अध्याय-2: बचपन

-कृष्णा सोबती

सारांश

प्रस्तुत पाठ लेखिका कृष्णा सोबती द्वारा लिखा गया संस्मरण है। इस पाठ में उन्होंने अपने बचपन की खट्ठी-मिट्ठी यादों से पाठकों को परिचित करवाया है।

कहानी का सार कुछ इस प्रकार है-

लेखिका कहती है कि वह उम्र के हिसाब से किसी की दादी, नानी, बड़ी बुआ या बड़ी मौसी भी हो सकती है परन्तु वैसे उसके परिवार में सब उन्हें जीजी के नाम से ही पुकारते हैं। लेखिका अपने पहनावे में आए बदलाव के बारे में बताते हुए कहती है कि पहले वे रंग-बिरंगे जैसे नीला, जमुनी, ग्रे, काला, चॉकलेटी आदि कपडे पहनतीं थीं। अब वे सफेद रंग के कपड़े पहनना पसंद करती हैं। बचपन में जहाँ उन्हें फ्रॉक, निकर-वॉकर, स्कर्ट, लहँगे, गरारे पहनना पसंद था आज वे अब चूड़ीदार और घेरदार कुर्तें पहनतीं हैं। बचपन की कुछ फ्रॉक तो उन्हें आज भी याद हैं।

लेखिका को अपने मोजें और स्टाकिंग भी याद है। लेखिका को अपने मौजे खुद ही धोने पड़ते थे उन्हें वे नौकरों को नहीं दे सकती थीं। अपने जूतों को भी रविवार के दिन खुद ही पॉलिश करनी होती थी। लेखिका को नए जूतों के बजाय पुराने जूते पहनना पसंद था क्योंकि नए जूतों से उनके पैरों में छाले पड़ जाते थे। सेहत को ठीक रखने के लिए हर शनिवार ऑलिव ऑइल या कैस्टर ऑइल पीना पड़ता था।

लेखिका आगे बताती है कि उन दिनों रेडिओ और टेलीविजन नहीं था। केवल कुछ ही घरों में ग्रामोफ़ोन हुआ करते थे। लेखिका के अनुसार अब तो खाने भी भी बदलाव हो गया है। पहले की कुल्फ़ी आइसक्रीम में, तो कचौड़ी-समोसा पैटीज में बदल गए हैं। यहाँ तक कि शरबत भी कोक-पेप्सी बन गए हैं। लेखिका के घर के पास ही मॉल था परन्तु हफ्ते में एक ही बार चॉकलेट खरीदने की छूट थी। उन दिनों लेखिका के पास ही सबसे अधिक चॉकलेट रहा करती थी। उन्हें चना जोर ग्राम और अनारदाने का चूर्ण बेहद पसंद था। लेखिका को अब भी चने जोर गरम का स्वाद पहले जैसा ही लगता है।

लेखिका ने अपने बचपन के दिनों में शिमला के रिज पर बहुत मजे किये हैं। घोड़ों की सवारी भी की थी। सूर्यास्त के समय दूर-दूर तक फैले पहाड़ मनोरम दृश्य प्रस्तुत करते थे। चर्च की बजती हुई घंटियों का संगीत सुनकर ऐसा लगता था मानो प्रभु ईश कुछ कह रहे हो। स्कैंडल पॉइंट के सामने के शोरुम में शिमला कालका ट्रेन का मॉडल बना था। पिछली सदी के हवाई जहाज भी देखने को मिल जाया करते थे। लेखिका को हवाई जहाज के पंख किसी भारी-भरकम पक्षी के लगते थे जो उन पंखों को फैलाकर उड़ा जा रहा हो। गाड़ी के मॉडल वाली दुकान के पास ही चश्में की दुकान को लेखिका नहीं भूलतीं क्योंकि उनका पहला चश्मा उसी दुकान से बना था और वहाँ के डॉक्टर अंग्रेज थे।

