछ फलो के साथ पक्शियोंन और जानवरों द्वारा निगल लिया जाता हैं | बाद में ये बीज पक्षी या जानवरों द्वारा कहीं और गिराने से फ़ैल जाते हैं |

फटने के कारण : परिपव्क होने पर कुछ फल झटके के साथ फट जाते हैं | फटने के कारण उसके अंदर स्थित बीज प्रकीर्नित हो जाते हैं | उदाहरण: भिन्डी, अरंडी, बालसम आदि|

मनुष्यों द्वारा : मनुष्य: मनुष्य बीज के फैलाव में भी मदद करता हैं | खासकर खेती के दौरान | 

प्रश्न 9 कॉलम A में दिए गए शब्दों का कॉलम B में दिए गए जीवों से मिलान कीजिए-

कॉलम Aकॉलम B
(क) कली/मुकुल(i) मैपिल
(ख) आँख(ii) स्पाइरोगाइरा
(ग) खंडन(iii) यीस्ट
घ) पंख(iv) डबलरोटी की फफूद
(च) बीजाणु(v) आलू
 (vi) गुलाब

उत्तर-

कॉलम Aकॉलम B
(क) कली/मुकुल(iii) यीस्ट 
(ख) आँख(v) आलू
(ग) खंडन(ii) स्पाइरोगाइरा
घ) पंख(i) मैपिल 
(च) बीजाणु(iv) डबलरोटी की फफूद

प्रश्न 10 सही विकल्प पार सही का निशान लगाइए-

  1. पादप का जनन भाग होता हैं, उसका
  1. पत्ती/पूर्ण
  2. तना
  3. मल
  4. पुष्प
  5. नर और मादा युग्मक के युग्मन का प्रक्रम कहलाता हैं
  1. निषेचन
  2. परागण
  3. जनन
  4. बीज निर्माण
  5. परिपव्क होने पार अंडाशय विकसित हो जाता हैं
  1. बीज से
  2. पुंकेसर में
  3. स्त्रीकेसर में
  4. फल में
  5. बीजाणु उत्पन्न करने वाला एक पादप जीव हैं
  1. गुलाब
  2. डबलरोटी का फफूंद
  3. आलू
  4. अदरक
  5. ब्रयोफिलम अपने जिस भाग द्वारा जनन करता हैं, वह हैं
  1. तना
  2. पत्ती
  3. मूल
  4. पुष्प

उत्तर- d. पुष्प

a. निषेचन

d. फल में

b. डबलरोटी का फफूंद

b. पत्ती