शुरू-शुरू में लेखिका को चश्मा लगाना अटपटा लगता था। डॉक्टर ने उन्हें आश्वासन दिया था कि कुछ दिनों में चश्मा उतर जाएगा परन्तु लेखिका कहती है वह आज तक नहीं उतरा। पहली बार जब उन्होंने चश्मा लगाया था तो उनके भाइयों ने उन्हें खूब चिढ़ाया था। धीरे-धीरे उन्हें उसकी आदत लग गई।

लेखिका उस टोपे, काली फ्रेम के चश्में और भाइयों द्वारा लंगूर चिढाये जाने को याद करती है। अब लेखिका को हिमाचली टोपियाँ पहनना पसंद है और उन्होंने कई रंगों में जमा भी कर लीं हैं।

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संस्मरण से प्रश्न (पृष्ठ संख्या 10)

प्रश्न 1 लेखिका बचपन में इतवार की सुबह क्या-क्या काम करती थी?

उत्तर- लेखिका बचपन में इतवार की सुबह अपने मोजे धोती थी। फिर जूते पॉलिश करके उसे कपड़े या ब्रुश से रगड़कर चमकाती थी।

प्रश्न 2 ‘तुम्हें बताऊँगी कि हमारे समय और तुम्हारे समय में कितनी दूरी हो चुकी है’-इस बात के लिए लेखिका क्या-क्या उदाहरण देती हैं?

उत्तर- लेखिका अपने समय से आज के समय की दूरी को दर्शाने के लिए कई उदाहरण देती है। वह कहती है कि उन दिनों रेडियो और टेलीविजन की जगह ग्रामोफोन हुआ करता था। उस समय की कुलफी आज आइसक्रीम हो गई है, कचौड़ी और समोसा अब पैटीज में और शरबत कोल्डड्रिंक में बदल गए हैं। उनके समय में कोक नहीं, लेमनेड, विमडो मिलती थी।

प्रश्न 3 पाठ से पता करके लिखो कि लेखिका को चश्मा क्यों लगाना पड़ा ? चश्मा लगाने पर उनके चचेरे भाई उन्हें क्या कहकर चिढ़ाते थे?

उत्तर- लेखिका को रात में टेबल लैंप के सामने काम करने के कारण चश्मा लगाना पड़ा। उनके चचेरे भाई ने चश्मा लगाने पर उन्हें छेड़ते हुए कहा आँख पर चश्मा लगाया ताकि सूझे दूर की यह नहीं लड़की को मालूम सूरत बनी लंगूर की।

प्रश्न 4 लेखिका अपने बचपन में कौन-कौन सी चीजें मजा ले-लेकर खाती थीं? उनमें से प्रमुख फलों के नाम लिखो।

उत्तर- लेखिका रात में सोते समय चॉकलेट मजा ले-लेकर खाती थी। इसके अतिरिक्त उसे चेस्टनट, चनाजोर गरम और अनारदाने का चूर्ण भी बहुत पसंद था। फलों में शिमला के खट्टे-मीठे का काफल, रसभरी, कसमल भी उसे खूब पसंद थे।

संस्मरण से आगे (पृष्ठ संख्या 10)

प्रश्न 1 लेखिका के बचपन में हवाई जहाज़ की आवाजें, घुड़सवारी, ग्रामोफ़ोन और शोरूम में शिमला-कालका ट्रेन का मॉडल ही आश्चर्यजनक आधुनिक चीजें थीं। आज क्या-क्या आश्चर्यजनक आधुनिक चीजें तुम्हें आकर्षित करती हैं? उनके नाम लिखो।

उत्तर- आज की आश्चर्यजनक आधुनिक चीजों में मुख्य हैं- टेलिविजन, कंप्यूटर, इंटरनेट, मोबाइल, मेट्रो ट्रेन, रोबोट इत्यादि।

प्रश्न 2 अपने बचपन की कोई मनमोहक घटना याद करके विस्तार से लिखो।

उत्तर- बचपन !!! इस शब्द मात्र से मेरे बचपन की वो सारी यादें ताजी हो जाती है ।आज से १५ वर्ष पहले मेरा जन्म कानपूर के एक छोटे से कस्बे में हूआ । माँ कहा करती है , कि पिताजी मेरे जन्म होने से काफी खुश थे। उत्सव मनायी गयी थी । वैैसे उस समय घर में क्या हो रहा था , ये तो खायी।

वल माँ ने जो कहा वही कह सकती हूँ । धीरे -घीरे समय बीता और मै ३-५ वर्ष का हो गया । इस समय की कुछ बीतें याद है मूझे , मेरे पापा अपने कंधे पर बैठा कर बाजार ले जाया करते थे , और मै इस तरह बैठा रहता मानो दूनिया का सबसे खूशी व्यक्ति मै ही हूँ । माँ के हाथो से भोजन करना , दूलार करना , सीने से लगाकर सूलाना , मनमोहक कहानियाँ सुनाना । आज भी याद आने पर खुशी के आँसू टपक परते हैं । धीरे -धीरे मे ६-८ वर्ष का हो गया । उफ, स्कुल जाना । ये काफी उबाउ काम था। क्योकि माँ हर रोज ५:०० बजे उठा देती थी। गूस्सा इतना आता था कि पूछो मत। खैर वो जो भी किया करती थी । मेरे भलाइ के लिये था ।लेकिन उस समय इतनी बुद्धी कहां , केवल खेल-खेल ,हा -हा -हा। मुझे याद है एक बार मैने खेलते वक्त एक दोस्त की हाथ तोङ दी थी। पापा ने बहूत पीटा था। लेकिन माँ के दूलार सारे दर्द छू मन्तर हो गया था । लेकिन रात को जब मे सोया था , पापा मेरे सिर पर अपने हाथ फेर रहे थे । शायद उन्हे अफसोस हो रहा था । क्योंकि मै उनके आँखो का तारा जो था। लेकिन उस दिन के बाद से मुझे याद नही है ,कि मैने पापा से दोबारा पिटायी खायी।

मेरे चाचा महाविद्यालय के शिझक है । इसिलिए मुझे चाचा के साथ भेज दिया । क्योंकि वो शिझक है , तो जाहिर सी बात है , पढने वाले ही उन्हे पसंद आएँगे ना , और मूझे न चाहते हुए भी पढना पङता था । वो हमेशा बूद्ध या गधा कहकर पूकारते थे ।

मूझे बिल्कूल अच्छा नही लगता था । इसिलिए मै घँटो पढा करता । मै अपने कझा मे हमेशा अव्वल आता था , तबपर भी चाचा कोइ-न -कोइ दोष निकाल हि देते थे । आज भी वो वैसे ही हैं । खैर मै अब समझने लगा हूं कि वो मूझे केवल बेहतर नही उत्कृष्ट श्रेणी में देखना चाहते है।

मेरी माँ कहती है कि मै ज्यादा दोस्त बनाना पसँद नही करता था । मुझे भी ये सही लगता है , क्योंकि मुझे बचपन के देस्तो के बारें मे याद नही है ।

लेकिन फिर भी मै बहुत खुश रहता हूँ क्योंकि मैने अपने बचपन को माँ -पापा के साथ जीया है ।

अनुमान और कल्पना (पृष्ठ संख्या 10)

प्रश्न 1 सन् 1935-40 के लगभग लेखिका का बचपन शिमला में अधिक दिन गुज़रा। उन दिनों के शिमला के विषय में जानने का प्रयास करो।

उत्तर- सन् 1935-40 के शिमला का जो चित्र लेखिका ने अपने संस्मरण में खींचा है, उसे देखते हुए ऐसा लगता है कि शिमला उस वक्त भी बहुत खूबसूरत शहर रहा होगा। छोटी-छोटी पहाड़ियों से घिरा शहर, चढ़ाई चढ़कर गिरजा मैदान पहुँचना और उतरकर माल जाना, यह सब सुखद लगते होंगें। शाम के धुंधलके में गहराते पहाड़, रिज पर बढ़ती रौनक, माल के दुकानों की चमक और स्कैंडल प्वांइट-ये सब शिमला की खूबसूरती की झलक दिखाते हैं।

प्रश्न 1 लेखिका ने इस संस्मरण में सरवर के माध्यम से अपनी बात बताने की कोशिश की है, लेकिन सरवर का कोई परिचय नहीं दिया है। अनुमान लगाओ कि सरवर कौन हो सकता है?

उत्तर- लेखिका ने अपने संस्मरण में दो बार सरवर का नाम लिया है। इसके अतिरिक्त उस व्यक्ति के लिए किसी अन्य संबोधन का प्रयोग नहीं है। अतः संभव है कि सरवर कोई पत्रकार या उनकी जीवनी के लेखक रहे हों, जिन्हें वह अपना जीवनवृत्त सुना रही है।

भाषा की बात (पृष्ठ संख्या 11)

प्रश्न 1 क्रियाओं से भी भाववाचक संज्ञाएँ बनती हैं। जैसे मारना से मार, काटना से काट, हारना से हार, सीखना से सीख, पलटना. से पलट और हड़पना से हड़प आदि भाववाचक संज्ञाएँ बनी हैं। तुम भी इस संस्मरण से कुछ क्रियाओं को छाँटकर लिखो और उनसे भाववाचक संज्ञा बनाओ।

उत्तर- भाववाचक संज्ञा:

दमकदमकना
लिखनालिखाई
घटानाघटाव
सजानासजावट
गानागान
सोचनासोच
दौड़नादौड़
दौड़नापान
दौड़नापहनावा

प्रश्न 2 चार दिन, कुछ व्यक्ति, एक लीटर दूध आदि शब्दों के प्रयोग पर ध्यान दो तो पता चलेगा कि इनमें चार, कुछ और एक लीटर शब्द से संख्या या परिमाण का आभास होता है, क्योंकि ये संख्यावाचक विशेषण हैं। इसमें भी चार दिन से निश्चित संख्या का बोध होता है, इसलिए इसको निश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। और कुछ व्यक्ति से अनिश्चित संख्या का बोध होने से इसे अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण कहते हैं। इसी प्रकार एक लीटर दूध से परिमाण का बोध होता है इसलिए इसे परिमाणवाचक विशेषण कहते हैं।

अब तुम नीचे लिखे वाक्यों को पढ़ो और उनके सामने विशेषण के भेदों को लिखो

  1. मुझे दो दर्जन केले चाहिए।
  2. दो किलो अनाज दे दो।
  3. कुछ बच्चे आ रहे हैं।
  4. सभी लोग हँस रहे है।
  5. तुम्हारा नाम बहुत सुन्दर है।

उत्तर-

  1. दो दर्जन = निश्चित संख्यावाचक विशेषण
  2. दो किलो = निश्चित परिमाणवाचक विशेषण
  3. कुछ = अनिश्चित संख्यावाचक विशेषण 
  4. सभी = अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण
  1. तुम्हारा = सार्वनामिक विशेषण
  2. बहुत = अनिश्चित परिमाणवाचक विशेषण
  3. सुंदर = गुणवाचक विशेषण

प्रश्न 3 कपड़ों में मेरी दिलचस्पियाँ मेरी मौसी जानती थी।

इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘दिलचस्पियाँ’ और ‘मौसी’ संज्ञाओं की विशेषता बता रहे हैं, इसलिए ये सार्वनामिक विशेषण हैं। सर्वनाम कभी-कभी विशेषण का काम भी करते हैं। पाठ में से ऐसे पाँच उदाहरण छाँटकर लिखो।

उत्तर- पाठ से लिए गए पाँच सार्वनामिक विशेषण।

  1. अपने बचपन
  2. तुम्हारी दादी
  3. हमारे-तुम्हारे बचपन
  4. हमारा घर
  5. उन दिनों
  6. मेरे चेहरे